Home / अतिथि संवाद / नागरिक निर्माण में शिक्षकों की अकल्पनीय भूमिका

नागरिक निर्माण में शिक्षकों की अकल्पनीय भूमिका

नागरिक निर्माणकर्ताओं को नमन, ‘अध्यापक और अध्यापन’ दोनों में कोई खास असमानता नहीं होती, एक समान ही होते हैं। क्योंकि ये दोनों हर किसी के जीवन का हिस्सा रहे होते हैं। इंसान के जीवन में शुरू से तरक्की-समृद्धि के वास्तविक पथ धारक टीचर ही रहे हैं जिनके जरिए इंसान खुद को विकसित और तैयार कर पाते हैं। निश्चित रूप से इनके बिना जीवन का कोई मायना नहीं। बिना शिक्षक का जीवन अंधेरे जैसा होता है। अध्यापक अपने शिष्य को जीवन जीने का बौद्ध करवाता है, तो वहीं अध्ययन जीवन का ककहरा सिखाता है।

अध्यापक दिवस है आज और एक अध्यापक का क्या किरदार होता हर किसी के जीवन में शायद बताने की जरूरत नहीं? आज उन अध्यापकों को याद करने का दिन है जिन्होंने हमें शुरुआत शिक्षा देकर यहां तक पहुंचाया। अपने करियर में हम चाहें कुछ भी हासिल क्यों ना कर लें, किसी भी पड़ाव पर पहुंच जाएं, उसमें शिक्षक की ही अहम भूमिका होती है। सफल होने के बाद भी एक टीचर-गाईडर की आवश्यकता को ताउम्र महसूस करते हैं।

बिना मार्गदर्शक के जीवन अधूरा सा होता है। बहरहाल, जो बच्चे और युवा नहीं जानते कि शिक्षक दिवस आज ही के दिन क्यों मनाया जाता है। उन्हें जानना चाहिए कि पांच सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था उनके जन्मदिन को टीचर डे के रूप में मनाया जाता है। वह भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति भी रहे। इन पदों पर रहने के बाद भी वह खुद को हमेशा शिक्षक ही कहते रहे। अध्यापक और अध्यापन से उनका खास लगाव था, पठन-पाठन उनके खून में था।

डॉ सर्वपल्ली राधकृष्णन ने अपने जीवन के अंत तक अध्यापन पेशे को नहीं छोड़ा। देश-विदेश के विभिन्न स्कूलां, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में बिना बताए पहुंच जाना, बच्चों को पढ़ाने लगना, उनकी खास खूबियों में गिना जाता था। तभी अपने कार्यकाल के दौरान तब के प्रधानमंत्री से खुद मांग की थी कि कोई ऐसा दिन चुना जाए, जिस दिन देश के शिक्षकों को एक दिवस के रूप में मुकम्मल सम्मान दिया जाए। उनकी मांग आगे बढ़ी और निर्णय हुआ। तभी उनके जन्मदिवस पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने पर सहमति बनीं, जिसे सर्वसम्मति से पास भी कर दिया गया।

सन् 1962 से हर वर्ष आज के दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। निश्चित तौर पर अध्यापक हमें ना सिर्फ पढ़ाते हैं, बल्कि हमारे व्यक्तित्व, विश्वास और कौशल स्तर को भी सुधारते हैं। वह हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम किसी भी कठिनाई और परेशानियों का आने वाले वक्त में सामना कर सकें। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने निजी प्रयासों के बूते उन्होंने हमारे शिक्षकों के शैक्षणिक दृष्टी को बहुत बेहतर किया। इसके अलावा ज्ञान व विश्वास के स्तर को नैतिकता में उन्होंने बदला।

जीवन में अच्छा करने के लिए डॉ सर्वपल्ली राधकृष्णन ने हमें हर मोड़ पर हर असंभव प्रेरणा देते रहे। तभी केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, विद्यार्थी आज के दिन को बहुत उत्साह और खुशी से मनाते हैं। आधुनिक काल में जीवन के मायने बदल जाने के बाद भी हमारे जीवन को संवारने में शिक्षक पहले ही जैसी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सफलता प्राप्ति के लिए हमारे ज्ञान, कौशल और विश्वास आदि को बढ़ाने और सही आकार में ढ़ालने का काम करते हैं। जमाना कितना भी क्यों ना बदले, शिक्षकों की भूमिका कोई कमतर नहीं आंक सकता।

हां, इतना जरूर है कि, भौतिकवाद और आधुनिक काल के चकाचौंध में अध्यापकों और शिष्यों के रिश्तें पहले के मुकाबले बदले हैं। टीचर अब किताब के ज्ञान के साथ ही शिष्यों को टेक्नो फ्रेंडली शिक्षा लेने की सलाह देते हैं। पर, पहले एवं आज के गुरु का भी लक्ष्य एक ही होता है कि उनका शिष्य भविष्य में बेहतर करे। हालांकि इसमें भी बदलाव आया है।

पहले शिक्षक कक्षा के साथ ही छात्र के विकास के लिए हमेशा व्यक्तिगत स्तर से सोचते रहे थे। लेकिन अब यह दायरा कक्षाओं तक ही सीमित हो गया है। स्कूल छूटने के बाद टीचर छात्रों की किसी भी गतिविधि पर ध्यान नहीं देते, जिस कारण भी वर्तमान समय में शिक्षक-छात्र के रिश्ते बिगड़ रहे हैं। दूरियां बढ़ने का एक वाजिब कारण और भी है। दरअसल, मौजूदा वक्त में शिक्षा और शिक्षक दोनों व्यावसायिक भी हो गए हैं।

शिक्षा के मायने यहीं से बदले हैं। लेकिन एक जमाना था जब अध्यापक का अर्थ विद्यालयी, कॉलेज, ट्यूशन शिक्षक से न होकर वह व्यक्ति होते थे जो आपकी भलाई चाहते थे और आपको जीवन सही रास्ता दिखाते थे। पर, आज के समय में अगर आपके पास कॉलेज या ट्यूशन के लिए पैसे नहीं है तो कोई भी टीचर आपको शिक्षा नहीं देगा। इसमें उनका भी कोई दोष नहीं। सरकारें भी ऐसा ही करती जा रही है!

महंगी शिक्षा पर अंकुश लगाने की दरकार है। लेकिन इस मुद्दे पर कोई गंभीरता से मंथन नहीं करता। चाहें केंद्र सरकार हो, या राज्य सरकारें एक नीति के तहत शिक्षा को लगातार महंगी करती जा रही है जिससे गरीब बच्चों के लिए पढ़ाई करना मुश्किल हो गया है। इस समानता की गहराई को पाटना होगा, तभी आधुनिक युग में अध्यापक और शिष्यों के रिश्तें फिरसे पुराने जमाने जैसे होंगे। पर, आज भी देश में कुछ टीचर या शिक्षण संस्थाएं ऐसे हैं जो बदलाव के वाहक बने हुए हैं।

फ्री में शिक्षा बांटते हैं। इस कडी में बिहार के आंनद कुमार का नाम लिया जा सकता है, जो सुपर-30 नाम से कोचिंग संस्था चलाते हैं जहां सिर्फ गरीब बच्चों को पढ़ाया जाता है। उनके पढ़ाए कई बच्चे उच्च पदों पर आसीन हैं। दरअसल, ऐसी ही सामूहिक प्रयासों की हमें जरूरत है। पर, इसके लिए इच्छाशक्ति और समाज भावना हमें अपने भीतर जगानी होगी। सरकार और सामाजिक स्तर दोनों को पहल करना होगा।

लेखक राष्ट्रीय जनसहयोग एवं बाल विकास संस्थान (NIPCCD), भारत सरकार के सदस्य हैं।

आलेख

डॉ. रमेश ठाकुर,
5/5 गीता कॉलोनी, ईस्ट दिल्ली

About hukum

Check Also

समग्र क्रांति के अग्रदूत : महर्षि दयानंद सरस्वती

स्वामी दयानंद सरस्वती की आज जयंती है। स्वामी दयानंद आर्य समाज के संस्थापक, आधुनिक भारत …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *