एक समय था जब नाट्य साहित्य मुख्यतः अभिनय के लिए लिखा जाता था। कालिदास, भवभूति और शुद्रक आदि अनेक नाटककारों की सारी रचनाएं अभिनय सुलभ है। नाटक की सार्थकता उसकी अभिनेयता में है अन्यथा वह साहित्य की एक विशिष्ट लेखन शैली बनकर रह जाती। नाटक वास्तव में लेखक, अभिनेता और …
Read More »सनातन विश्व में पर्यावरण क्रांति के अग्रदूत : श्री कृष्ण
श्री कृष्ण जनमाष्टमी विशेष आलेख पर्यावरण संरक्षण की चेतना वैदिक काल से ही प्रचलित है। प्रकृति और मनुष्य सदैव से ही एक दूसरे के पूरक रहे हैं। एक के बिना दूसरे की कल्पना करना बेमानी है। वैदिक काल के ध्येय वाक्य “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की अभिधारणा लिए प्रकृति और मनुष्य …
Read More »छत्तीसगढ़ में चौमासा
जेठ की भीषण तपन के बाद जब बरसात की पहली फ़ुहार पड़ती है तब छत्तीसगढ़ अंचल में किसान अपने खेतों की अकरस (पहली) जुताई प्रारंभ कर देता है। इस पहली वर्षा से खेतों में खर पतवार उग आती है तब वर्षा से नरम हुई जमीन पर किसान हल चलाता है …
Read More »स्वतंत्रता का सन्देश देता श्रीकृष्ण का जीवन : जनमाष्टमी विशेष
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ। पर स्वतंत्र होने तथा अपनों को दुःख की बेड़ियों से मुक्त करने की चाह देखिए, जन्म लेते ही माता देवकी तथा पिता वसुदेव को बेड़ियों से मुक्त कर दिया। इतना ही नहीं तो नवजात शिशु कृष्ण की इच्छा से कारागार के द्वार स्वतः …
Read More »लोक आस्था का दर्पण : आठे कन्हैया
लोक की यह खासियत होती है कि उसमें किसी भी प्रकार की कोई कृत्रिमता या दिखावे के लिए कोई स्थान नहीं होता। वह सीधे-सीधे अपनी अभिव्यक्ति को सहज सरल ढ़ंग से शब्दों रंगो व अन्य कला माध्यमों से अभिव्यक्त करता है। तीज-त्यौहारों की परम्परा तो शिष्ट में भी है और …
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