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सर्व अनिष्ट से ग्राम रक्षा का लोक पर्व सवनाही बरोई

छत्तीसगढ़ की कृषि आधारित संस्कृति, रीति-रिवाज और पर्व अनूठे हैं। यहां पर प्रचलित लोक पर्वों में लोक मंगल कामना सदैव रहती है। यहां जड़-चेतन सभी उपयोगी संसाधनों की विभिन्न लोक पर्वों में पूजा की जाती है। चाहे वह कृषि का औजार हो या जीव-जंतु या प्रकृति देव।

छत्तीसगढ़ में चौमासा विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना, आराधना का समय होता है। जिसकी शुरुआत होती है ग्राम्य देवी माता शीतला के माता पहुंचनी के पर्व से। आषाढ़ मास में छत्तीसगढ़ के सभी गांवों में वर्ष भर समृद्धि और आरोग्यता की कामना के साथ माता शीतला का पहुंचनी पर्व मनाते हैं। जिसमें गांव का ओझा (बइगा) माता शीतला की पूजा-अर्चना करता है और नीम की डार से उपस्थित जनसमूह पर ठंडाई (हल्दी मिश्रित पानी) का छिड़काव करता है और माता शीतला से पूरे ग्राम के स्वास्थ्य समृद्धि लिए प्रार्थना करता है।

आषाढ़ महीने के बाद आता है सावन का महीना। भूत-भावन भोलेनाथ को सबसे अधिक प्रिय इस पवित्र महीने में भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने और सोमवार उपवास रखने की छत्तीसगढ़ में परंपरा है। पिछले कुछ दशकों से यहां अब कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी हो गई है। जहां भक्तगण अपनी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा लिए विभिन्न शिवालयों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के जल अर्पित करने जाते हैं। ये सावन महीने का वर्तमान स्वरूप है।

महावीर हनुमान जी ग्राम टेंगनाबासा – फ़ोटो रीझे यादव

लेकिन पहले जमाने में सावन महीने को अनिष्ट का महीना समझा जाता था। ऐसा माना जाता था कि विभिन्न प्रकार की नकारात्मक शक्तियां, व्याधियाँ सावन महीने के कृष्ण पक्ष में अधिक बलवती हो जाती है। तब लोग अपनी जीवन रक्षा के लिए ग्राम में स्थापित विभिन्न देवी-देवताओं के शरण में जाते थे और विभिन्न टोने-टोटके के द्वारा जीवन रक्षा का उपाय किया जाता था।

सवनाही बरोने की प्रथा

छत्तीसगढ़ में सावन महीने के पहले रविवार को सवनाही बरोई पर्व मनाया जाता है, कई स्थानों पर अन्य सप्ताह में भी रविवार मनाया जाता है, जिसे इतवारी मनाना कहते हैं। इस दिन समस्त ग्रामवासियों के स्वास्थ रक्षा के लिए स्थानीय देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है और प्रतीकात्मक रूप से गांव के समस्त अनिष्टकारी शक्तियों को एक टूटे टोकनी में रखकर ग्राम के सिआर (गांव का अंतिम छोर जहां से अन्य गांव की सीमा प्रारंभ होती है) पर ले जाकर छोड़ दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे गांव पर विपत्ति नहीं आती और जन हानि नहीं होती।

सवनाही बरोई की तैयारी

सवनाही नीम की लकड़ी का रथ – फ़ोटो – ललित शर्मा

सवनाही बरोई का पर्व सावन महीने के प्रथम रविवार को मनाया जाता है। कहीं कहीं पर दूसरे रविवार को भी सवनाही बरोई का पर्व मनाया जाता है। सवनाही बरोने के एक दिन पूर्व पूरे गांव में मुनादी करवाकर रविवार को समस्त कृषि कार्य और गांव में चल रहे किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य को एक दिन के लिए पूर्णतः बंद कराया जाता है। सवनाही बरोई का कार्य संपन्न होने तक कुंए से पानी भरना भी प्रतिबंधित होता है। रविवार के दिन पहट 4 बजे से गांव का प्रधान बइगा और ग्राम के चार पांच अन्य गणमान्य लोग मिलकर गांव के स्थानीय देवी-देवताओं का आवाहन कर गांव के किसी देवस्थल पर पूजा करते हैं और लोगों के स्वास्थ्य रक्षा की कामना करते हैं।

सवनाही पूजा की सामग्री

सवनाही पूजा करने के लिए नारियल, धूप, अगरबत्ती, काली मुर्गी, बांस से बनी टुकनी, नींबू, ध्वजा, चावल की भूसी (कोंड़हे)की बनी रोटी आदि।

सवनाही बरोई की विधि

अलग-अलग क्षेत्रों में सवनाही बरोई की विधि में कुछ-कुछ अंतर हो सकता है लेकिन मूल विधि में समानता रहती है। मेरे गांव टेंगना बासा में इस दिन कामकाज पूर्णतः बंद रहता है। सुबह सर्वप्रथम गांव में स्थित महावीर (हनुमान) जी की पूजा की जाती है। संकटमोचन हनुमान जी सबसे बड़ी देव शक्ति हैं जो समस्त संकटों से रक्षा करती है। भूत प्रेत की बाधा इनके आगे नहीं टिक सकती। हनुमान चालीसा में भी वर्णित है- भूत-पिशाच निकट नहीं आवै। महावीर जब नाम सुनावै।।

शीतला माता ग्राम टेंगना बासा फ़ोटो – रीझे यादव

महावीर की पूजा-अर्चना के बाद एक टूटे हुए टुकनी के चारों ओर ध्वजा लपेटकर और उसमें पूजन की समस्त सामग्री लेकर गांव के सिआर में जाकर पूजा अर्चना किया जाता है और वहां पर कोंड़हे की रोटी का भोग लगाया जाता। तत्पश्चात मुर्गी को ले जाकर छोड़ दिया जाता है। टुकनी सहित समस्त पूजन सामग्री को धरसा (गांव के बरदी (गौ-समूह) के गुजरने का रास्ता)किनारे छोड़ दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि गौ के चरण पकड़ कर समस्त बुरी शक्तियां गांव के बाहर चली जाती है।

एक विशेष बात ये है कि पूजा करने के लिए गए किसी भी व्यक्ति को उक्त टोकनी को वापस मुड़कर देखने की मनाही होती है। माना जाता है कि उक्त टोकनी को वापस मुड़कर देखने से अनिष्ट होता है। कुछ लोग तो मृत्यु तक हो जाने की बात कहते हैं। इस दिन गांव से बाहर यात्रा करने की मनाही होती है।

मेरे गांव टेंगना बासा से लगभग 25 किमी की दूरी पर रहने वाले मेरे एक मित्र ने बताया कि उनके गांव में पूजन विधि थोड़ी अलग होती है। उनके गांव में भी कामकाज पूर्णतः बंद होता है और गांव के सभी घर से कोंड़हे की पान रोटी बनाकर लाते हैं। आमतौर पर पान रोटी बनाने के लिए पलाश के पत्ते का उपयोग किया जाता है।

सवनाही पूजा – फ़ोटो ललित शर्मा

तत्पश्चात सभी लोग एक स्थान पर एकत्रित होते हैं, जहां से पूजन की समस्त सामग्री लेकर बइगा गांव के सिआर में जाते हैं और सवनाही बरोई का कार्य संपन्न करते हैं। उनके यहां पूजन टोकनी में नीम की लकड़ी से बना एक रथ भी रखा जाता है जिसे इक्कीस ध्वजा से सजाया जाता है। उसने बताया कि जिन गांवों में श्वेत पूजा होती है अर्थात जहां बलि निषेध होता है वहां मुर्गी का प्रयोग पूजन के लिए नहीं होता।

सवनाही बरोने की प्रथा और उसकी वैज्ञानिकता

सवनाही बरोने के प्रथा के पीछे लोक मान्यता ये है कि गांव में आने वाले रोग और जादू टोने से संबंधित समस्त नकरात्मक शक्तियों का विनाश। बीते समय में शिक्षा का प्रसार प्रसार ना के बराबर था। इसलिए बरसात के दिनों में वर्षाजनित बीमारियों का प्रकोप होता था। ज्यादातर धुकी (हैजा) की बीमारी फैला करती थी। कुछ पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि इस बीमारी के कारण तब कभी कभी पूरा का पूरा गांव काल का ग्रास बन जाता था। उस समय स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव था। किसी भी स्वास्थ्य संबंधी परेशानी के लिए तब देवी-देवताओं का पूजा पाठ और झाड़ फूंक ही सहारा हुआ करता था।

टेंगनही माता ग्राम टेंगना बासा – रीझे यादव

ज्यादातर सावन के महीने में ही बीमारी अपने चरमोत्कर्ष पर होती थी और सर्वाधिक मौतें इस महीने होती थी इसलिए शिक्षा के अभाव में लोगों को ये लगता था कि कुछ टोनही (चुड़ैल) और दुष्ट शक्तियां इस महीने में अधिक बलवती हो जाती है। हरेली अमावस्या को सबसे ख़तरनाक समझा जाता था। इस स्थिति में लोगों की प्राण रक्षा के लिए तब हमारे पुरखों ने सवनाही बरोई के प्रथा की शुरुआत की।

इस दिन पहले लोग यात्रा नहीं करते थे। सभी अपने गांवों में ही रहते थे। एक डर होता था कि कहीं किसी गांव का सवनाही बरोई का पूजन सामग्री उनकी नजर में दिख गया तो समस्त बुरी शक्तियां उनको वश में कर लेंगी। सावन महीने में गांव की महिलाएं अपने घरों को गोबर के लकीर से घेरती है और घर के प्रवेश द्वार के आजू बाजू मनुष्य या जानवर के चित्र का अंकन भी करती है। उसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से उनके घर में बुरी शक्तियां प्रवेश नहीं कर पायेगी। ये चित्र कहीं सवनाही परब के दिन बनाई जाती है तो कहीं हरेली के एक दिन पहले। हमारे क्षेत्र में हरेली के पहले दिन ही बनाई जाती है।

ग्राम देवता ग्राम टेंगना बासा – फ़ोटो रीझे यादव

अब ऐसी बातें धीरे धीरे शिक्षा के व्यापक प्रसार और लोगों में आई जागरूकता के कारण खत्म हो रही है। अतीत में सवनाही पर्व के दिन लोगों का गांव से बाहर जाना निषेध होता था जिससे लोग अपने घरों में ही रहते थे तो बीमारी के संक्रमण का चक्र टूटता था। इससे बीमारी के मामले में कमी आती थी। पूजा पाठ से सकारात्मकता का प्रसार होता था। वर्तमान में आप सब संगरोध (क्वारांटाइन) की महत्ता से भलिभांति परिचित हैं। पुराने जमाने में भी ये युक्तियां प्रयोग की जाती थी।

कुल मिलाकर सवनाही बरोई के पर्व में लोगों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना निहित है। स्थानीय ग्राम्य देवीताओं के सान्निध्य में रहने वाले ग्राम वासियों के लिए आज भी ग्राम्य देवी देवताएं उनके समस्त कष्टों का निवारण करती है। ऐसी लोक मान्यता है। लोक मान्यता के कारण ही छत्तीसगढ़ में अनेक लोक पर्व प्रचलित है। जो कहीं न कहीं मनुष्य एवं प्रकृति के कल्याण से जुड़े हुए हैं।

शोध आलेख

रीझे यादव
टेंगनाबासा(छुरा) जिला, गरियाबंद

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