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लोक देवी रामपुरहीन डोंडराही माता

लखनपुर उदयपुर ब्लाक मुख्यालय की सरहद पर बिलासपुर मुख्य मार्ग पर स्थित ग्राम जेजगा मे अंचल की आराध्य देवी माता रामपुरहीन सिद्ध पीठ के रूप में विराजमान है। ऐसी मान्यता है कि यहां से कोई भी श्रद्धालु-भक्त खाली हाथ नहीं लौटता। माता रामपुरहीन को अनेकों नाम जैसे डोंडराही अर्थात (अल्हड मासूम) भोली भाली माता, देवी रामपुरहीन, जेजगहीन के नाम से जाना जाता है।

विकास खंड उदयपुर अंर्तगत वनवासी बाहुल ग्राम जेजगा के समीप प्राकृतिक सौम्यता हरियाली से आच्छादित पहाड़ी के उपर सिद्ध पीठ के रूप में अंचल की आराध्य देवी रामपुरहीन विराजमान है। देवी रामपुरहीन की प्राचीनता के संबंध में कोई भी लिखित स्पष्ट प्रमाण तो नहीं मिलता परंतु सरगुजा संभाग के अंबिकापुर मुख्यालय के आधे भाग को रामपुरतपा के नाम से तथा आधे भाग को महरीतपा के नाम से जाना जाता है ये नाम उस काल के राजाओं ने दिया होगा। राजस्व दस्तावेजों में रामपुर तपा एवं महरी तपा होने का उल्लेख आज भी मिलता है।

देवी रामपुरहीन सिद्ध पीठ का नामकरण सम्भवतः रामगढ़ गिरि के समीप होने कारण रामपुरहीन देवी सिद्ध पीठ लोक प्रचलित हो गया होगा। माता को लेकर अलग-अलग दंत कथाएं क्षेत्र में प्रचलित है। किंवदन्ती है कि माता रामपुरहीन कभी ग्राम अंमगसी के एक वनवासी मझवार परिवार में जन्म ली थी। गांव की यह कंवर वनवासी कन्या जब ग्राम जेजगा ब्याही गई तो (ढेढहीन) सहेली के रूप में देवी ढोढराही जेजगहीन भी ग्राम जेजगा गई। अपनी ब्याहता सहेली के घर रहने लगी और वहां के काम काज में हाथ बंटाने लगी। लम्बे अर्से तक अपने सहेली के घर विराजमान रही।

जनश्रुति से पता चलता है कि ग्राम जेजगा में जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के बारे में अनिष्ट होने की बात करता तो उस व्यक्ति के घर मे ज़रूर कोई अनिष्ट दुखदाई घटना घटित होती थी। वहीं दूसरी तरफ यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के बारे में अच्छा शुभ होने के बात कहता तो निश्चित तौर पर अच्छा ही होता था।

देवी माता लोगों की सभी तरह बातों को सुनती थी और वह बात हकीकत में परिणीत हो जाती थी। माता एक साधारण मनुष्य रूपी महिला के रूप में गांव में रहती थी। एक अजीब रहस्य था लोग इस बात को नहीं समझ पाते और दो तरह से खूशी और गम के हादसे गांव में अक्सर होते रहते थे। यह सिलसिला कई सालों तक गांव में चलता रहा। कुछ ग्रामीण बुद्धिजीवी लोगों ने इस अद्भुत रहस्य को समझने का प्रयास किया और गांव के देवी-देवता, पशु-पक्षी, सामान्य जनमानस के ऊपर नजर रखना शुरू किए तब यह साबित पाया कि मानव रूपी देवी रामपुरहीन के समक्ष कुछ भी अच्छा या बुरा होने की बात कहने पर वह बात सच्चाई में बदल जाता है।

उस समय के प्राचीन लोग दैवीय शक्तियों पर असिमित विश्वास रखते थे। गांव के लोगों ने ने देवी एवं उसके शक्ति के ऊपर नजर रखते हुए निगरानी करना शुरू किया तब उन्होंने यह पाया कि साधारण महिला के रूप में दैवीय शक्ति की स्वामिनी देवी रामपुरहीन माई उनके बीच गांव में ही रहती है। कुछ पुराने लोगों ने माता से उनकी रहस्यमई गतिविधि के बारे में पूछना भी चाहा, परंतु माता ने लोगों को कोई जवाब नहीं दिया।

धीरे-धीरे इस बात का प्रसार होने लगा। देवी जेजगहीन माई को इस बात का एहसास हुआ कि उसके रहस्य से पर्दा उठने लगा है तो एक रोज देवी माता गांव के नजदीक जंगल की ओर प्रस्थान करने लगी, गांव के लोग उसके पीछे-पीछे चलने लगे, इससे पहले कि लोग देवी माता तक पहुंच पाते, एक बड़े शिलाखंड के पास पहुंचकर माता रामपुरहीन अंतर्ध्यान हो गई।

लोगों ने पहाड़ी के उस स्थान को पूजा स्थल मान लिया। तब से लेकर अब तक उसी जगह पर माता की पूजा अर्चना होती चली आ रही है। यह बात स्पष्ट हो गया कि देवी माता किसी का अनिष्ट भी कर सकती हैं और किसी के जीवन को संवार भी सकती है अर्थात देवी रामपुरहीन माई भक्तों की दोनों तरह की मांगों को सुनती हैं यानी किसी भक्त के कहने पर किसी का हित करती है और अहित भी करती है यह उनकी शक्ति की सच्चाई है।

आज भी माता भक्त दोनों तरह की मनोकामनाएं लेकर रामपुरहीन के दरबार में पहुंचते हैं। माता रामपुरहीन की उत्पति के बारे में कोई लिखित एतिहासिक प्रमाण तो नहीं मिलता अपितु लोकोक्तियों, जनश्रुति से ज्ञात होता है कि जब देवी रामपुरहीन के सच्चाई का पता पुराने जमाने के जमीदारों को चला तो उन्होंने भी देवी माता की पूजा अर्चना करना शुरू कर दिया और विषम परिस्थिति में देवी माता को याद करने लगे। अपने क्षेत्र का नाम भी उनके नाम से जोड़ दिया जिसे आज भी रामपुर तपा के नाम से जाना जाता है।

देवी माता के निवास पहाड़ी में वर्ष भर ग्राम के बैगा पुजारियों द्वारा पूजा अर्चना की जाती है, आस्थावान माता भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए बैगाओं से पूजा अर्चना कराते हैं तथा इनके दरबार से कोई खाली नहीं लौटता। जनश्रुतियों में यह भी बताया जाता है कि रामपुरहीन सिद्ध पीठ में चढ़े प्रसाद को ब्याहता महिलाओं को नहीं दिया जाता। ब्याहता महिलाओं को प्रसाद खाने की मनाही इसलिए है कि प्रसाद खाने से अनिष्ट होता है। ब्याहता महिलाओं के बाल बच्चे नहीं होते कुछ ऐसी परम्परा रही है।

ग्राम बैगा भानू प्रताप सिंह – स्थल जानकार

अपितु छोटे बच्चियों को उनका प्रसाद दिया जाता है, पुरुष वर्ग कोई भी प्रसाद सेवन कर सकता है। यह भी मान्यता है कि ग्राम जेजगा में जब किसी युवती का विवाह होता है तो विदाई से पहले एक बिन बच्चे वाली बकरी की बलि दी जाती है। प्रेतबाधा जादू टोना टोटका के शांति के लिए बैगाओं द्वारा देवी माता की सहयोगी शक्तियों के लिए कच्ची महुआ शराब अर्पित तथा एक विशेष रंग की मुर्गी चुजा छोड़कर तांत्रिक अनुष्ठान भी किये जाते हैं।

माता रामपुरहीन की पूजा स्थली में प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्र एव चैत्र नवरात्र में धूमधाम से पूजा अर्चना होती है। अखंड मनोकामना दीप माला भक्तों द्वारा प्रज्वलित कराई जाती है। चैत्र माह नवरात्री के मौके पर मेले का भी आयोजन होता है। अपनी मनोकामना पूर्ण करने एवं मानता मानने वाले, बच्चों के मुंडन झाड़-फूंक कराने दूरदराज से दरबार में बंदगी करने पहुंचते हैं।

कुछ प्राचीन वाद्य यंत्र जैसे नगाडा आज भी ग्राम जेजगा सिद्धपीठ में पूजा करने वाले बैगा लोगों के पास विद्यमान है, इसका उपयोग शादी विवाह में खासकर किया जाता है। बैगा भानु प्रताप सिंह एवं ग्राम वाली प्रयाग राम ठाकुर की माने तो तांत्रिक क्रिया मारण, उच्चाटन, सम्मोहन, विदूषण करने कराने वाले माता भक्त के अलावा अपनी मनोकामना पूर्ति की आशा लेकर फरियाद करने माता रामपुरहीन के दरबार में पहुंचते हैं और चुनरी चुड़ी सिन्दूर श्रृंगार सामग्री चढ़ाकर बैगाओ से पूजा अर्चना कराते हैं।

माता रामपुरहीन के बारे में अनेकों प्रकार की प्रचलित दंत कथाएं किस्से किवन्दतिया आज भी कहे सुने जाते हैं। क्षेत्र के बैगा गुनिया तंत्र मंत, झाड फूंक करने वाले सर्व प्रथम माता रामपुरहीन के नाम को जोड़ने के साथ अपनी क्रिया आरंभ करते हैं। यह भी चलन में है क्योंकि रामपुरहीन माता रामपुरतपा की प्रख्यात देवी मानी जाती है। पहाड़ी के ऊपर माता का डेरा होने कारण श्रद्धालुओं को आने जाने में दिक्कत होती थी जिसे देखते हुए कालांतर में कुछ माता भक्तों ने माता के मूल स्थान तक सीढ़ी का निर्माण करवा दिया है।

आलेख

मुन्ना पाण्डे, वरिष्ठ पत्रकार लखनपुर, सरगुजा

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