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मानव इतिहास एवं प्राचीन सभ्यता जानने का प्रमुख साधन संग्रहालय

संग्रहालय मनुष्य को अतीत की सैर कराता है, जैसे आप टाईम मशीन में प्रवेश कर हजारों साल पुरानी विरासत एवं सभ्यता का अवलोकन कर आते हैं। मानव इतिहास एवं प्राचीन सभ्यता जानने का संग्रहालय प्रमुख साधन है। इसलिए संग्रहालयों का निर्माण किया जाता है, इतिहास को संरक्षित किया जाता है।

आने वाले दिनों के लिए मानव अतीत को भी सहेजता है जिससे आने वाली पीढ़ियों को ज्ञात हो सके कि उनके पूर्वजों का अतीत कैसा था? यही सहेजा गया अतीत इतिहास कहलाता है। बीत गया सो भूत हो गया पर भूत की उपस्थिति धरा पर है। सहेजे गये अतीत एवं कला संस्कृति के प्रदर्शन, संरक्षण के स्थान को संग्रहालय कहा गया।

आज भूगोल की सभ्यता को सहेजने वाले संग्रहालय का स्मरण दिवस है जिसे अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस प्रत्येक वर्ष 18 मई को मनाया जाता है। वर्ष 1983 में 18 मई को संयुक्त राष्ट्र ने संग्रहालय की विशेषता एवं महत्व को समझते हुए अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाने का निर्णय लिया।

इसका मूल उद्देश्य जनसामान्य में संग्रहालयों के प्रति जागरूकता तथा उनके कार्यकलापों के बारे में जन जागृति फैलाना था इसका यह भी एक उद्देश्य था कि लोग संग्रहालयों में जाने अपने इतिहास को अपनी प्राचीन समृद्ध परंपराओं को जाने और समझे।

अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के अनुसार संग्रहालय में ऐसी अनेक चीजें सुरक्षित रखी जाती हैं जो मानव सभ्यता की याद दिलाती है संग्रहालय में रखी वस्तु हमारी सांस्कृतिक धरोहर तथा प्रकृति को प्रदर्शित करती है।

वर्ष 1992 में अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद ने यह निर्णय लिया कि वह प्रत्येक वर्ष एक नए विषय का चयन करेंगे एवं जन सामान्य को संग्रहालय विशेषज्ञों से मिलने का संग्रहालयों की चुनौतियों से अवगत कराने के लिए स्रोत सामग्री विकसित करेंगे।

हमारे छत्तीसगढ़ राज्य का मुख्य संग्रहालय रायपुर में स्थित है। राजनांदगांव के राजा महंत घासीदास ने छत्तीसगढ़ का पुरावैभव संग्रह हेतु इसकी स्थापना की थी। यह भारत के आठ प्राचीन संग्रहालयों में से एक एवं मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सबसे प्राचीन संग्रहालयो में प्रमुख है। संग्रहालय के अन्तर्गत राजा महंत सर्वेश्रवरदास ग्रंथालय राज्य के सबसे पुराने ग्रंथालयों में से एक है।

महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय को 1875 में राजा महंत घासीदास ने बनवाया था। वर्ष 1953 में रानी ज्योति और उनके पुत्र दिग्विजय ने इस भवन का पुनर्निर्माण करवाया था। इस संग्रहालय में प्राचीन आयूधों के नमूने, प्राचीन सिक्के, मूर्तियाँ, शिलालेख, ताम्रपत्र आदि प्रदर्शित किए गए हैं।

साथ ही क्षेत्रीय आदिवासी जनजातीय परम्पराओं को प्रदर्शित करने वाले कई प्रादर्श यहाँ रखे गए है।सन 1953 को इस संग्रहालय भवन का लोकार्पण गणतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के करकमलों द्वारा किया गया। सूत्रों के अनुसार इस संग्रहालय में वर्तमान में कुल 17279 पुरावशेष एवं कलात्मक सामग्रियाँ हैं जिनमें 4324 सामग्रियां गैर पुरावशेष हैं तथा शेष 12955 पुरावशेष हैं।

संग्रहालय दिवस 18 मई को प्रति वर्ष संग्रहालय दर्शन नि:शुल्क किया जाता है तथा प्रवेश एवं फोटोग्राफी की छूट दी जाती है तथा भारत के कई संग्रहालयों में इस अवसर पर पुरावशेष संरक्षण जागरण हेतु संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर रायपुर संग्रहालय में भी गोष्ठी का आयोजन किया गया है जिसका सुधिजन लाभ उठा सकते हैं।

आलेख

ललित शर्मा इण्डोलॉजिस्ट रायपुर, छत्तीसगढ़

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