माँ एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर मन आनन्द से भर कर हिलोर लेने लगता है। माता, जननी, मम्मी, आई, अम्माँ इत्यादि बहुत से नामों से माँ को पुकारते हैं भाषा चाहे कोई भी हो पर माँ शब्द के उच्चारण मात्र से उसके आँचल की शीतल छाया एवं प्यार भरी गोद की सुखद अनुभूति होने लगती है। मनुष्य चाहे किसी आयु वर्ग का हो परन्तु माँ के सामने बच्चा ही रहता है। माँ के साथ बालपन का भाव स्वमेव ही आ जाता है।
माँ जन्मदात्री है। ईश्वर ने संसार की सृष्टि की तब धरती के लिए जीव की भी संरचना की। ईश्वर ने विचार किया कि सुंदर धरती के लिए जीव तो उन्होंने बना दिया परन्तु इस जीव की, वृद्धि, सुरक्षा, भरण-पोषण किस प्रकार होगा? वे सदैव तो धरती पर परोक्ष रूप से निवास नहीं कर सकते तो उन्होंने माँ को धरती पर भेजा। माँ के गर्भ में जीव पलता है और पूर्ण विकसित हो जन्म लेता है।
माँ वो अमोघ अस्त्र है जिसके उच्चारण मात्र से ही हर पीड़ा का नाश हो जाता है। माँ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, उसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है। शास्त्र कहते हैं कि माता निर्माता भवति, माता ही निर्माणकर्ती हैं, संतान के भविष्य का निर्माण माता के हाथों में दिया गया है। यह एक बड़ा दायित्व है, जिसके द्वारा राष्ट्र को सश्क्त एवं योग्य नागरिक मिलता है।
भारत में प्राचीन काल से ही मंदिरों के स्थापत्य में स्कंद माता का शिल्पांकन किया जाता रहा है। कुमार कार्तिकेय को स्कंद भी कहा जाता है इसलिए माता के रुप में स्कंद माता सर्वपुजित हैं तथा शिल्पकारों ने इन्हें अपने शिल्पांकन में प्रमुखता दी है। भारत के अनेक मंदिरों में इनकी प्रतिमा प्राप्त होती है। दक्षिण भारत में कार्तिकेय के अनेक मंदिर हैं। नवरात्रि में भी पांचवे दिन स्कंदमाता की आराधना की जाती हैं, इन्हें वात्सल्य एवं ममता की देवी माना जाता है।
माँ और उसकी सन्तान का सम्बन्ध अत्यंत घनिष्ठ होता है। सन्तान का माँ के साथ संबंध जीवन में अन्य संबंधों में से नौ महीने अधिक होता है। माँ और बच्चे का रिश्ता अनमोल केपवित्र और सच्चा और अटूट होता है। माँ और उसकी ममता के प्रति अपने प्रेम भावना अभिव्यक्त करने एवं उसके मातृत्व को सम्मान देने के लिए ‘मातृ -दिवस या मदर्स डे मनाया जाता है ऐसा माना जाता है कि अन्तर्राष्ट्रीय मदर्स डे को मनाने की शुरूआत अमेरिका से हुई थी।
1912 में जब एना जार्विस नाम की कार्यकर्ता की माँ का निधन हुआ तब उनके द्वारा समस्त माता और उनके गौरवमयी मातृत्व के लिए तथा पारिवारिक और उनके संबंधों को सम्मान देने के लिए इस दिन को मदर्स डे के रूप में मनाने की शुरुआत की। तब से मई माह के दूसरे रविवार को यह दिन मनाया जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार यह ग्रीस से प्रारंभ हुआ था। भारत में भी इसी दिन मातृ दिवस मनाया जाता है। वैसे पूरे विश्व में मदर्स डे की एक निश्चित तिथि में एकरूपता नहीं है ,परंतु माँ के प्रति सम्पूर्ण मानव जाति विभिन्न तरीकों से अपनी कृतज्ञता अवश्य प्रेषित करती है।
माँ अपनी संतान को इस संसार में लाने के लिए कितनी पीड़ा सहन करती है। इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। मनुष्य को जीवन में जब असहनीय पीड़ा होती है तो उसके आँसू बहने लगते हैं, माँ अपनी संतान को जन्म देते समय प्राण निकालने वाली असहनीय पीड़ा को भी सहन कर लेती है,परन्तु उसकी आँखों से आँसू नहीं निकलते क्योंकि वह सन्तान को सुरक्षित इस संसार में लाना चाहती है।
संतान के जन्म लेते ही वह उसके रोने की आवाज़ सुनते ही वह अपनी सारी पीड़ा को उसी क्षण भूल जाती है। यही समय ऐसा होता है जब माँ अपने बच्चे को रोता हुआ देख प्रसन्न होती है। इसके बाद वह जीवन भर रोते नहीं देख सकती। कहते हैं जब बच्चे का जन्म होता है तब माँ का पुनर्जन्म होता है। माँ अपना सर्वस्व अपने बच्चों में न्योछावर कर देती है।
स्वयं कष्ट सहते हुए भी कभी थकती नहीं। माँ की ममता में ऐसी शक्ति होती है की वह अपनी संतान की सुरक्षा एवं खुशी के लिए प्रकृति को भी चुनौती दे सकती है। माँ की ममता, प्रेम, दया, क्षमा, त्याग, निडरता, ज्ञान, संस्कार की प्रतिमूर्ति होती है।
माँ, बच्चे की पहली शिक्षक होती है। जो हमें हमारे बारे में बताती है। ईश्वर भजन स्मरण वाणी से होता है पर माँ तो हृदय में रहती है। माँ के प्रति सभी की भावनाएं ऐसी जुड़ीं होती हैं जैसे प्राणवायु। माँ सच्ची मित्र भी होती है। माँ ही वह प्राणी है जो कभी अपनी संतान को अकेला नहीं छोड़ती। वह सदैव हितचिंतक, शुभचिंतक, रक्षक, पथप्रदर्शक होती है। बच्चे को ईश्वर द्वारा दिया अनमोल उपहार माँ है।
महादेवी वर्मा जी ने लिखा है- ” संभवतः माँ ही ऐसा प्राणी है, जिसे कभी न देख पाने पर भी मनुष्य ऐसे स्मरण करता है, जैसे उसके संबंध में कुछ जानना बाकी नहीं। यह स्वाभाविक भी है। मनुष्य को संसार से बांधने वाला विधाता माँ ही है।” एक विद्वान का कथन है -” माँ ऐसा बैंक है जहां हम अपनी चोटों और परेशानियों को जमा कर सकते हैं।”
माता-पिता के महत्व को देवता भी स्वीकारते हैं। तभी गणेश जी ने पृथ्वी की परिक्रमा न कर पिता शिवजी माता पार्वती की परिक्रमा कर प्रथम पूज्य बन गए। उन्होंने कहा कि माता-पिता में ही पूरा संसार है, इसलिए पृथ्वी की परिक्रमा की आवश्यकता नहीं।
माँ की महिमा अनन्त है, माँ के बिना संसार अधूरा है। माँ की प्यार भरी पुचकार, स्पर्श औषधि के समान होती है। याद कीजिये बचपन में लगने वाली चोट को उसकी एक फूंक से और प्यार से सिर पर हाथ फेरने से ही ठीक हो जाती थी। कितनी शक्तिशाली होती है प्यार भरी झप्पी इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता पर अनुभव अवश्य किया जा सकता है। बच्चे की पीड़ा, मनःस्थिति को माँ खामोशी में भी समझ जाती है। माँ के हृदय से सदैव आर्शीवाद ही निकलता है।
माँ की ममता निःस्वार्थ होती है। माँ अपनी प्रशंसा या उपहार, इनाम की लालसा से कोई कार्यं नहीं करती। यदि माँ को सम्मान देना है तो मन, वचन, कर्म से कोई भी कार्य ऐसा न करें कि उसके हृदय को, उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचे। सदा सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए सद्कर्म करें।
माँ की सिखाई बातों का अनुसरण करते हुए अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करें और महान कार्य करें कि लोग आपकी अच्छाइयों से प्रेरित होकर परिवार, समाज,राष्ट्र हित में कार्य करें। माँ के लिए इससे बड़ा सम्मान और कुछ हो भी नहीं सकता जब उसकी सन्तान के द्वारा किये गए अच्छे कार्यों से सबका कल्याण और विकास हो, उसकी उपलब्धियां, सुख, प्रसन्नता, प्रगति ही माँ के लिए अनमोल उपहार है।
माँ की ममता के बदले एक दिन क्या पूरा जीवन कम है माँ के सम्मान के लिए। सभी माताओं को सम्मान देने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है इसके पीछे उद्देश्य है कि उस दिन सभी माँ के प्रति अपने आदर, सम्मान, प्रेम और इस अमूल्य जीवन के लिए धन्यवाद दें, क्योंकि हर सांस तो माँ की दी हुई है तो उसका सम्मान प्रतिदिन प्रतिक्षण होना चाहिए।
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