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पंडो जनजाति का लाटा त्यौहार

सरगुजा अंचल में निवासरत पंडो जनजाति का लाटा त्यौहार चैत्र माह में मनाया जाता है। लोक त्यौहारों में लाटा त्योहार मनाने प्रथा प्राचीन से रही है। पंडो वनवासी समुदाय के लोग इस त्यौहार को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। दरअसल यह त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रि के समय मनाया जाता है ।

जब प्रकृति द्वारा प्रदत्त आम पेड़ों में बौर लगे होते हैं, महुआ फूल टपकना आरम्भ हो जाता हैं, प्रकृति प्रेम के आगोश में सिमटे पंडों जनजाति के लोग खुशी की तलाश में एक नियत तिथि को लाटा त्यौहार मनाये जाने का एकजुट होकर निर्णय लेते हैं और बसाहट में ग्राम कोटवार द्वारा मुनादी कराते हैं कि लाटा त्योहार पड़ों बस्ती में फ़लां तिथि को मनाया जाएगा।

पंडो समुदाय के लोग एक निश्चित स्थान यानि किसी पंडो जनजाति के घर आंगन में एकत्रित होते हैं और लाटा त्यौहार मनाने पर आपसी सहमति बनाते हैं। यदि पंडों जनजाति के लोगों की माने तो अपने मुहल्ले में बसने वाले अपने घर के अलावा दूसरे सजातीयों के घरों में जाकर यह लाटा त्यौहार मनाते हैं।

इस सम्बन्ध में लखनपुर ब्लाक के बेलदगी पंचायत के आश्रित ग्राम घुई भवना पंडोंपारा निवासी बागर साय पंडों ने बताया कि पहले महुआ फूल, मक्का लाई, भूनी हुई तिशी को मिला कर कूटकर लाटा तैयार किया जाता है, फिर अपने-अपने घर में देवताओं, पितरों पूर्वजों को लाटा अर्पित कर, महुआ शराब चढ़ा कर तृप्त किया जाता है।

पूजा अनुष्ठान करते हैं इसके बाद अपने अपनो को तथा पारा टोला से आये इष्ट मित्रों को प्रसाद के रूप में लाटा खिलाया एवं महुआ की शराब पिलाई जाता है, चावल आटे से बने रोटी पकवान खिलाये जाते हैं। इस तरह आरंभ होता है लाटा त्यौहार मनाने का सिलसिला। पंडों जनजाति के लोग बारी बारी से एक-दूसरे के घरों में जाकर भोजन करते हैं।

यह त्यौहार प्राचीन काल से मनाया जा है। पंडो जनजाति के लोगों का मानना है कि इस त्यौहार के मनाने से पूर्वज खुश होते हैं, आशीष प्रदान करते है। नये महुआ से बनी शराब तथा लाटा पूर्वजों को जीवन काल में प्रिय था और दिवंगत होने के बाद भी बेहद पसंद हैं, इसी आस्था को लेकर पूर्वजों के लिए लाटा और महुआ शराब प्रसाद के रूप में अर्पण किया जाता है।

पंडो जनजाति के लोग आंगन में कतारबद्ध पतों में लाटा चढाते जाते हैं तथा उसी लाटा के उपर महुआ शराब का तर्पण किये जाता हैं। सही मायने में नया महुआ टपकने के साथ ही लाटा त्यौहार मनाने की सुगबुगाहट शुरू होती है। बताते हैं कि नये महुआ से बने शराब तथा तैयार लाटा सेवन करने से ग्रीष्म ॠतु की तपन सहने के लिए शारीरिक क्षमता विकसित होती है।

पंडों वनवासी समुदाय प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करते लाटा त्यौहार तकरीबन एक पखवाड़े तक मनाते हैं। भौगोलिक दृष्टि से सरगुजा जिले की वादियों में बसने वाले ये पंडों जनजाति समुदाय के लोग आज़ भी उन सदियों पुरानी परम्परा को समेटे रखे हैं जो वक्त के साथ मिटने लगी है।

लाटा त्योहार पंडों जनजातियों बस्ती में प्रसन्नता लेकर हर साल आता। इसे प्रकृति पूजा से भी जोड़ कर देखा जाता है। कुछ प्राचीन रीति रिवाज आज भी सघन जंगलों के हृदय स्थल में बसने वाले वनवासी समाज के लोग अपने पूर्वजों से विरासत में मिले धरोहर को संजोकर रखे हुए हैं।

इस तरह की प्रथा वनवासी बहुल इलाके आज भी इस आधुनिक समय में देखने सुनने को मिलती है। ना वे बदले हैं और ना उनकी परम्पराएं बदली है। महुआ से बनने वाले लाटा का अपना इतिहास है, प्राचीन काल में जब सूखा अकाल पड़ता था, वर्षों पानी नहीं बरसता था, तब भूखों मरने की नौबत आ जाती थी, ऐसी विषम परिस्थिति में लोग लाटा खाकर अपना जीवन व्यतीत करते थे।

लाटा शारीरिक पोषण का काम करता था। इसके महत्व को समझते हुए लाटा त्योहार मनाने की रिवाज आज भी जीवित है तथा इसके माध्यम से पितरों का स्मरण कर उन्हें भी तृप्त किया जाता है।

आलेख

श्री मुन्ना पाण्डे,
वरिष्ठ पत्रकार लखनपुर, सरगुजा

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