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हिन्दी को समृद्ध करती लोकभाषाएँ

भाषा भावों और विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम होती है। हिंदी एक प्रवाहमान, सशक्त भाषा है। हिंदी पहले साधारण बोलचाल की भाषा से धीरे-धीरे विकसित हो कर सम्पर्क एवं साहित्य की भाषा बनी। सम्पर्क भाषा बनने में स्थानीय क्षेत्रीय बोलियों का बड़ा योगदान होता है, इन बोलियों के बहुतेरे शब्द सम्पर्क भाषा में समाहित हो जाते हैं और जन उन्हें अंगीकार कर लेता है।

इसी तरह खड़ी बोली कही जाने वाले हिन्दी के विकास एवं संवर्धन में क्षेत्रीय बोली भाषाओं का बड़ा योगदान है। जब हिन्दी पट्टी कहलाने वाले क्षेत्र में ब्रजभाषा एवं अवधि में काव्य रचे जा रहे थे तब स्वामी दयानंद सरस्वती ने लगभग 150 वर्ष पूर्व सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिन्दी में की। उन्हें विश्वास था कि आने वाला भविष्य हिन्दी का होगा और यह देश में सम्पर्क भाषा के रुप में प्रतिष्ठित होगी।

बाबू देवकीनंदन खत्री ने जब उपन्यास लिखना प्रारंभ किया तब अधिकतर हिन्दू लोग भी उर्दू भाषा ही जानते थे। इन परिस्तिथियों में खत्री ने सोचा कि ऐसी रचना करना चाहिए जिससे हिन्दी का प्रचार प्रसार हो, यह इतना सरल कार्य नहीं था, किन्तु उन्होंने इसे कर दिखाया और चंद्रकांता उपन्यास की रचना हिन्दी में की। यह उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि जो हिन्दी लिखना पढ़ना नहीं जानते थे उन्होंने इस उपन्यास को पढ़ने के लिए हिन्दी सीखी।

हिन्दी का विकास इसी तरह हुआ और यह साहित्य की भाषा बनी। हिंदी के इस साहित्य रूप को नागरी हिंदी कहा गया जो देवनागरी लिपि में लिखी गई। नागरी शब्द से नागरी लिपि में लिखित भाषा के साथ-साथ नागरिक अर्थात सुसंस्कृत भाषा का भी बोध होता है।

हिंदी भारत का प्राण तत्व है। प्राण तत्व वह भाषा होती है जिसका राष्ट्रव्यापी व्यापार होता है। जो राष्ट्र की संस्कृति का प्रतीक होती है और राष्ट्रीय शक्तियों को संगठित करने का कार्य करती हैं। देश की परंपराओं एवं विभिन्न विचार धाराओं की पोषिका, शक्ति संपन्न, समृद्ध साहित्य तथा सार्वजनिक विचार विनिमय में सहज भाषा ही मुख्य भाषा के पद पर सुशोभित हो सकती है। इसप्रकार हिंदी ऐतिहासिक, भौगोलिक सांस्कृतिक, साहित्यिक, भाषाशास्त्रीय दृष्टि से मुख्य सम्पर्क भाषा के अर्थ को सार्थक करने की क्षमता रखती है।

हिंदी फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ है हिन्द देश के निवासी। ‘हिंदी’मानक रूप है एवं ‘हिन्दी’ में आधा न् पहले लिखा जाता था। हिंदी लगभग एक हजार वर्ष पुरानी मानी जाती है। इसकी उत्पत्ति सिंधु शब्द से हुई। जिसका संबंध सिंधु नदी से था। जब ईरानी उत्तर-पश्चिम से भारत आए तो सिंधु नदी के आसपास रहने वाले लोगों को हिन्दू कहा। क्योकि वे ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ करते थे। यही सिंधु से हिन्दू, हिन्दू से हिन्द बाद में हिंदी बना।

प्राचीन हिंदी का अभिप्राय अपभ्रंश’ अवहट्ट (ग्यारहवीं से लेकर चौदहवीं शती के अपभ्रंश रचनाकारों ने अपनी भाषा को ‘अवहट्ट’ कहा।) के बाद की भाषा से है। जिसे हिंदी का शिशुरूप माना जा सकता है। चूंकि हिंदी का विकास केवल अपभ्रंश से संभव नहीं था

अपभ्रंश के सम्बन्ध में ‘देशी’ शब्द की भी बहुधा चर्चा की जाती है। वास्तव में ‘देशी’ से देशी शब्द एवं देशी भाषा दोनों का बोध होता है। भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों से भिन्न हैं। ये ‘देशी’ शब्द जनभाषा के प्रचलित शब्द थे, जो स्वभावतः अप्रभंश में भी चले आए थे। जनभाषा व्याकरण के नियमों का अनुसरण नहीं करती, परन्तु व्याकरण को जनभाषा की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड़ता है। प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि की प्रकृति माना। अतः जो शब्द उनके नियमों की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज्ञा दी गयी।

हिंदी को संस्कृत का आधार

संस्कृत भारतीय संस्कृति-सभ्यता और भारतीय चिंतन का प्रतीक है। संस्कृत ने समस्त भारत को एकता के सूत्र में बांधते हुए विश्व को एक समन्वित संस्कृति भी प्रदान की है। हिंदी भाषा का वैभव संस्कृत पर ही मूल रूप से आधारित है। हिंदी में नित नवीन प्रयोगों के लिए वैज्ञानिक शब्दों की खोज का मुख्य केन्द्र संस्कृत ही है। ‘गुरूर्भावो लघुर्भव’संस्कृत का बल लेकर ही हिंदी अपने गुरुभार को वहन कर सकने में समर्थ हो सकी है।

हिन्दी एवं लोकभाषाओं एवं बोलियों का अंतर संबंध

हिंदी और लोकभाषाओं एवं बोलियों का घनिष्ठ संबंध है। क्षेत्र विशेष में बोली जाने वाली हिंदी पर अंचल की लोक भाषा-बोली का प्रभाव परिलक्षित होता है। हिंदी ठेठ शैली का अनुसरण करती है। व्यवहार की दृष्टि से हिंदी से विदेशी, देशज एवं संस्कृत के शब्द नहीं निकाले जा सकते। सभी शब्दों के संतुलित प्रयोग से हिंदी लोकव्यवहार में लाई जाती है। हिंदी व्याकरण संबंधी कठोर नियमों से बँधी नहीं थी इसलिये परस्पर आदान प्रदान द्वारा विकसित होती चली गई। हिंदी और इसकी बोलियां भारत के विभिन्न राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखण्ड, जम्मू और कश्मीर (२०२० से) उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में बोली जाती है।

हिंदी के दो रूप – पूर्वी हिंदी एवं पश्चिमी हिंदी।

पूर्वी हिंदी की ग्रामीण बोलियाँ अवधी, बघेली, छतीसगढ़ी है। तीनों बोलियां मिलती जुलती हैं। परंतु छत्तीसगढ़ी बोली पर पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र और उड़ीसा के प्रभाव दिखाई देता है। छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी, खलरेठी, लरिया, सरगुजिया नाम से ये बोली प्रचलित है।

पश्चिमी हिंदी के अंतर्गत हिन्दोस्तानी, बांगरू, ब्रज, कन्नौजी तथा बुंदेली बोलियां आती हैं। राजस्थानी वर्ग क्षेत्र में मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती, मालवी तथा पहाड़ी वर्ग क्षेत्र में पश्चिमी पहाड़ी एवं कुमांयूनी, गढ़वाली बोलियां आती हैं। बिहार में भोजपुरी, मगही, मैथिली बोलियां बोली जाती हैं। हिंदी उत्तर भारत में बोली जाने वाली सभी बोलियों और भाषाओं का प्राचीनतम और सरलतम नाम है।

हिंदी विचार -विनिमय तथा सम्पर्क-साधक भाषा है जो भारत की सर्वाधिक जनसंख्या के द्वारा बोली जाती है। विदेशों में जैसे फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात में भी हिन्दी या इसकी मान्य बोलियों का उपयोग बड़ी संख्या में लोगों द्वारा किया जाता है।

कम्प्यूटर और इंटरनेट के क्षेत्र में भी हिंदी के प्रयोग से विश्व में सूचना क्रांति आ गई है। गूगल सर्च इंजन हिंदी को प्राथमिक भारतीय भाषा के रूप में पहचानते हैं। हिंदी के प्रयोग ने जनता का कार्य सरल कर दिया है। हिन्दी और भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का डिजिटलीकरण जारी है। सोशल मीडिया ने हिन्दी में लेखन और पत्रकारिता के नए युग का सूत्रपात किया है। अनेक कम्पनियाँ अपने उत्पाद और वेबसाइटें हिन्दी और स्थानीय भाषाओं में ला रहीं हैं।

आज हिंदी का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। आज की हिंदी न तो खड़ी बोली का रूप है ना ही केवल हिंदुओं की भाषा। हिंदी समस्त राष्ट्र की भाषा है। जिस तरह इन सौ वर्षों में स्थानीय बोलियों एवं लोकभाषाओं ने इसे समृद्ध कर विकास किया है, इससे वर्तमान में यह राजभाषा से ऊपर उठकर राष्ट्रभाषा का मुकुट पहनने के लिए द्वार पर खड़ी है।  

संदर्भ
हिंदी भाषा का इतिहास– प्रो.ओमप्रकाश ‘तरुण’
भाषाविज्ञान- डॉ. पारसनाथ तिवारी
हिंदी विकिपीडिया, हिंदी की दुनिया।
हिन्दी कहानी, हिन्दी कविता डॉट कॉम

आलेख

श्रीमती रेखा पाण्डेय (लिपि) हिन्दी व्याख्याता अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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