अपनी लगभग 77 वर्षों की सुदीर्घ साहित्य साधना से छत्तीसगढ़ और बस्तर वनांचल को देश और दुनिया में पहचान दिलाने वाले लाला जगदलपुरी आज अगर हमारे बीच होते तो आज 17 तारीख़ को अपनी जीवन यात्रा के सौ वर्ष पूर्ण कर 101 वें वर्ष में प्रवेश कर चुके होते।
लेकिन अफ़सोस कि उनकी तकरीबन पौन सदी से भी अधिक लम्बी साहित्य साधना विगत 14 अगस्त 2013 को अचानक हमेशा के लिए थम गयी ,जब अपने गृहनगर जगदलपुर में उनका देहावसान हो गया। इसी जगदलपुर में उनका जन्म 17 दिसम्बर 1920 को हुआ था।
उन्होंने, सादगीपूर्ण जीवन जिया। वह एक समर्पित साहित्य साधक और तपस्वी साहित्य महर्षि थे। उनके सौवें जन्म वर्ष के उपलक्ष्य में बस्तर जिला प्रशासन ने जगदलपुर स्थित शासकीय जिला ग्रंथालय का नामकरण उनके नाम पर करने का निर्णय लिया है। यह निश्चित रूप से स्वागत योग्य निर्णय है।
जिला ग्रंथालय के नामकरण का मुख्य कार्यक्रम उनके जन्म दिन पर आयोजित किया जाएगा। यह ग्रंथालय जगदलपुर के शासकीय बहुउद्देश्यीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय परिसर में स्थित है। इस ग्रंथालय के एक हिस्से में लाला जी की रचनाओं, उनकी पुस्तकों और उनसे यशस्वी जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण वस्तुओं का संकलन भी प्रदर्शित किया जाएगा।
लाला जी को छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर रायपुर में आयोजित राज्योत्सव 2004 में प्रदेश सरकार की ओर से पंडित सुन्दरलाल शर्मा साहित्य सम्मान से नवाजा गया था, उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि सहित ग़ज़ल संग्रह ‘ मिमियाती ज़िन्दगी – दहाड़ते परिवेश’ एक हिन्दी ग़ज़ल यहाँ प्रस्तुत है —
दुर्जनता की पीठ ठोंकता
सज्जन कितना बदल गया है !
दहकन का अहसास कराता,
चंदन कितना बदल गया है ,
मेरा चेहरा मुझे डराता,
दरपन कितना बदल गया है !
आँखों ही आँखों में सूख गई
हरियाली अंतर्मन की ,
कौन करे विश्वास कि मेरा
सावन कितना बदल गया है !
पाँवों के नीचे से खिसक-खिसक
जाता सा बात-बात में ,
मेरे तुलसी के बिरवे का
आँगन कितना बदल गया है !
भाग रहे हैं लोग मृत्यु के
पीछे-पीछे बिना बुलाए
जिजीविषा से अलग-थलग
यह जीवन कितना बदल गया है !
प्रोत्साहन की नई दिशा में
देख रहा हूँ, सोच रहा हूँ ,
दुर्जनता की पीठ ठोंकता
सज्जन कितना बदल गया है !
लाला जगदलपुरी ने हिन्दी और छत्तीसगढ़ी सहित बस्तर अंचल की हल्बी और भतरी लोकभाषाओं में भी साहित्य सृजन किया। उनकी प्रमुख हिंदी पुस्तकों में वर्ष 1983 में प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह ‘मिमियाती ज़िन्दगी दहाड़ते परिवेश’ वर्ष 1992 में प्रकाशित काव्य संग्रह ‘पड़ाव’, वर्ष 2005 में प्रकाशित आंचलिक कविताएं और वर्ष 2011 में प्रकाशित ज़िन्दगी के लिए जूझती गज़लें तथा गीत धन्वा शामिल हैं। उनके द्वारा सम्पादित चार कवियों के सहयोगी काव्य संग्रह ‘हमसफ़र’ का प्रकाशन वर्ष 1986 में हुआ। इसमें बहादुर लाल तिवारी, लक्ष्मीनारायण पयोधि, गनी आमीपुरी और स्वराज्य करुण की हिन्दी कविताएं शामिल हैं।
मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी भोपाल द्वारा वर्ष 1994 में प्रकाशित लाला जगदलपुरी की पुस्तक ‘बस्तर : इतिहास एवं संस्कृति’ ने छत्तीसगढ़ के इस आदिवासी अंचल पर केन्द्रित एक प्रामाणिक संदर्भ ग्रंथ के रूप में काफी प्रशंसा अर्जित की।
वर्ष 2007 में इस ग्रंथ का तीसरा संस्करण प्रकाशित किया गया। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर हरिहर वैष्णव द्वारा सम्पादित एक महत्वपूर्ण पुस्तक “लाला जगदलपुरी समग्र’ का भी प्रकाशन हो चुका है।
छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी रायपुर द्वारा लाला जी की पुस्तक ‘बस्तर की लोकोक्तियाँ’ वर्ष 2008 में प्रकाशित की गयी। उनकी हल्बी लोक कथाओं का संकलन लोक चेतना प्रकाशन जबलपुर द्वारा वर्ष 1972 में प्रकाशित किया गया। लाला जी ने प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों का भी हल्बी में अनुवाद किया था । यह अनुवाद संकलन ‘प्रेमचंद चो बारा कहनी ‘ शीर्षक से वर्ष 1984 में वन्या प्रकाशन भोपाल ने प्रकाशित किया था।
आलेख
![](http://dakshinkosaltoday.com/wp-content/uploads/2020/02/78705714_2529120523873391_964417490224414720_o.jpg)
साहित्यकार
रायपुर, छत्तीसगढ़