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गुरु घासीदास जी के सात संदेश एवं बयालिस अमृतवाणियाँ

गुरु घासीदास जी के पूर्वज उत्तरी भारत में हरियाणा के नारनौल के निवासी थे। वे सतनाम संप्रदाय से संबंधित थे। सन् 1672 में मुगल बादशाह औरंगजेब से युद्ध के बाद नारनौल के सतनामी यहां से पलायन कर गए। इनमें से कुछ उत्तर प्रदेश में जा बसे और कुछ उड़ीसा के कालाहांडी जिले में जाकर नौकरी-चाकरी कर या अन्य व्यवसाय कर अपना पेट पालने लगे। कुछ परिवार महानदी के किनारे-किनारे होते हुए मध्य प्रदेश में चंद्रपुर जमींदारी के क्षेत्र में जा पहुंचे।

यह वह समय था जबकि बादशाह औरंगजेब ने यह फरमान जारी कर दिया था कि जो भी राजा, नवाब, जमींदार या सूबेदार इन सतनामियों को शरण देगा, उसे कठोर दंड दिया जाएगा और यह मुगल सल्तनत के खिलाफ बगावत मानी जाएगी। कुछ राजाओं, नवाबों, जमींदारों और सूबेदारों ने मुगल बादशाह के खौफ से इन सतनामियों को अपने इलाके से भगा दिया, कुछ ने इन्हें पकड़कर बादशाह को सौंप दिया और कुछ राजाओं ने इन्हें शरण तो नहीं दी, लेकिन राज्य से होकर दूर किसी राज्य में चले जाने की छूट ज़रूर दे दी।

चंद्रपुर पहुंचे ये सतनामी यहां से महराजी नवापारा होते हुए सोनाखान के इलाके के जंगलों में जा पहुंचे। सतनामी बहुत ही बहादुर, स्वाभिमानी और परिश्रमी थे। इनको दूसरों की दया पर जिंदा रहना और उनके दिए टुकड़ों पर पड़े रहना मंजूर नहीं था। इन्होंने यह सोचकर कि जिन्दा रहेंगे जो संगठित होकर फिर अपनी अस्मिता कि रक्षा के लिए संघर्ष करेंगे। यहां के जंगलों को काट कर रहने योग्य बनाया।

यहां की उबड़-खाबड़ पथरीली जमीन को खेती योग्य बनाया और खेती कर अपना भरण-पोषण करने लगे। इन्हीं सतनामियों में मेदिनीदास गोसाई का परिवार भी था, जिसमें आगे चलकर पौत्र के रूप में गुरु घासीदास ने जन्म लिया, जिन्होंने मनुष्य को सर्व शक्तिमान के रूप में माना।

गुरु घासीदास जी का जन्म

गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 में छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदाबाजार जिला में स्थित गिरौदपुरी गांव में हुआ। गुरू घासीदास के पिता का नाम महंगुदास व माता का नाम अमरौतीन व पत्नी का नाम सफुरामाता था। गुरू बाबा घासीदास जी व सफुरामाता के सुभद्रादेवी, गुरू अमरदास जी, गुरू बालकदास जी, गुरू आगरदास जी व गुरू अड़गडि़हादास जी नामक पांच संतान हुए।

गुरु घासीदास जाति-व्यवस्था को घृणित मानव कर्म व समाज के लिए सबसे बड़ा कोढ़ मानते थे। उनका मानना था कि यह जाति व्यवस्था ही है जिसके कारण देशवासियों को सैकड़ों सालों तक गुलामी का जुआ अपने कंधों पर ढोना पड़ा। जब तक जाति व्यवस्था रूपी कोढ़ का खात्मा नहीं होगा, जाति भेद-भाव खत्म नहीं होगा, तब तक देश में राष्ट्रीय एकता का सूरज उदय नहीं होगा। यह तभी संभव हो सकता है, जब देश में जाति-विहीन समाज की स्थापना हो।

वह कहते थे कि इसी जात-पांत ने देश में समाज को कभी एक नहीं होने दिया। इसके कारण ही अछूत समाज कभी सम्मान की जिंदगी नहीं जी सका। उन्होंने समकालीन सामाजिक परिस्थितियों के आंकलन से निष्कर्ष निकाला कि जब तक यह बहुसंख्यक जातियां बिखरी रहेंगी, उनका इसी तरह शोषण-उत्पीडऩ होता रहेगा और सम्मान की जिंदगी जीने की योग्यता हासिल नहीं कर सकेंगी।

वे यह जानते थे कि किस तरह मानव समाज का एक टुकड़ा अपने स्वार्थ के लिए पूरे समाज को भेड़-बकरियों की तरह हाँक रहा है और उन्हें आपस में लड़ाता रहता है। इसी जातिवाद की वजह से देश को सैकड़ों सालों तक विदेशियों और गुलामों का भी गुलाम रहने को विवश होना पड़ा। विसंगतियों से छुटकारा दिलाने उनमें स्वाभिमान पैदा करने व एकता स्थापित करने हेतु ही जाति-विहीन समाज की संरचना करने के लिए सतनामी धर्म की स्थापना की।

गुरु घासीदास जी के सात दिव्य संदेश

1- सतनाम को मानो, सत्य ही ईश्वर है और ईश्वर ही सत्य है। सत म धरती सत म अकास।
2- सभी जीव समान हैं। जीव हत्या पाप है। पशु बलि अंध विश्वास है।
3- माँसाहारी मत बनो, नशा मत करो।
4- मूर्ति पूजा मत करो।
5- दोपहर में हल मत जोतो।
6 – पर नारी को माता जानो, आचरण की शुद्धता पर जोर दो।
7 – चोरी करना पाप है। हिंसा करना पाप है। सादा जीवन उच्च विचार रखो।

गुरु घासीदास जी की बयालिस अमृतवाणियाँ

1- सत ह मानव के आभुषण आय।
2 – मनखे मनखे एक समान।
3 – पानी पीहू छान के, गुरु बनाहू जान के।
4 – अपन ल हीनहर अऊ कमजोर झन मानहू।
5 – सत ल कमजोर झन मानहू।
6 – जइसे खाबे अन्न, तइसे बनही मन।
7 – मेहनत के रोटी ह सुख के आधार ए।
8 – रिस अऊ भरम ल तियागथे तेखर बनथे।
9 – भीख के लेवईया पापी अऊ भीख के देवईया पापी।
10 – मोह ह सबो संत के आय, अऊ तोर हीरा ह मोर बर कीरा आय।
11 – पहुना ल साहेब समान जानिहौ।
12 – सगा के जबर बैरी सगा होथे।
13 – सबर के फ़ल मीठ होथे।
14 – मया के बंधना असली ए।
15 – दाई – ददा अऊ गुरु ल सनमान देवव।
16 – दाई ह दाई आय, मुरही गाय के दूध झन निकालहव्।
17 – इही जनम ल सुधारना सांचा हे।
18 – सतनाम घट घट म समाय हे।
19 – गियान के पंथ किरपान के धार ए।
20 – एक धूबा मारे तुहू तोर बरोबर आय।
21 – मोला देख, तोला देख, बेर कुबेर देख, जौन हक तेन ला बांट बिराज के खा ले।
22 – जतेक हावो सब मोर संत आव।
23 – गाय भैंइस ल नांगर म झन जोतबे।
24 – मांस ल झन खाबे।
25 – जान के मरई ह तो मारब आय, कोनो ल सपना म मरई ह घलो मारब आय।
26 – पान, परसाद, नरियर सुपारी चढ़ाना ढोंग आय।
27 – मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, संत द्वार बनई ह मोर मन ल भावय नहीं, बनाए के हे तो बांध बना, तरिया बना, कुंआ खोदा, दुर्गम ल सुगम बना।
28 – कोनो जीव ल झन मारबे, जीव हत्या पाप आय।
29 – बारह महीना के खर्चा बटोर, फ़ेर भक्ति करबे।
30 – मरे के बाद पीतर मनई मोला बइहाई लागथे।
31 – चुगली अऊ निंदा ह घर बिगाड़थे।
32 – पेड़, रुख राई ल झन काटिहौ।
33 – धन ल उड़ा झन, बने काम म खर्च कर।
34 – ये धरती तोर ए, एखर सिंगार कर।
35 – दीन दुखी के सेवा सबले बड़े धरम आय।
36 – काखरो बर कांटा झन बो।
37 – घमंड का करथस, सब नसा जाही।
38 – झगरा के जर नइ होय, ओखी खोखी होथे।
39 – नियाव सब बर बरोबर होथे।
40 -धरमात्मा उही हे जौन धरम करथे।
41 – बैरी संग घलो पिरीत रखबे।
42 – मोर संत मन मोला काखरो ले बड़े झन कहिहौ, नइते मोला हुदेसना म हुदेसना आय।

आलेख

डॉ. जे.आर. सोनी,
पूर्व अध्यक्ष,
गुरु घासीदास शोध पीठ,
रविवि, रायपुर (छ.ग.)

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