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भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी

आज हिंदी दिवस है, हिंदी हमारे देश के अधिकांश भू-भाग पर बोली जाने वाली, व्यवहरित होने वाली भाषा है। यह नागरी लिपि में लिखी जाती है। वर्तमान में बहुसंख्यक लोगों के आम व्यवहार में होने के कारण यह भारत में रोजगार की भाषा भी है। एक भाषा के रूप में अगर हिंदी भाषा की विकास यात्रा की बात करें तो यह एक लंबी और सतत प्रक्रिया है।

एक भाषा के विकास में उस समाज और संस्कृति की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है जहाँ पर ये बोली जाती है। हिंदी भाषा के विकास में भी समाज और संस्कृति की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, खासकर उत्तर भारतीय राज्यों की भूमिका। भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत रही है और इसी भाषा के विभिन्न कालखंडों में अलग-अलग स्वरूपों में हुए वियोजन से हिंदी का विकास हुआ है।

संस्कृत भाषा से पालि, पालि से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश, अपभ्रंश से अवहट्ट, अवहट्ट से पुरानी हिंदी और पुरानी हिंदी से आधुनिक हिंदी का विकास हुआ है जिसे आज हम बोलते है। हालांकि इसे लेकर मतभेद है कि अपभ्रंश से हिंदी का विकास हुआ है या पुरानी हिंदी से। मगर वर्तमान भाषाविज्ञानी इसे अपभ्रंश से ही विकसित हुआ मानते है।

अगर हिंदी भाषा के विकास के कालखंड की बात करें तो यह तीन कालों में विकसित हुई- पहला कालखंड 1100 ईस्वी – 1350 ईस्वी का माना जाता है, इसे प्राचीन हिंदी का काल कहा जाता है। दूसरा कालखंड मध्य काल (1350 ईस्वी – 1850 ईस्वी) कहा जाता है। इस काल में हिंदी भाषा की बोलियों अवधी और ब्रज में विपुल साहित्य रचा गया। तीसरा कालखंड 1850 ईस्वी से अब तक माना जाता है और इसे आधुनिक काल की संज्ञा दी जाती है। इस काल में हिंदी भाषा का स्वरूप बेहद तेजी से बदला है।

भारत में स्वतंत्रता पश्चात संविधान सभा द्वारा देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी को देश में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा के रूप में दर्जा प्राप्त हुआ। 1918 के हिन्दी साहित्य सम्मेलन में गाँधी जी ने हिंदी भाषा को राजभाषा बनाने को कहा क्योंकि हिंदी को वे जनमानस की भाषा मानते थे।

14 सितंबर को विचार-विमर्श पश्चात भारतीय संविधान सभा के भाग 17 के अध्याय के अनुच्छेद 343(1) में इस प्रकार वर्णित है- “संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिया प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतरराष्ट्रीय रूप होगा।”

यह निर्णय 14 सितंबर को संविधान सभा में एकमत से लिया गया। हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने एवं भारत की भाषाई विविधता को को बढ़ाने के उद्देश्य से राष्ट्र भाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर हिंदी को वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।

हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने के लिए ब्यौहार राजेंद्र सिंह की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी को राजभाषा के लिए रूप में स्थापित करने के लिए काका कालेलकर, मैथिली शरण गुप्त, हजारी प्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविंद दास के साथ मिलकर राजेंद्र सिंह ने अथक प्रयास किया और दक्षिण भारत की कई यात्राएं की थी।

उन्होंने अमेरिका में आयोजित विश्वधर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सर्वधर्म सभा में हिंदी में भाषण दिया। 14 सितंबर को हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार ब्यौहार राजेंद्र सिंह का 50 वां जन्मदिन था। इस कारण हिंदी दिवस के रूप में 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया।

एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है। बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं।

यह विश्व में दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है जो हमारे पारम्‍परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्‍यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिंदी भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल अन्य इक्कीस भाषाओं के साथ हिंदी का एक विशेष स्थान है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है।

वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी के बढ़ते प्रचलन को देख हिंदी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हिन्दी दिवस मनाया जाता है। भारत विविधताओं का देश है धर्म, परंपराओं, भाषा, बोली प्रत्येक क्षेत्र में अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं। यहां विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। लेकिन सबसे अधिक हिंदी लिखी-पढ़ी जाती है।

हिंदी शब्द का संकुचित अर्थ है खड़ी बोली, साहित्यिक हिंदी जो वर्तमान में हिंदी प्रदेशों की सरकारी भाषा है। समाचार पत्रों, फ़िल्मों में जिसका प्रयोग होता है और हिंदी प्रदेशों में शिक्षा का माध्यम है। जिसे परिनिष्ठित या मानक हिंदी भी कहा जाता है।

सभ्यता के विकास में यह अतिआवश्यक है कि एक भाषा क्षेत्र (जिनमें कई बोलियां हों) की कोई एक बोली मानक मान ली जाए और पूरे क्षेत्र से संबंधित कार्यों के लिए उसका प्रयोग हो। उसे मानक या परिनिष्ठित भाषा कहा जाता है। जिसका उपयोग शिक्षित वर्ग शिक्षा, पत्र-व्यवहार, समाचार, पत्रादि में एवं साहित्य रचना में करते हैं।

एक बोली जब मानक भाषा बनती है तो वह प्रतिनिधि बन जाती है। आदर्श भाषा बनने के बाद वह उन्नत होकर पूरे देश एवं अन्य भाषा क्षेत्र एवं भाषा परिवार में सार्वजनिक रूप से प्रयोग होने लगती है। तभी राष्ट्रभाषा या राजभाषा बनती है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था-“जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य का गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता।”

हिंदी का ज्ञान रखने वाले, हिंदी के प्रति अपने कर्तव्य का बोध कराने, हिंदी के महत्व एवं प्रयोग को प्राथमिकता देने के उद्देश्य से हिंदी दिवस मनाते है। केन्द्र हिंदी भाषा के विकास पर विशेष बल देता है। जिससे विभिन्न कार्यालय, विभाग हिंदी का उपयोग करें और जो हिंदी का अच्छा एवं सही उपयोग करता है उसे पुरस्कृत भी किया जाता है।

हिंदी को बढ़ावा देने एवं इसके प्रति रुचि बढ़ाने के उद्देश्य से सितंबर माह में हिंदी पखवाड़ा आयोजित किया जाता है। हिंदी दिवस पर राजभाषा कीर्ति एवं राजभाषा गौरव पुरस्कार दिया जाता है। राजभाषा कीर्ति पुरस्कार समिति, विभाग, मंडल आदि को उसके द्वारा हिंदी में किए गए श्रेष्ठ कार्यों के लिए दिया जाता है तथा राजभाषा गौरव पुरस्कार तकनीकि या विज्ञान विषय के क्षेत्र में हिंदी में लिखने पर दिया जाता है।

हिंदी भाषा भावाभिव्यक्ति का साधन है तथा समाजिक एवं सांस्कृतिक रूप देश को एकता के सूत्र में भी बांधती है। अगर हिंदी भाषा की वैश्विक स्थिति की बात की जाए तो यह विश्व के 150 से अधिक देशों में फैले एक अरब 2 करोड़ से अधिक भारतीयों द्वारा बोली जाती है।

इसके अलावा 40 देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में पढाई जाती है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा मंदारिन है तो दूसरा स्थान हिंदी भाषा का है। इसके अलावा भारत और फिजी की यह राजभाषा है।

स्वतंत्रता के 75 वर्ष बीतने एवं हिन्दी के लिए इतना कुछ होने के बाद भी हिन्दी राज्य भाषा से राष्ट्र भाषा नहीं बन पाई, जबकि राष्ट्रभाषा किसी देश को एक करने के लिहाज से बेहद महत्त्वपूर्ण होती है। यही कारण है कि महात्मा गांधी ने वर्ष 1917 में गुजरात के भरूच में हुए गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की वकालत की थी-

“भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है।”

हिंदी आम आदमी की भाषा के रूप में देश की एकता का सूत्र है। सभी भारतीय भाषाओं की बड़ी बहन होने के नाते हिंदी विभिन्न भाषाओं के उपयोगी और प्रचलित शब्दों को अपने में समाहित करके सही मायनों में भारत की संपर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है।

हिंदी जन-आंदोलनों की भी भाषा रही है। हिंदी के महत्त्व को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े सुंदर रूप में प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी’। हिंदी के इसी महत्व को देखते हुए तकनीकी कंपनियां इस भाषा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं।

स्रोत –

1-Hindi news.18.com
2-हिंदी दिवस :navbharat times
3-भाषा विज्ञान: भोलानाथ तिवारी
4-हिंदी दिवस :prabhatkhabar.com
5-दृष्टि आईएएस ब्लॉग drishtiias.com
6-भारत सरकार की वेबसाइट-blog.mygov.in

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