1 मार्च 1924 : चार्ल्स ट्रेगार्ट को मौत के घाट उतारने का प्रयास
पराधीनता के दिनों में कुछ अंग्रेज अधिकारी ऐसे थे जो अपने क्रूरतम मानसिकता के चलते भारतीय स्वाधीनता सेनानियों से अमानवीयता की सीमा भी पार जाते थे। बंगाल में पदस्थ ऐसा ही अधिकारी चार्ल्स ट्रेगार्ट था। जिसे मौत के घाट उतारने का निर्णय सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी गोपीनाथ साहा ने लिया। समय पर हमला बोला वह बच गया लेकिन एक अन्य नागरिक मारा गया जिस आरोप में साहा को फाँसी दी गई।
यह घटना 1924 की है। बंगाल ही नहीं देश के विभिन्न भागों में क्राँतिकारी चरम पर था। अंग्रेज सरकार ने क्राँतिकारी आँदोलन का पूरी तरह दमन करने की रणनीति अपनाई इसके लिये खुफिया तंत्र मजबूत किया तथा कुछ विश्वासघात तलाश किये। जिनके माध्यम से पकड़े गए क्राँतिकारियों के साथ क्रूरतम व्यवहार करके जानकारी प्राप्त करने का अभियान चलाया।
इसी रणनीति के अंतर्गत चार्ल्स टेगार्ट को बंगाल खुफिया विभाग के प्रमूख के रूप में पदस्थापना हुई। इसने पकड़ धकड़ शुरु की। सूचना ही नहीं संदेह के आधार पर पकड़े गए लोगों के साथ भी अमानुषिक व्यवहार करके जानकारी उगलवाने का प्रयास करता। विशेषकर महिला क्राँतिकारियों के साथ तो ऐसा व्यवहार करता था जिसका वर्णन तक नहीं किया जा सकता। अततः क्राँतिकारियों की संस्था युगान्तर पार्टी ने इस अधिकारी को रास्ते से हटाने का निर्णय लिया और यह काम क्राँतिकारी गोपीनाथ साहा को सौंपा।
गोपीनाथ साहा का जन्म पश्चिम बंगाल में हुगली जिला अंतर्गत ग्राम सरामपुर में 16 दिसम्बर 1901 को हुआ था। पिता विजय कृष्ण साहा का परिवार क्षेत्र में प्रतिष्ठित था। घर में भारतीय संस्कार और स्वाभिमान संपन्न जीवन का वातावरण था। बालक गोपीनाथ को आधुनिक शिक्षा के लिये विद्यालय भेजा। पर किशोर व्यय से ही सामाजिक जागरण की गतिविधियों से जुड़ गये। परिवार से संबंधित थे।
उनका झुकाव क्राँतिकारी आँदोलन के प्रति था। उनका संपर्क भी बढ़ा। तभी1921 में असहयोग आंदोलन आरंभ हुआ। युवा गोपीनाथ इससे जुड़ गए। लेकिन चौरी चौरा काँड के बाद गाँधी जी ने आँदोलन वापस ले लिया। इससे गोपीनाथ सहित युवाओं की पूरी टोली निराश हुई और गोपीनाथ अपने पुराने मित्र देवेन डे, हरिनारायण और ज्योशि घोष के माध्यम से ‘युगान्तर दल’ में सक्रिय हो गए।
उन्हीं दिनों कलकत्ता पुलिस की गुप्तचर शाखा प्रमुख के रूप में चार्ल्स टेगार्ट की पदस्थापना हुई। उसने क्रान्तिकारी आन्दोलन को सख्ती से दमन करने का अभियान चलाया और देशभक्तों पर बहुत ज़ुल्म ढाने लगा उसकी कार्यवाही पर न कोई अपील होती न कोई दलील। उसने संदेह के आधार पर भी अनेक लोगों को फाँसी पर चढ़ा दिया। इसके अतिरिक्त जिन लोगों का क्रान्तिकारियों से जुड़े होने का संदेह होता तो उनके परिवारों की महिलाओं के साथ भी नीचता की सीमा तक अमानुषिक व्यवहार करता था। तब ‘युगान्तर दल’ ने टेगार्ट का काम तमाम करने का निर्णय लिया और यह काम गोपीनाथ साहा को सौंपा।
गोपीनाथ साहा ने ट्रेगार्ट की गतिविधियों का अध्ययन किया और 12 जनवरी 1924 को चौरंगी रोड पर टेगार्ट को निशाना बनाने की योजना बनाई। वे इस मार्ग पर घात लगाकर बैठै और एक अंग्रेज को ट्रेगार्ट समझकर फायर किया। दुर्योग से ट्रेगार्ट ने एन बक्त पर अपना कार्यक्रम बदल लिया था और ट्रेगार्ट के स्थान पर उसका सहयोगी अर्नेस्ट डे आया।
क्राँतिकारी गोपीनाथ ने उसे ट्रेगार्ट समझकर फायर कर दिया। अर्नेस्टम मारा गया। गोपीनाथ साहा ने भागने का प्रयत्न किया लेकिन पुलिस ने पीछा पकड़ लिया। उन पर मुक़द्दमा चला। 21 जनवरी 1924 को कोर्ट में पेश हुये उन्होंने बड़ी बहादुरी से अपना कृत्य स्वीकार किया और हिम्मत के साथ दो टूक शब्दों इस बात पर अफसोस जताया कि उनके हाथ से ट्रेगार्ट बच गया।
लेकिन यह भी कहा कि मुझे विश्वास है कि कोई न कोई क्रान्तिकारी मेरी इच्छा अवश्य पूरी करेगा। अदालत ने उनके इस बयान पर 16 फरवरी को उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई। सजा सुनकर वे वे खिलखिलाकर हँसे और बोले मैं फाँसी की सज़ा का स्वागत करता हूँ।
मेरी इच्छा है कि मेरे रक्त की प्रत्येक बूंद भारत के प्रत्येक घर में आज़ादी के बीज बोए। एक दिन आएगा जब ब्रिटिश हुक़ूमत को अपने अत्याचारी रवैये का फल भुगतना ही पड़ेगा। और 1 मार्च 1924 को उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया। तब उनकी आयु केवल 23 वर्ष की थी ।
स्वतंत्रता के क्राँतिकारी संघर्ष में अपना बलिदान देने के एक दिन पूर्व उन्होंने अपनी माँ को एक पत्र लिखा; तुम मेरी माँ हो यही तुम्हारी शान है। काश! भगवान हर व्यक्ति को ऐसी माँ दे जो ऐसे साहसी सपूत को जन्म दे। गोपीनाथ साहा ने जितने साहस और संकल्प से अपना बलिदान दिया इतिहास में उनका उल्लेख उतना ही कम है।
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