राजीव लोचन मंदिर के मंडप में एक प्रतिमा है, जिसमें वराह अवतार भू-देवी का उद्धार करते हुए दिखाए गए हैं। यह पौराणिक आख्यान वर्तमान में भी किसी विभिषिका या प्रलय का संकेत देता दिखाई देता है। जिस निर्दयता से पृथ्वी के संसाधनों का दोहन हो रहा है उससे तय है कि यह मानव जाति अपनी समाप्ति की ओर खुद ही बढ़ रही है, वह दिन प्रलय का होगा।
हम प्रलय से तात्पर्य लगाते हैं कि कोई आपदा आएगी और धरती से जीवन समाप्त हो जाएगा। धरती जीवन से शुन्य हो जाएगी। लगभग विश्व के सभी धर्मों में किसी न किसी रुप में प्रलय/महाप्रलय का वर्णन है। जाहिर है धरती से जीवन का खत्म होना लगभग सभी धर्म दर्शनों में तय है। अर्थात यह तो सभी जानते हैं कि पृथ्वी को नष्ट होना है।
कब प्रलय हुआ था, कैसा हुआ था, किसने देखा था? इतना तो तय है कि मैने नहीं देखा क्योंकि प्रलयोपरांत धरा पर मेरा आगमन हुआ। प्रलयोपरांत कथाओं के अनुसार ईश्वर ने सुंदर धरती का निर्माण करके सकुशल जीवन यापन के लिए मानव के सुपूर्द किया तथा इसकी रक्षा एवं समृद्धि का वचन भी लिया। परन्तु निर्लज्ज कृतघ्न मनुष्य सब भूल गया।
हमारे से पूर्व की पीढियाँ धरती के वातावरण एवं पर्यावरण को बचाने के लिए यथोचित प्रयास करती थी तथा यह ध्यान रखती थी कि पृथ्वी की कोई हानि न हो। यह संस्कार उनमें विद्यमान थे। उन्होंने पृथ्वी को अपने जीवन के साथ जोड़ा। वृक्षों, पशु पक्षियों के नाम आधार पर अपने कुल का टोटम (गोत्र) निर्धारित किया, जिससे प्रकृति का सामिप्य बना रहे और एवं इसकी रक्षा होते रहे।
आधुनिक भौतिकवादी युग प्रारंभ हो गया, आज जिसे हम सभ्यता कहते हुए नहीं थकते, मेरी दृष्टि में यह असभ्यता की पराकाष्ठा है, जहाँ लोग प्रकृति एवं पर्यावरण प्रदूषण का ध्यान रखना विस्मृत करते जा रहे हैं। मशीनी अंधानुकरण ने धरती का नाश कर के धर दिया है। आज स्थिति यह हो गई है कि स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छ वायु नहीं मिलने के कारण प्राणी विभिन्न व्याधियों का शिकार होकर प्राण गंवा रहे हैं।
लेकिन पृथ्वी को बचाने की चिंता किसे है? किसी को भी नहीं। आज जब पानी नाक तक पहुंच गया है तो पृथ्वी बचाने की गुहार लगाई जा रही है। पृथ्वी के वातावरण एवं प्राकृतिक संसाधनों का जितना नुकसान हमारे पुर्वजों ने सहस्त्राब्दियों में नहीं किया उससे अधिक इन सौ वर्षों में होता हुआ दिखाई दे रहा है जो कि मानव जाति के लिए विनाश का महामूल बनने वाला है।
वर्तमान में नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का जल अपनी सीमाएं बढ़ाता जा रहा है। शहरों में विष्ठा के ढेर हवाओं में जहर घोल रहे हैं, जिसे देखकर प्रतीत होता है कि हम एक प्रलय की ओर पुन: बढ़ रहे हैं, जब मूर्ख मानव हिरण्याक्ष बनकर स्वयं अपने हाथों से धरती नष्ट कर देगा।
मानव जाति को यह मान/जान लेना चाहिए कि अब भगवान विष्णु कोई वराहावतार धारण कर इस भूदेवी का उद्धार करने के लिए नहीं आने वाले। इसलिए अगर पृथ्वी को बचाना है एवं नवीन प्रलय को टालना है तो प्रकृति सम्मत व्यवहार करो। ऐसे कार्य करो जिससे पृथ्वी की हानि न हो, वरना महाप्रलय के आमंत्रणकर्ता एवं पृथ्वी के विनाश के अपराधी तुम स्वयं ही होगे। इसलिए कुछ समय है अभी चेत जाओ।
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उम्दा पोस्ट के लिए धन्यवाद्
सचमुच! प्रकृति ने हमें सबकुछ दिया लेकिन हम उसे सहेजने के बजाए दोहन में लगे रहे। आज भी नही चेते तो विनाश निश्चित है, क्योंकि प्रकृति का ममतामयी रूप माँ है, और जब कभी बिफरी तो बचाने का सामर्थ्य किसी में भी नही। सार्थक लेखन के लिए आभार…