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छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन को गति देने में निर्णायक भूमिका निभाने वाले डॉ .खूबचन्द बघेल

क्या लोग थे वो ,जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी जनता के नाम कर दी और जो आजीवन आम जनता के हितों के लिए संघर्ष करते रहे ,जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी का एक -एक पल देश और समाज की सेवा में लगा दिया ,जिन्होंने अपने संघर्षों से इतिहास बनाया और जिनका जीवन ही देश और दुनिया के लिए अपने -आप में एक प्रेरणादायक सन्देश है और जिन्हें भुला पाना असंभव है ।

ऐसे महान तपस्वियों ,मनीषियों और इतिहास पुरुषों में छत्तीसगढ़ के माटीपुत्र डॉ .खूबचन्द बघेल भी थे । वह छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए सबसे पहले आंदोलन का परचम लहराने वाले अग्रणी नेता थे ।उन्होंने आज से कोई साढ़े छह दशक पहले वर्ष 1956 में राजनांदगांव में छत्तीसगढ़ी महासभा की बुनियाद रखी और 1967 में छत्तीसगढ़ भातृ संघ बनाया।

किसानों के लोकप्रिय नेता तो वह थे ही । उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम और अस्पृश्यता निवारण में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । उन्होंने साहित्य सृजन को भी जन जागरण का माध्यम बनाया । वह एक गंभीर चिंतक और लेखक भी थे।

डॉ.खूबचन्द बघेल का जन्म 19 जुलाई 1900 ईस्वी को ग्राम पथरी (जिला -रायपुर ) में हुआ था । निधन 22 फरवरी 1969 को दिल्ली में हुआ । देश की आज़ादी के बाद वह वर्ष 1951 से 962 तक प्रांतीय विधान सभा के सदस्य रहे ।

उन्हें वर्ष 1965 में राज्यसभा सदस्य निर्वाचित किया गया । वर्ष 1947 में देश की आज़ादी के बाद उन्हें प्रादेशिक सरकार में संसदीय सचिव बनाया गया था ,लेकिन जल्द ही उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी कर्मभूमि छत्तीसगढ़ में जन सेवा के कार्यों में लग गए ।

अपने गृह ग्राम पथरी के पास सिलियारी में उन्होंने ग्रामोद्योग संघ का गठन किया और उसके माध्यम से तेलघानी ,धान कुटाई, साबुन उत्पादन जैसे कुटीर उद्योगों की स्थापना की ।उन्होंने इलाके के ग्रामीणों के लिए कृषि आधारित विभिन्न कुटीर उद्योगों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था करवाई ।

किसान हितैषी डॉ.बघेल स्वयं एक किसान परिवार से आते थे ।उनके पिता श्री जुड़ावनसिंह बघेल अपने क्षेत्र के कर्मठ किसान थे । डॉ .खूबचन्द बघेल को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने की प्रेरणा अपनी माता श्रीमती केतकी बाई से मिली ,जो स्वयं आज़ादी के आंदोलन में न सिर्फ़ शामिल होती थीं बल्कि इस वज़ह से कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा ।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के वर्तमान ‘जयनारायण पांडेय शासकीय बहुउद्देश्यीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय (मल्टीपर्पज हायर सेकेंडरी स्कूल ) ‘ को देश और प्रदेश की अनेक महान विभूतियों की पाठशाला होने का गौरव प्राप्त है । यह स्कूल लगभग डेढ़ सौ साल पुराना है ।

जिन नेताओं ने इस विद्यालय में पढ़कर अपने देश ,प्रदेश और समाज का नाम रौशन किया उनमें डॉ.खूबचन्द बघेल भी थे ।यहाँ उन्होंने हाई स्कूल तक शिक्षा पूरी करने के बाद वर्ष 1920 में नागपुर के राबर्टसन मेडिकल स्कूल में प्रवेश लिया और पढ़ाई पूरी करके के बाद एल.एम.पी.चिकित्सक बनकर डॉक्टर के रूप में सरकारी नौकरी में आ गए।

वर्ष 1930 में उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आव्हान पर राष्ट्रीय आंदोलन (असहयोग आंदोलन ) से जुड़ने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी ।इस बीच वर्ष 1923 में उन्होंने तपस्वी सुंदरलाल की अगुवाई में नागपुर में झण्डा सत्याग्रह में भी सक्रिय रूप से हिस्सा लिया ।

वर्ष 1932 में रायपुर में अंग्रेज हुकूमत के ख़िलाफ़ हुए धरना आंदोलन में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 250 रुपए के जुर्माने के साथ छह महीने की सजा हुई ।लेकिन उनकी गिरफ़्तारी के पहले ही 12 फ़रवरी 1932 को उनकी माता श्रीमती केतकी बाई और पत्नी श्रीमती राजकुंवर बाई को भी असहयोग आंदोलन में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। डॉ.बघेल की माता और पत्नी को भी छह-छह महीने की सजा हुई ।

वर्ष 1933 में जेल से रिहाई के बाद डॉ.खूबचन्द बघेल तत्कालीन प्रांतीय हरिजन सेवा समिति के मंत्री बनाए गए ।उन्हीं दिनों महात्मा गाँधी का छत्तीसगढ़ प्रवास हुआ । उनके अस्पृश्यता निवारण आंदोलन को सफल बनाने के लिए त्याग मूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह और यति यतन लाल जैसी विभूतियों के साथ डॉ.बघेल भी जुड़ गए ।

छुआछूत की सामाजिक बुराई के ख़िलाफ़ जन जागरण के लिए डॉ.बघेल ने ‘ऊंच -नीच ‘ शीर्षक से एक नाटक लिखा । छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में कई स्थानों पर इस नाटक का मंचन हुआ ।नाटक को भारी लोकप्रियता मिली। वर्ष 1934 की 28 जनवरी को ग्राम चंदखुरी में भी इसका मंचन हुआ था ।

नाट्य साहित्य में डॉ.बघेल का अप्रतिम योगदान रहा है ।उनके लिखे छत्तीसगढ़ी नाटकों में करम छड़हा , लेड़गा सुजान के गोठ भी उल्लेखनीय हैं । स्वर्गीय श्री हरि ठाकुर ने अपने ग्रन्थ ‘छत्तीसगढ़ गौरव गाथा ‘ में प्रदेश की अनेक महान विभूतियों का जीवन परिचय भी प्रस्तुत किया है ।

डॉ.खूबचन्द बघेल के बारे में उन्होंने लिखा है- ” डॉक्टर साहब की भाषा मुहावरेदार होती थी ।छत्तीसगढ़ी हाना का जितना सुन्दर प्रयोग डॉक्टर साहब की कृतियों में मिलता है ,उतना अन्यत्र दुर्लभ है ।

हरि ठाकुर आगे लिखते हैं – डॉक्टर साहब की गणना छत्तीसगढ़ के महान सपूतों और देशभक्तों में होती है । छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन को गति देने में उनकी निर्णायक भूमिका रही ।छत्तीसगढ़ी महासभा और छत्तीसगढ़ भतृसंघ के माध्यम से उन्होंने छत्तीसगढ़ के हितचिंतकों को संगठित किया।डॉक्टर साहब में ज़बरदस्त संगठन क्षमता थी ।”

यह भी उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके सम्मान में ‘डॉ.खूबचन्द बघेल कृषक रत्न अलंकरण ‘ की भी स्थापना की है ।

आलेख -स्वराज करुण

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