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दक्षिण कोसल में रामकथा की व्याप्ति एवं प्रभाव : उद्घाटन सत्र रिपोर्ट

ग्लोबल इनसायक्लोपीडिया ऑफ़ रामायण को तैयार करने के दृष्टिकोण से तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब शोध संगोष्ठी का आयोजन दिनांक 29 अगस्त से 31 अगस्त 2020 तक किया गया। जिसका आयोजन गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर छत्तीसगढ़, अयोध्या शोध संस्थान अयोध्या उत्तर प्रदेश एवं सेंटर फॉर स्टडीज एंड हॉलिस्टिक डेवलपमेंट रायपुर छत्तीसगढ़ के संयुक्त तत्वाधान में हुआ। 

अंतरराष्ट्रीय वेब शोध संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि स्वामी श्री रामदिनेशाचार्य जी अयोध्या, अध्यक्षता प्रोफेसर अंजिला गुप्ता जी कुलपति ,गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर, छत्तीसगढ़, विशिष्ट अतिथि बी के स्थापक सर अध्यक्ष सी एस एच डी एवं विशिष्ट अतिथि शैलेन्द्र सराफ जी, उपाध्यक्ष फार्मेसी काउंसिल आफ इंडिया, स्वागत भाषण डॉक्टर योगेंद्र प्रताप सिंह निदेशक अयोध्या शोध संस्थान उत्तर प्रदेश संयोजक श्री ललित शर्मा जी इंडोलॉजिस्ट ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडिया छत्तीसगढ़ इकाई श्रीमती रेखा पांडे जी व्याख्याता लमगाँव सरगुजा, नीतेश मिश्रा इत्यादि रहे। उद्घाटन समारोह का संचालन प्रो प्रवीण मिश्रा, विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर ने किया।

उद्घाटन सत्र में सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए होस्ट ने अध्यक्षा प्रोफेशनल अंजिला गुप्ता जी की अनुमति लेकर सत्र प्रारंभ किया। अध्यक्षा श्रीमती गुप्ता जी ने कहा कि हम लोगों का सौभाग्य है कि हम उस क्षेत्र में रहते हैं जो भगवान राम की साधना स्थली रही है। अब हम डॉक्टर योगेंद्र प्रताप सिंह निदेशक इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण  को सुनेंगे।

डॉ योगेन्द्र प्रताप सिंह जी,निदेशक-अयोध्या  शोध संस्थान  ने कहा कि इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण  का प्रकाशन सनातन संस्कृति की दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया है। पाताल लोक होंडुरास हो या दूसरी जगह, पुरावैभव और सनातन संस्कृति के प्रमाण का संकलन  8-10 साल से अनवरत  जारी है। महत्वपूर्ण सूचना है कि  हमारे राजनेताओं  ने प्रयासकर 250 देशों को विदेश मंत्रालय के माध्यम से, पत्र भेजकर जानकारी संकलन करने कहा है। छत्तीसगढ़ में कौन क्या कर रहे हैं इसका रिपोर्ट  सबको पता चल रहा है। माननीय प्रधानमंत्री इस पर रुचि रख रहें हैं। यहाँ जो हो रहा है, सभी जानकारी को प्रस्तुत करेंगे। ललित जी आप दो-तीन पेज का एक पावरप्वाइंट प्रस्तुति प्रधानमंत्री कार्यालय तक भेजने के लिए तैयार रखें। आपकी प्रस्तुति को पीएमओ को भेजा जाएगा। पीएमओ इस दिशा में रूचि ले रहे हैं। इस दिशा में आपका सुझाव आमंत्रित है। सभी शोधार्थियों , विद्वानों, आयोजकों का आभारी हूँ ,कहकर धन्यवाद देते हुए निदेशक शोध संस्थान श्री योगेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी वाणी को विराम दिया। फिर उसके जवाब में ललित जी ने कहा कि हम आपकी सुझाव का अक्षरसः  पालन करेंगे और शीघ्र ही दो-तीन पेजों का पावर पॉइंट तैयार करके आपको प्रेषित किया जाएगा। हम लोग आभारी हैं कि शिक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्री भी इसमें शामिल रहेंगे और इसमें आपकी भी सहमति है। आप भी इसमें शामिल ही हैं।

अपने संबोधन में इंडोलॉजिस्ट एवं संयोजक ललित शर्मा जी संगोष्ठी में शामिल सभी अतिथियों को धन्यवाद देकर तीन दिवसीय सेमिनार के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि आप लोगों का सहयोग जो हमें प्राप्त हो रहा है, वह मील का पत्थर साबित होगा। छत्तीसगढ़ के रोम रोम में राम है। नदी ,पहाड़, पर्वत, संस्कृति अद्भुत है। जो एक बार यहाँ आ गये यह यहीं के होकर रह गए। भगवान राम जी भी यहाँ एक बार आकर यहीं के होकर रह गए। सरगुजा से बस्तर तक की भौगोलिक स्थिति अद्भुत हैं। यहाँ राम ने 14 में से 10-12 वर्ष वनवास का समय बिताया। जिसमें से कुछ विद्वानों में मतभेद कुछ विद्वान 10 वर्ष, कुछ 11 वर्ष, कुछ 12 वर्ष तो कुछ ने 13 वर्ष यहाँ व्यतीत करने की बात करते हैं। यहाँ की संस्कृति में, राम नाम शरीर के अंग-अंग में गोदना गोदवाने वाले रामनामी संप्रदाय के लोग भी रहते हैं। इनकी संस्कृति ही राममय हैं। बच्चा जन्म लेता है, तो रामायण मंडली को बुलाकर रामायण किया जाता है। कहीं 2 दिन, कहीं तीन दिन तो कहीं सप्ताह भर चलता है। जिसे राम-सप्ताह  कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के मैदानी भाग में रामसप्ताह  स्थल भी बना हुआ है।  जहाँ रामायण सप्ताह आयोजन किया जाता है। राम धुन गाए जाते हैं तथा समय-समय पर रामधुनी चलती रहती है । 

धान बोने के लिए पहली मुट्ठी राम के नाम से डाला जाता है । फसल कटकर खलिहान में जब आती है जब रास बनाया जाता है, राम से ही उनकी गिनती की जाती है। लकड़ी के बने हुए कांठा में, जब उनकी गिनती चालू करते हैं  तब वह गिनती राम से चालू होती है। यह भाव, साल भर की कमाई राम को समर्पित किया जाना है। राम के नाम से मुट्ठी में धान रखकर बोवाई चालू होकर, राम से ही अंत तक का सफर, ऐसे अद्भुत संस्कृति है छत्तीसगढ़ की। 

यहाँ राम को भाँचा माना जाता है। यहाँ भाँचा का स्थान श्रेष्ठ है। मामा भाँजा के पैर छूते हैं क्योंकि राम छत्तीसगढ़ के भानजे है और हर भाँचा  में यहाँ  उसी का स्वरूप देखा जाता है। अटकन बटकन दही चटाका लवहा लाटा, बन के कांटा, तू रू रू रू पानी आवे ,सावन में करेला फूटे ,चल चल बिटिया गंगा जाबो, गंगा ले गोदावरी ,पाका पाका आम खाबो, आमा के डारा टूट गे,  भरे कटोरा फुट गे,  इस लोकगीत में  गंगा से गोदावरी तक  भद्राचलम तक दंडकारण्य होने की बात  है। समुद्रगुप्त हो, अशोक हो, बुद्ध हो या जितने भी राजाओं ने दक्षिणापथ यात्रा की, इसी पथ से गुजरे। इसी रास्ते से गुजरे। सीताचौकी, नदी के तट पर भरतपुर से भगवान राम ने दक्षिण कोसल में प्रवेश किया। सरगुजा गजों का क्षेत्र है। जिसमें इंद्र के ऐरावत की तरह गज मिलते हैं। रामगढ़ में प्राचीन गढ़ हैं। राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्ति यहाँ हैं।  सीता बेंगरा है, तो पीछे लक्ष्मण बेंगरा।  पहाड़ को रामगिरि कहा जाता है । रामनवमी को यहाँ मेला भरता है। यहाँ राम के प्रमाण मिलते है। मौर्य काल के प्रमाण मिलते है। यहाँ मल्हार है, जहाँ मौर्यकालीन से पहले का प्रमाण है। आगे डमरुगढ़ स्थल है, शिवरीनारायण, शबर राजकुमारी की भूमि है। यहाँ एक दिन के लिए जगन्नाथ जी पहुँचते हैं। खरौद में लक्ष्मण मंदिर है, जो भगवान शंकर को समर्पित है। लेकिन नाम, लक्ष्मण मंदिर है। तुरतुरिया में वाल्मीकि जी का आश्रम है। रमई पाठ में गर्भवती सीता जी की मूर्ति है। जहाँ वाल्मीकि जी जाकर उसे अपने साथ अपने आश्रम में ले  आते हैं। आगे राजिम क्षेत्र में लोमस ऋषि का आश्रम है। उसके आगे सिहावा के पर्वत पर सप्त ऋषियों का आश्रम है। सरगुजा  में शैव, शाक्त, वैष्णव, जैन सभी धर्मों का अवशेष  हैं। बस्तर के कुछ क्षेत्र को लंका के नाम से जाना जाता है। इन्हीं सभी का डॉक्यूमेंटेशन आप सब के सहयोग से करना है। आपने मुझे बोलने का अवसर दिया इसके लिए आप सब का धन्यवाद कह कर ललित शर्मा जी ने अपनी वाणी को विराम दिया।

फिर होस्ट ने आज के विशिष्ट अतिथि को श्री बी के स्थापक सर को अपनी उद्बोधन ,विचार रखने के लिए आमंत्रित किया । उन्होंने सबसे पहले गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अंजिला गुप्ता जी को धन्यवाद देने के बाद सभी अतिथियों को संबोधित किया  और उन्होंने कहा कि सी एस एच डी के माध्यम से मैं आप सब का स्वागत करता हूँ। ललित जी का धन्यवाद जो राम के चरणों को नापकर, राम कहाँ-कहाँ गये थे। उसको अवगत कराया। हर समाज में यहाँ राम होता है। संस्कार, संबोधन में राम होता है। अंतिम यात्रा में यहाँ राम होता है। दक्षिण कोसल राम का ननिहाल है।  इसलिए आज अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। जो सबके लिए लाभदायक सिद्ध होगा वाल्मीकी जी ने  रामायण की रचना की। जिसे शिवजी ने पार्वती को सुनाया। जिसे एक काग ने सुना। उसे आध्यात्म रामायण कहते हैं। वाल्मीकि जी ने लिखा वह वाल्मीकि रामायण है और जन-जन में प्रचलित  रामायण हैं को राम चरित मानस कहते हैं जिसे तुलसीदासजी ने लिखा है। आप की ओर से इस पुण्य काम के लिए भी मेरी शुभकामनाएं अर्पित कर रहा हूँ। यह इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण, रामायण की ही तरह एक कालजई रचना होगी। इनसाइक्लोपीडिया  ऑफ रामायण के लिए मेरी तरफ से बहुत बहुत बहुत शुभकामनाएँ  कहते हुए उन्होंने अपनी वाणी को विराम दिया।

संचालक ने विशिष्ट अतिथि शैलेन्द्र सराफ जी को उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया। सराफ़ जी ने सभी को राम राम करते हुए कहा कि जो मुख्य रूप से गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, अयोध्या शोध संस्थान और इनसाइक्लोपीडिया रामायण छत्तीसगढ़ का विशेष धन्यवाद। सभी अतिथियों को शुभकामनाएँ। उन्होंने कहा कि मैं फार्मेसी से हूँ, पर यह राम का कार्य है। हम गौरवान्वित हैं जो 500 वर्ष बाद हमें जो देखने को मिल रहा है, इसी समय इनसाइक्लोपीडिया का निर्माण भी हो रहा है। यह भी राम की कृपा है। जो प्रमाणिकृत करने के लिए, दस्तावेजी करण कर रहे हैं । जो समाज में जुड़ी जानकारी है, उसक दस्तावेजीकरण कर रहे हैं। उसे मानवीकृत कर रहे हैं। इंटरनेट में जानकारियों की भरमार है। इंटरनेट में जितनी जानकारी है उतना तो लिखित ग्रंथों में भी नहीं है। अभी सूचनाओं का अंबार है। अभी जितना ग्रंथ में लिखा गया है उस से 4 गुना अधिक जानकारी इंटरनेट में है। जिसे प्रमाणित नहीं कहा जा सकता है। इसी को प्रमाणित करने के लिए हम जुड़े हैं। इस महायज्ञ में आहुति देने के लिए ईश्वर ने हमें अवसर दिया है, इन तीन दिवसीय सेमिनार में हम 29 से अधिक विद्वानों को सुनने का अवसर प्राप्त करेंगे। राम काम , ईश्वर-कृपा के लिए हम आभारी हैं। तय समय में हमें इनसाइक्लोपीडिया रामायण तैयार करना है और हमें जानकर गौरवान्वित कर रहें हैं कि इस कार्य में हम भी किसी न किसी माध्यम से जुड़े हुए हैं। जब हमारा देश पुन: विश्व गुरु के पद पर आसीन होगा तब आने वाली पीढियाँ देखेंगी और  गौरवान्वित होंगी।

इस पर कार्यक्रम के होस्ट ने कहा कि आपकी कही गई बातें, हमारा मार्गदर्शन करेंगी, इसके लिए आपका आभार। फिर उन्होंने विशिष्ट अतिथि अयोध्या से जुड़े श्री राम दिनेश आचार्य जी को आमंत्रित किया और कहा कि हम राम के ननिहाल से हैं और राम के जन्म स्थली से श्री राम दिनेशाचार्य जी जुड़े हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि उनकी ज्ञान हमें प्राप्त होगा। अब स्वामी जी उद्बोधन करने के लिए आमंत्रित हैं।

फिर अयोध्या से जुड़े श्री राम दिनेशाचार्य जी ने कहना प्रारंभ किया – सबसे पहले ललित जी को साधुवाद देता हूँ, जो आपने बीड़ा उठाया है उसके लिए सब सहयोगी हैं, राम की माता कौसल्या छत्तीसगढ़ से आती हैं। राम का नाम हमारे अंतर में उतर जाता है। दक्षिण कोसल में ही नहीं, उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी राम नाम की चर्चा होती है। उनके मूल में जो तत्व है जो छोटे से छोटे को गले लगाकर बड़ा बना देते हैं। यही उनका व्यक्तित्व है। अयोध्या का मतलब ही है। जहाँ युद्ध न हो। यही बात है जो अयोध्या से लंका तक है। अयोध्या तक ही राम सीमित नहीं है। राम ने दीनों, वंचितों, दलितों  सभी को गले लगाया। ऊपर उठाया। अयोध्या ने राम को दिया है। राम बन गए, न जाते तो राम, बन  न जाते की बात कही। भगवान राक्षसों के वध के लिए आते हैं। देश भक्ति, राष्ट्र भक्ति, पितृ भक्ति, मातृ भक्ति, भातृ भक्ति एवं संपूर्ण व्यक्तित्व जो लोग देखना चाहते हैं, वह राम में है। विश्व भर में सभी अपने पुत्र की कल्पना राम की तरह देखते हैं। चाहे वह इंडोनेशिया ही क्यों न हो। वे कहते, मेरी जीवन चरित्र में, मेरी वाणी में, यदि कोई भी बात गलत हो तो समाज के अंतिम व्यक्ति तक कह सकता है, तब ही रामराज्य स्थापित हो पाएगा और राम ने यह करके भी दिखाया। इसीलिए वह राम बने। मर्यादा पुरुषोत्तम राम बने। भगवान राम बने।

भगवान राम छत्तीसगढ़ के कटीले पथरीले रास्ते में चले । भरत इसके पीछे चले आए। उसके पहुँचने पर राम उन्हें गले लगा लेते हैं। जैसे ललित जी ने कहा की मीत और मितान मिला ऐसे ही राम कहते हैं। यदि कोई मीत मिले तो निषाद राज मिले, वानर राज मिले, भालू मिले, मानव हो गए। यही राम तत्व है। रावण तत्व ने अपने मामा मारीच को भी पशु बना डाला। वही रावण तत्व है। राम से मिलने वाले पशु-पक्षी, राम तत्व के कारण मानव बन गए जबकि रावण तत्व के कारण मानव तन धारी मारीच भी पशु बन गए। यही तो रावण तत्व है।

भरत जी ने जब  भील से पूछा की राम को जानते हो तो उन्होंने कहा कि हां, वह हमारे जाति के हैं। यह सुनकर सभी आश्चर्यचकित हो गए ।सब ने पूछा तो भील ने कहा कि राम हमारी तरह धनुष धारण करते हैं। पथरीले कटीले रास्ते में चलते हैं, पैदल चलते हैं। इसलिए वह हमारे ही जाति के हैं। भरत इससे भाव विभोर हो गए । सब से वंचित भी राम को अपने में स्वीकार कर लेते हैं। यही तो राम राज्य है ।

इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण का निर्माण हो रहा है, 500 वर्षों के बंदिगृह से राम आजाद हुए हैं। आज अवसर आया है, जब भगवान राम का एक स्थान बन रहा है। जितने लोग भी जुड़े हैं, उन सब को अयोध्या धाम से राम राम यह कहते हुए उन्होंने अपनी वाणी को विराम दिया।

फिर होस्ट ने संत को कोटिशः धन्यवाद  दिया, आभार प्रकट किया फिर उन्होंने अध्यक्षीय उद्बोधन के लिए प्रोफेसर अंजिला गुप्ता जी कुलपति गुरु घासीदास विश्वविद्यालय को आमंत्रित किया।

अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कहा कि उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि और आदरणीय रामदिनेशाचार्य जी को हम सभी की तरफ से प्रणाम करती हूँ। सभी विद्वानों का विश्वविद्यालय के कुलपति होने के कारण सब का आभार प्रकट करती हूँ। फिर उन्होंने कई बातों को सुझाया  और कहा कि रामायण को पाठ्यक्रम बनाकर शामिल करना चाहिए। जैसे अंगद रावण संवाद हो, गिलहरी संवाद हो, उसे हम पाठ्यक्रम में शामिल करके एक विशिष्ट शिक्षा व्यवस्था दे सकते हैं।

इस पर होस्ट ने कहा कि आपकी सलाह उपयोगी है अवश्य ही इस प्रकार का कोई पाठ्यक्रम तैयार हो। फिर उन्होंने इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में आए सभी अतिथियों का आभार प्रदर्शन करते हुए उद्घाटन सत्र की समाप्ति की घोषणा की।

रिपोर्टिंग

हरिसिंह क्षत्री
मार्गदर्शक – जिला पुरातत्व संग्रहालय कोरबा, छत्तीसगढ़ मो. नं.-9407920525, 9827189845

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