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चितावरी देवी मंदिर धोबनी का स्थापत्य शिल्प

धोबनी ग्राम रायपुर-बिलासपुर राजमार्ग पर दामाखेड़ा ग्राम से बायें तरफ लगभग 2 कि.मी. दूरी पर स्थित है। रायपुर से धोबनी की कुल दूरी लगभग 57 कि.मी. है। (इस ग्राम में वर्ष 2003 तक स्थानीय बाजार तथा पशु मेला रविवार को भरता था जो वर्तमान में किरवई नामक ग्राम के उत्तर में लगता है। वर्तमान में यह ग्राम, ग्राम पंचायत दामाखेड़ा के अंतर्गत है।)

ग्राम के मध्य में प्राचीन तालाब के पूर्वी कोने में एक ईंट निर्मित पश्चिमाभिमुखी शिव मंदिर विद्यमान है। मंदिर एक पत्थर निर्मित चबूतरे के ऊपर स्थित है। यह चबूतरा वर्ष 1989-90 के लगभग धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अन्तर्गत आयुक्त, रायपुर सम्भाग रायपुर के मार्गदर्शन में बनवाया गया था। साथ ही मंदिर का सम्मुख भाग अर्थात पश्चिमी हिस्सा क्षतिग्रस्त होने के कारण जीर्णोध्दारित है।

मंदिर का आंतरिक भाग तथा बाहय जंघा भाग 3.60 मीटर ऊँचाई तक पत्थर से बना है। मंदिर का शिखर भाग ईंट निर्मित है तथा ऊपर में आमलक एवं कलश नहीं हैं। तल विन्यास में गर्भगृह, तथा अन्तराल हैं। ऊर्ध्व विन्यास में जंघा तथा शिखर भाग विद्यमान है।

मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार (2.90X2.90 मीटर) है। गर्भगृह के चारों तरफ आंतरिक भित्ति में 2.90 मीटर ऊंचाई तक पत्थर की भित्ति में अलंकरण है इसके ऊपर का भाग क्रमश: संकरा होता गया है जिसे वर्तमान में सीमेंट की छ्त ढालकर बंद कर दिया गया है। मंदिर के शिखर का आतंरिक भाग सिध्देश्वर मंदिर पलारी, लक्ष्मण मंदिर सिरपुर, एवं शिवमंदिर हर्राटोला बेलसर के समान निर्मित है जो सोमवंशी स्थापत्य कलाशैली का परिचायक है। गर्भगृह के उत्तरी भित्ति में धरातल से 120 से.मी. ऊंचाई पर तीन उभार बने हैं। संभावना है कि इसके ऊपर पूर्व में एक पत्थर की धरण रखी रही होगी जो पूजन सामग्री आदि रखने के लिए उपयोग होती रही होगी। गर्भगृह के दक्षिण में दो लघु अलिंद निर्मित हैं।

गर्भगृह के मध्य में जलहरी तथा शिवलिंग विद्यमान हैं जो गर्भगृह की पिछ्ली भित्ति के सहारे टिकाकर रखी हुई है। जलहारी के मध्य गोलाकार छिद्र है जिसमें अनुमानत: शिवलिंग स्थापित रहा होगा। गर्भगृह के मध्य में शिवलिंग स्थापित है। शिवलिंग में बीच में दरार है। इस शिवलिंग में सिंदूर पुता है तथा ग्रामवासी इसको चितावरी देवी के नाम से पूजते हैं। इसी आधार पर यह मंदिर चितावरी देवी के नाम से जाना जाता है।

अंतरालमंदिर का अंतराल वर्गाकार है। इसकी भित्तियाँ सीमेंट प्लास्टर से ढकी है तथा वितान सीमेंट से बनाया गया है। यह लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। अन्तराल के बाहर का प्रवेश द्वार तथा नवीन प्लास्टर युक्त है।

ऊर्ध्व विन्यास इस मंदिर के ऊर्ध्व विन्यास में अधिष्ठान, जंघा तथा शिखर भाग बने हुए हैं। अधिष्ठान भाग मूलत: दिखाई नहीं देता है क्योंकि यह बाद में बनाए गए सीमेंट के चबूतरे से ढक गया है। जंधा में गर्भगृह की बाहयभित्ति धरातल से 3.60 मीटर ऊंचाई तक लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। इसके ऊपर का शेष भाग 6.30 मीटर की ऊंचाई तक का लाल पकी ईटों से निर्मित है जो ऊपर की तरफ क्रमश: संकरा होता गया है। मंदिर तारे की आकृति में निर्मित है। जंधा की बाहय भित्ति में नीचे, खुर, कुम्भ, ताड़पत्र, कलश, लतावल्लरी, कपोतावली तथा उभारदार संरचना निर्मित है जो धरातल से एक मीटर ऊंचा है। इसके ऊपर कर्णरथ वाले जंधा में दो भारवाहक दोनों ओर उसके ऊपर गोलाकार चैत्य गवाक्ष, फिर व्याल मुख, उसके ऊपर दायी ओर बैठा हुआ सिंहव्याल, दक्षिणी भित्ति में एवं बायी ओर मुख किये हुये पूर्व दिशा में प्रदर्शित है। व्याल के ऊपर दोनों तरफ गोलाकार कलश तथा कलश के निचले भाग तक ताड़पत्र लटके हुये बनाए गए हैं। कलश के ऊपर अर्थात जंघा भाग में चौड़ी पटटी है जो पत्थर से बने भाग का ऊपरी हिस्सा है। इसमें दोनों तरफ दो-दो चैत्य गवाक्ष निर्मित है।

जंघा के निचले भाग में निर्मित भारवाहक अपने दोनों हाथ से कोई वस्तु पकड़े हैं जिसके ऊपर गोलाकार चैत्य गवाक्ष निर्मित हैं। चैत्य गवाक्ष के अंदर गडढे में दो परतों में गोलाकार फलों की आकृति बनी हुई है। जंघा के तीनों मध्य रथ वाले भाग में एक मीटर ऊंचाई के बाद पत्थर में दरवाजे की आकृति निर्मित है। दायें पल्ले के मध्य में एक सुन्दर नायिका का झांकते हुये स्थानक मुद्रा में प्रदर्शन किया गया है।

बायें पल्ले की निचली दोनों खांचो में छिद्रयुक्त चौकोर आकृति में अंकन किया गया है। इसी प्रकार दूसरे में दक्षिणी कर्णरथ में पश्चिमी तरफ दायें पल्ले के मध्य में एक नायिका खड़ी हुई प्रदर्शित है जो दायें हाथ में कमल कलिका पकड़े हुये है। दायें हाथ के नीचे एक पुरुष प्रतिमा बैठी हुई प्रदर्शित है तथा शेष निचले तीनों खांचों में नौ परतों में चौकोर छिद्रनुमा आकृति निर्मित है।

दक्षिणी जंघा भाग में पश्चिम तरफ सबसे किनारे के हिस्से में एक मीटर ऊंचाई तक समान संरचना निर्मित है। इसके ऊपर दो भारवाहक भी निर्मित हैं। भारवाहक के ऊपर निर्मित चैत्य गवाक्ष के दोनों किनारे पर निचले हिस्से में एक-एक अलंकृत मकर का अंकन है तथा उनके ऊपर गज का भी अंकन स्पष्ट है। मकर तथा गजो का मुख विपरीत दिशा में है।

यह संरचना समूचे मंदिर में मात्र एक ही जगह पर निर्मित की गई है। इसी चैत्य गवाक्ष के मध्य में एक बैठी हुई योगी की प्रतिमा निर्मित थी जो वर्तमान में पूर्णरुपेण क्षरित है जबकि उत्तरी भित्ति के बाहय पश्चिमी चैत्य गवाक्ष में योगी की तपस्यारत प्रतिमा का स्पष्ट अंकन विद्यमान है। दक्षिणी भित्ति के चैत्य गवाक्ष के ऊपरी हिस्से में गज की एक प्रतिमा का मात्र गर्दन से आगे का भाग दृष्टव्य है। दोनो अगले पैर तथा दोनों कानों का स्पष्ट अंकन है लेकिन मुख खण्डित है। गज के गर्दन के ऊपर एक क्षरित बैठी हुई प्रतिमा का अंकन दिखता है। इसके ऊपर व्याल का अंकन है जिसका गर्दन से ऊपर का भाग खण्डित है।

इस प्रकार के स्थापत्य कला में जंधा में गज का अलंकरण देवरानी-जेठानी मंदिर ताला की बाहय भित्ति पर भी मिलता है तथा मकरमुख का अंकन सिध्देश्वर मंदिर पलारी की द्वारशाखा तथा सिरपुर स्थित आनंद प्रभु कुटी विहार के प्रवेश द्वार की द्वारशाखा में विद्यमान है। दक्षिणी मध्य रथ के जंधा भाग में पश्चिम तरफ कर्ण रथ में दो माला धारी विद्यधर दोनों सतहों पर तथा मध्य रथ के पश्चिमी भाग में दरवाजे के दोनों किनारों पर युगल मालाधारी विद्याधरों का अंकन है।

पूर्वी सतह पर दायें तरफ उड़ती हुई एक नागी प्रतिमा,दायें तथा बायें तरफ एक आसनस्थ मालाधारी नायिका प्रदर्शित है। अनुरथ या प्रतिरथ में (दक्षिण-पूर्व कोने वाले रथ में) मालाधारी विद्याधरों का अंकन नहीं किया गया है। जंधा के पश्चिमी मध्य रथ में सबसे ऊपर की चौड़ी परत में दायें तरफ एक मात्र व्याल मुख का अंकन है। शेष सभी रथों में चौकोर आकृति तथा गोलाकार चैत्य निर्मित है।

जंघा के ऊपर निर्मित शिखर भाग ईटों से बना है जिसके निचले भाग में चारों तरफ दो दो चौकोर गडढे हैं। इसके ऊपर उभारदार भाग निर्मित है जिसके ऊपरी भाग में गोलाकार चैत्य गवाक्ष निर्मित है। चैत्य गवाक्ष के ऊपर आमलक दूसरी परत में तथा लघु चैत्य निर्मित है। तीसरी ऊपरी परत में भी नीचे आमलक तथा ऊपर लघु चैत्य निर्मित है। इसके ऊपर तथा अंतिम परत में भी नीचे लघु आमलक तथा चैत्य निर्मित रहे होगें जो खण्डित अवस्था में है। इसके ऊपर का भाग क्षति ग्रस्त है। स्थापत्य कला के आधार पर यह मंदिर परवर्ती सोमवंशी शासकों के काल में 9 वीं सदी ई. में निर्मित प्रतीत होता है।

आलेख

डॉ. कामता प्रसाद वर्मा,
उप संचालक (से नि) संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व रायपुर (छ0ग0)

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