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बुचीपुर की महामाया माई

हाफ नदी के सुरम्य तट पर बेमेतरा जिला के नवागढ़ तहसील में बसा छोटा सा गांव बुचीपुर है। यह गांव छत्तीसगढ़ के अन्य गांव के समान ही खेती किसानी वाला गांव है, परंतु इसकी प्रसिद्धि यहां विराजमान माँ महामाया के नाम से दूर-दूर तक है। दूर-दूर से यहां श्रद्धालु आते हैं और आदि शक्ति माँ महामाया का दर्शन कर आत्मिक शांति और मनवांछित फल पाकर लौट जाते हैं।

बुचीपुर से जुड़ा रोचक इतिहास-
18 वीं शताब्दी में आज से लगभग 195 साल पहले ग्राम बुचीपुर में ओंकारपुरी गोस्वामी मालगुजार हुआ करते थे। उनका मुख्यालय पंडरीतराई था और यह गाँव उनकी मालगुजारी में आता था । मालगुजार माँ भगवती के अनन्य उपासक थे, साथ-साथ संगीत में भी पारंगत थे। उनका एक आम मुख्तियार ठाकुरराम वर्मा थे जिनका मूलग्राम बुचीपुर था। ठाकुरराम वर्मा दंपत्ति निःसंतान थे। ओंकारपुरी गोस्वामी और मुख्तियार ठाकुर रामवर्मा बस इन्हीं दोनों महान आत्माओं के त्याग और भक्ति का परिणाम है कि आज माँ महामाया बुचीपुर में विराजमान है और जन-जन के हृदय में सोते-जागते उठते-बैठते समाहित है।

माँ महामाया के विराजने की गाथा-
एक बार मुख्तियार ठाकुरराम वर्मा को मालगुजार की हवेली का सपना आया कि बुचीपुर में हवेली के आगे माँ महामाया की मूर्ति की स्थापना करें और निःसंतान दंपत्ति श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करें। सुबह होते ही आम मुख्तियार ने सपने की बात मालगुजार को जाकर बताया । दोनों में सहमति बनी और तत्काल वे नवागढ़ जिनकी दूरी बुचीपुर से लगभग 16 किलोमीटर है के लिए निकल पड़े।

वहां तालाब की भीतर में माँ महामाया की मूर्ति को ले जाने का शुभ मुहूर्त निकालकर नवागढ़ आए । मूर्ति को ले जाने के लिए एकमात्र साधन उस जमाने में भैंसा गाड़ी ही हुआ करता था । विधि विधान से पूजा पाठ करने के बाद मूर्ति को गाड़ी में रखा गया और उनका काफिला ग्राम बुचीपुर के लिए बढ़ा। रास्ते में मूर्ति की गाड़ी खड़ी हो जाती थी तब पूजा पाठ करके बकरे की बलि दी जाती तभी गाड़ी आगे बढ़ती थी । गाड़ी थोड़ी दूर चलकर गाड़ी फिर रुक जाती थी वहां पर फिर से नारियल का होम और बकरे की बलि दी जाती।

इस तरह बुचीपुर पहुंचते-पहुंचते 6 आखा नारियल ( 720 नारियल) और 3 दौरी बकरा (36 बकरा) की बलि और पूजा के बाद माँ महामाया ग्राम बुचीपुर में स्थापित होने की जगह पर पधारी। शुभ मुहूर्त में माँ महामाया की प्राण प्रतिष्ठा की गई । मूर्ति स्थापना के बाद वर्मा दंपति ने वैराग्य ले लिया और नित्य प्रति माँ महामाया की सेवा में लीन रहने लगे । आज आम मुख्तियार को तो कोई संतान नहीं है परंतु मालगुजार के वंशज आज भी माँ महामाया की पूजा में समय देते आ रहे हैं ।

आदिशक्ति महामाया की महिमा अपरंपार है जिनके प्रताप का एक अद्भुत उदाहरण जनश्रुति में मिलता है । एक बार पास में बसे गांव कटई में हैजा फैल गया। गाँव में एक बुढ़िया और उनका बेटा जो कि तेली जाति के थे रहा करते थे। हैजा में वृद्धा के बेटे की मृत्यु हो गई । असहाय वृद्धा को माँ महामाया की याद आई । गाँव के एक आदमी को उसने बुचीपुर के मुख्तियार ठाकुर राम के पास भेजी । आधी रात का समय था, वर्मा दंपति नदी में नहा कर माँ महामाया के आसन में कपाट बंद करके पूजा करने बैठे ।

वर्मा दंपति ने माँ महामाया से निवेदन किया कि अगर आप उस वृद्धा के बेटे को ले जाएंगे तो उसका पालन पोषण कौन करेगा ? और आपके यश कीर्ति का क्या होगा। मैं प्रार्थना करता हूं कि विधान के मुताबिक आप वृद्धा को ले जाइए और उनके बेटे को जीवित रहने दे, इससे मेरी लाज और आपकी यश कीर्ति दोनों बनी रहेगी।

बाहर में खड़ा आदमी यह बात सुन रहा था परंतु माता की आवाज केवल वर्मा दंपति को ही सुनाई दिया। भीतर से निकलकर वर्मा दंपति ने बाहर खड़े आदमी को प्रसाद और भभूत देकर कहा कि उसे बुढ़िया के मृत बेटे के ऊपर डाल देना। उस आदमी ने गांव पहुंचकर वैसा ही किया ऐसा करते ही बुढ़िया का बेटा जिंदा हो गया और बुढ़िया परलोक सिधार गई ।

तब से आज तक इस तरह की घटनाएं नित्य घटते रहती है। जिनको विश्वास और श्रद्धा है वे भक्तजन आज भी निरंतर चैत्र और कुँवार दोनों महीनों में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करने आते हैं और माँ महामाया के दर्शन पाकर सुख, शांति, समृद्धि की कामना करते हैं । सन 1994 से आज पर्यंत अखण्ड ज्योति माँ महामाया बुचीपुर में प्रज्वलित है जिनकी सदस्यता शुल्क मात्र ₹10 हैं।
पहुंच मार्ग –
ऐतिहासिक ग्राम बुचीपुर रायपुर बिलासपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित नांदघाट से 16 किलोमीटर पश्चिम दिशा में स्थित है । दूसरा रास्ता बेमेतरा-नवागढ़ मार्ग पर स्थित ग्राम पान पडकीडीह से 9 किलोमीटर पर ग्राम मुंगेली से 1 किलोमीटर उत्तर दिशा में बुचीपुर स्थित है।

आलेख

अजय अमृतांशु, भाटापारा

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One comment

  1. विवेक तिवारी

    सुग्घर जानकारी बधाई हो भाई
    💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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