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भाई एवं बहन के स्नेह का प्रतीक : भाई दूज

हमारा देश त्यौहारों एवं प्राचीन परम्पराओं की भूमि है, हमारे पंचांग के अनुसार कार्तिक मास को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, इसी मास में दिवाली जैसा महत्वपूर्ण त्यौहार आता है। जिसे उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।

पांच दिवसीय दिवाली का समापन भाई दूज से होता है। इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। यह भाई एवं बहन के स्नेह का प्रतीक है। बहन, परिवार का महत्वपूर्ण अंग है, जिसके विवाह के पश्चात भी परिवार भूलता नहीं है तथा विशेष पर्वों पर उसके मान-दान का विशेष ध्यान रखा जाता है।

भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस त्योहार से भाई-बहन का संबध सुदृढ़ होता है। जहां बहन अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती है वहीं, भाई अपनी बहन के मान सम्‍मान की रक्षा करने का वचन देता है।

भाई दूज के साथ ही दिवाली का त्यौहार या पर्व सम्पन्न हो जाता है। इस दिन गणेश जी, यम, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा की जाती है। कई घरों में कलम-दवात की पूजा भी की जाती है। इस दिन घर की बड़ी-बुजुर्ग महिलाओं से पारंपरिक कथाएं भी सुनी जाती हैं।

भाई दूज कथा-

भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना, यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।

यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।

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यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।

भाई दूज (भ्रातृ द्वितीया) का उत्सव एक स्वतंत्र उत्सव है, किंतु यह दिवाली के तीन दिनों में संभवतः इसीलिए मिला लिया गया कि इसमें बड़ी प्रसन्नता एवं आह्लाद का अवसर मिलता है जो दीवाली की घड़ियों को बढ़ा देता है।

भाई दरिद्र हो सकता है, बहन अपने पति के घर में संपत्ति वाली हो सकती है, वर्षों से भेंट नहीं हो सकी है । इस दिन भाई-बहन एक-दूसरे से मिलते हैं, बचपन के सुख-दुख की याद करते हैं। इसलिए हमारे जीवन में भाई दूज महत्वपूर्ण स्थान है।

आलेख

ललित शर्मा (इण्डोलॉजिस्ट) रायपुर, छत्तीसगढ़

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