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भारतीय राजनीति के प्रकाश स्तंभ अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी बाजपेयी ने भारतीय राजनीति को छ: दशकों से करीब से देखा और जिया है। उन्होंने भारतीय राजनीति में अपना सुदढ़ दखल रखा और देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे। संसद में सशक्त विपक्ष के बतौर एवं प्रधानमंत्री रहते हुए उनके द्वारा देशहित में लिये गये निर्णयों के लिए सदैव याद किया जाता रहेगा। उन्होंने भारतीय राजनीति की धारा बदलकर रख दी, इसलिए उन्हें भारतीय राजनीति के प्रकाश स्तंभ के रुप में भी याद किया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उन्होंने अपना अमिट प्रभाव छोड़ा है। उनकी भाषण की कला अद्भूत थी, भारत का हर नागरिक उनके भाषणों को ध्यान से सुनता था तथा उनसे मार्गदर्शन पाता था। राष्ट्रहित में उनके कार्य दलगत राजनीति से अलग हटकर रहे। एक कवि के रुप में भी उनकी संवेदनशीतला जग जाहिर है। उनकी कविताएं की उष्मा से आने वाली पीढ़ी का जोश बढ़ता रहेगा।

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। उनका छात्र जीवन से ही राजनीतिक गतिविधियों में गहरा रुझान रहा। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया और जेल भी गए। कॉलेज और स्कूली शिक्षा ग्वालियर से पूरी हुई।

उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक किया। अटल जी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीतिशास्त्र में परास्नातक की डिग्री ली। राजनीतिक में आने से पहले अटल जी ने थोड़े वक्त के लिए पत्रकारिता भी की। इस दौरान वे राष्ट्रधर्म, पॉन्च्यजन्य, स्वदेश और वीर-अर्जुन पत्रिका में संपादक रहे। वाजपेयी का राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से छात्र जीवन में ही नाता बना और वे आजीवन स्वंय सेवक बन रहे।

एक सांसद के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी दो बार राज्यसभा और दस बार लोकसभा के सदस्य चुने गए। भारत रत्न से सम्मानित अटल जी देश के तीन बार प्रधानमंत्री बने। अटलजी का लंबा राजनीतिक जीवन रहा है। उन्होंने अधिकांश समय विपक्ष में बिताया है।

इसके बावजूद उन्‍होंने निरंतर जनहित से जुड़े मुद्दे उठाए और अपने सिद्धांतों से कभी विचलित नहीं हुए। अपनी दूरदर्शिता और शब्दों के साथ भाषा पर बेजोड़ पकड़ की वजह से वाजपेयी जी ने राजनीति, साहित्य और समाज के हर क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी। चाहे कैसी भी कठिनाइयां सामने रही हो, अटलजी ने अपने मजबूत इरादों के साथ उनका डटकर मुकाबला किया है।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय से राजनीति का पाठ पढने वाले अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ के सक्रिय सदस्य रहे। वे पहली बार 1957 में जनसंघ के टिकट पर बलरामपुर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। उनकी वाक् कला का ही जादू था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार संसद में बोलते हुए वाजपेयी को सुना और कहा कि इस लड़के के जिह्वा पर सरस्वती विराजमान है।

अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के इकलौते ऐसे नेता हैं, जिन्हें चार अलग-अलग राज्यों से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचने का गौरव हासिल है। लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और दिल्ली का प्रतिनिधित्व किया था।

अटल बिहारी वाजपेयी को मोरारजी देसाई की अगुवाई में बनी जनता पार्टी सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहने का मौका मिला। इस पद पर रहते हुए उन्होंने पूरी दुनिया में भारत की बातों को मजबूती से रखा।

कुशल और मुखर वक्ता के रूप में वाजपेयी का जादू संयुक्त राष्ट्र के सर चढ़ कर बोला. विदेश मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिंदी में संबोधित किया और भारत का मान पूरी दुनिया में बढ़ाया।

अटल बिहारी वाजपेयी में संगठन की शक्ति भी कूट-कूटकर भरी थी। उन्हें धैर्य और संयम के साथ कड़ी मेहनत पर पूरा भरोसा था। 1980 में जनता पार्टी के टूट जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने लालकृष्ण आडवाणी और कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। वे बीजेपी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।

अटल बिहारी वाजपेयी और भारत दोनों के लिए 1996 का समय इतिहास में दर्ज हो गया जब 2 सीटों से शुरु हुआ सफ़र लोकसभा चुनाव में 161 सीटों तक पहुंच गया। अटलजी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बनें ये अलग बात है कि इस सरकार को सत्ता में 13 दिन ही रहने का मौका मिला।

1998 में देश की जनता ने एक बार फिर से अटल बिहारी वाजपेयी पर भरोसा जताया और बीजेपी 182 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी अटल जी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। उनके नेतृत्व में बीजेपी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए ने केन्द्र में सरकार बनायी। ये सरकार 13 महीने तक चली।

1999 में तेरहवीं लोकसभा के चुनाव में 182 सीटें जीतकर बीजेपी लगातार तीसरी बार सबसे बड़ी पार्टी बनी। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक बार फिर से एनडीए की सरकार बनी। इस चुनाव के बाद ही अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के तौर पर 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा करने का मौका मिला। अटल जी 1999 से 13 मई 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। अटल जी ही ऐसे शख्स थे जिनकी अगुवाई में केन्द्र में पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी सरकार ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।

अटल जी ने हमेशा एक मजबूत भारत का सपना देखा था वो चाहते थे कि भारत के शांतिप्रिय होने का कोई विरोधी देश नाजायज फायदा न उठाए इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री रहते देश की आत्मरक्षा के लिए एक बड़ा और साहसिक फैसला लिया।

उन्होंने पोखरण दो परीक्षणों की इजाजत दे कर भारत की ओर आशंका से उठने वाली हर नजर को झुका दिया। अटल जी के नेतृत्व में 11 और 13 मई 1998 को दो भूमिगत विस्फोट हुए। ये विश्व पटल पर एक नए और मजबूत भारत का उदय था।

पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने भारत पर दबाव बनाने के लिए आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. इसके बावजूद अटलजी परमाणु शक्ति संपन्न देशों की नाराजगी से तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने अग्नि सीरीज़ के मिसाइलों का परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिए एक और मजबूत कदम आगे बढ़ाया। उन्होंने साफ कर दिया था कि वो अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते नीतियां नहीं बनाते।

अटल जी अक्सर कहते थे कि दोस्‍त बदले जा सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं। वो हमेशा भारत के पड़ोसी देशों से अच्छे संबंधों की वकालत करते थे। कुछ इसी सोच के साथ उन्होंने पाकिस्तान से साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। वाजपेयी जी ने दिल्ली और लाहौर के बीच पहली बार सीधी बस सेवा 20 फ़रवरी 1999 को शुरू की और खुद पाक सीमा पर एक बस से अटारी से वाघा तक का सफ़र किया।

लेकिन पाकिस्तान को हमेशा की तरह भारत के भाईचारे का ये संदेश रास नहीं आया। इधर अटल बिहारी वाजपेयी दोस्ती की इबारत लिख रहे थे तो उधर पाकिस्तान कारगिल जंग की तैयारी पूरी कर चुका था।

लाइन ऑफ कंट्रोल के पास कारगिल सेक्टर में आतंकवादियों का मुखौटा ओढ़कर पाकिस्तानी सेना कई भारतीय चोटियों पर कब्जा कर चुकी थी। लेकिन जैसे भारत को इसकी भनक हुई हमारे जाबांज सैनिकों के शौर्य और साहस ने पाकिस्तान को एक बार फिर मुंहतोड़ जवाब दिया और कारगिल में विजय पताका लहरा दी।

अपने कार्यों की बदौलत वाजपेयी जी भारतीय राजनीति के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्तित्वों में से एक हो गए। वे जब विपक्ष में रहे तो देश को एक जिम्मेदार विपक्ष का आभास होता रहा और जब देश की कमान उनके हाथ में आई भारत की ज्यादातर जनता महसूस करती रही थी कि उनके जिम्मेदार हाथों में पूरी तरह सुरक्षित है।

वाजपेयी जी स्वास्थ्य वजहों से 2009 में सक्रिय राजनीति से अलग हो गए थे। अनेक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित अटलजी को 27 मार्च 2015 को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। अटल बिहारी वाजपेयी का 16 अगस्त 2018 को निधन हो गया। उनकी कविता आज भी प्रासंगिक है, उन्होंने जग को नया गीत सुनाया था तथा अपने कार्यों से वे जनमानस में सदैव अमर रहेंगे।

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,
अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं,
गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं।

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