गोवा मुक्ति दिवस 19 दिसंबर 1961 भारत को जिस स्वरुप और जिन भौगोलिक सीमाओं को वर्तमान में हम देख पा रहे है वह स्वतन्त्रता प्राप्ति के बहुत बहुत बाद तक चले संघर्ष और एकीकरण के अनथक चले अभियान का परिणाम है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी बहुत से क्षेत्र ऐसे …
Read More »राष्ट्ररक्षा का भाव ही वनवासी समाज का मूल स्वभाव
“यदि मेरे पास शक्ति है तथा मैं इसका प्रयोग कर सकता हूँ तो मुझे धर्म-परिवर्तन को रोकना चाहिए। हिंदू परिवारों में मिशनरी के आगमन का अर्थ वेशभूषा, तौर-तरीके, भाषा, खान-पान में परिवर्तन के कारण परिवार का विघटन है।” -गांधीजी ‘हरिजन’, 5 नवम्बर 1935 स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव अर्थात 75 वीं …
Read More »स्वतंत्रता संग्राम में पूर्वोत्तर की प्रतिनिधि यौद्धा : रानी गाईदिन्ल्यू
पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों में एक लोकोक्ति बड़ी ही प्रचलित है – “सोत पो, तेरह नाती ; तेहे करीबा कूँहिंयार खेती।” अर्थात स्त्री यथेष्ट संख्या में जब बच्चों को जन्म देगी तब ही समाज में खेती सफल होगी। पूर्वोत्तर के हाड़तोड़ श्रम करने वाले समाज में यह कहावत परिस्थितिवश ही …
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