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दक्षिण कोसल के रामायण कालीन ऋषि मुनि एवं उनके आश्रम : वेबीनार रिपोर्ट

दक्षिण कोसल के रामायण कालीन ऋषि मुनि एवं उनके आश्रम विषय पर ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण उत्तर प्रदेश और सेंटर फॉर स्टडी एंड हॉलिस्टिक डेवलपमेंट छत्तीसगढ़ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार श्रृंखला की 9 वीं कड़ी का आयोजन दिनाँक 9/8/ 2020, रविवार, शाम 7:00 से 8:30 के मध्य किया गया।

इस वेबीनार में उद्घाटन उद्बोधन श्री विवेक सक्सेना जी एस एच डी के सचिव ने किया। मुख्य अतिथि- श्रीमती रेणुका सिंह जी मिनिस्टर आफ स्टेट ,ट्राईबल अफेयर्स, गवर्नमेंट आफ इंडिया, चेयरपर्सन- प्रो शैलेन्द्र स़राफ फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट, मुख्य वक्ता – श्रीमती रेखा पांडेय, लेक्चरर (हिंदी), अंबिकापुर, अतिथि वक्ता- डॉ हरीश चंद्रा जी, फाउंडर, डायरेक्टर सेंटर फॉर साइंसेस इन यूएसए ने (भारतीय ऋषि ट्रेडीशन एंड ग्लोबल इंपैक्ट विषय पर) आभार प्रदर्शन- श्री विवेक सक्सेना सचिव सी एस एच डी,छत्तीसगढ़ प्रोग्राम डायरेक्टर एंड होस्ट श्री ललित शर्मा जी., इंडोलॉजिस्ट, इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण, छत्तीसगढ़ तथा रिपोर्टिंग हरि सिंह क्षत्री ,मार्गदर्शक, जिला पुरातत्त्व संग्रहालय कोरबा ने की।

वेबीनार के होस्ट श्री ललित शर्मा जी इंडोलॉजिस्ट, प्रोग्राम डायरेक्टर इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण, छत्तीसगढ़ ने आज के वेबीनार में आमंत्रित सभी अतिथियों का परिचय देकर स्वागत करने के बाद रामचरितमानस का एक दोहा -जड़ चेतन जग जीव जग, सकल राममय जानि । बंदव सबके पद कमल, सदा जोर जुग पाहिं कहते हुए, उद्घाटन उद्बोधन के लिए सी एस एच डी के सचिव विवेक सक्सेना जी को आमंत्रित किया।

उद्घाटन उद्बोधन करते हुए सी एस एसडी के सचिव श्री विवेक सक्सेना जी ने कहा कि दक्षिण कोसल का क्षेत्र ऋषि-मुनियों का क्षेत्र रहा है। हम हर रविवार को वेबीनार के माध्यम से जुड़ते हैं। आज का विषय दक्षिण कोसल के रामायण कालीन ऋषि मुनि और उनके आश्रम है। रामायण काल में दक्षिण कोसल में अनेक ऋषि-मुनियों का आश्रम थे। जहाँ वे निवास करते थे। उनको जानना रोमांचक और भावपूर्ण काम है। फिर उन्होंने मुख्य अतिथि, अध्यक्ष, मुख्य वक्ता, अतिथि वक्ता, फेसबुक और यूट्यूब से जुड़े हुए समस्त विद्वतजनों का स्वागत करते हुए ,हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति और संस्कृति पर विचार रखते हुए आधुनिक शिक्षा पद्धति और मैकाले की शिक्षा पद्धति पर आघात करते हुए प्राचीन संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था पर जोर देने का आग्रह करते हुए , मुख्य वक्ता श्रीमती रेखा पांडे जी का परिचय दिया। विद्वतजनों को इस विषय पर सुनेंगे। दक्षिण कोसल का क्षेत्र, राम का ननिहाल क्षेत्र रहा है और यह उनके वन गमन मार्ग का क्षेत्र भी रहा है, कहते हुए, उन्होंने आज के विद्वानों, वक्ताओं ,अतिथियों का स्वागत करते हुए अपनी बात समाप्त की

उसके बाद फिर होस्ट श्री ललित शर्मा जी ने आज के मुख्य वक्ता अंबिकापुर की श्रीमती रेखा पांडेय जी का परिचय देते हुए उन्हें अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया।

मुख्य वक्ता श्रीमती रेखा पांडेय ,लेक्चरर,(हिंदी), अंबिकापुर ने वेबीनार के अतिथियों को संबोधित करने के बाद कहा कि इस वेबीनार पर आख्यान देने का अवसर प्रदान करने के लिए संयोजक को धन्यवाद। उन्होंने भारत की संस्कृति को विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृति बताया। उन्होंने कहा कि हमारे ऋषि-मुनि, जानकार और विचारक होते हुए वैज्ञानिक भी रहे हैं। हमारे ऋषि-मुनियों का वर्णन विभिन्न साहित्यों और रामायण के अनुसार महर्षि अंगिरा से लेकर गहिरा गुरु और महेश योगी से लेकर अन्य ऋषि मुनियों के बारे में विस्तृत वर्णन हैं। छत्तीसगढ़ में विभिन्न क्षेत्रों में ऋषि-मुनियों का आश्रम और तपस्थली रहे हैं। सरगुजा से लेकर बस्तर तक के क्षेत्र में, राम के वनवास के समय के अनेक स्थलों का उन्होंने जानकारी देते हुए विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने यह भी कहा कि एक ही ऋषि के अनेक आश्रम होते थे। विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार रामायण के पूर्ववर्ती और परवर्ती ऋषि-मुनि इस क्षेत्र में रहे हैं। महरकंडा, शरभंग, वाल्मिकी, अत्रि, अंगिरा, अगस्त्य आदि ऋषि मुनियों का यह क्षेत्र रहा है।

महरकंडा ऋषि और उनके आश्रम के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि अंबिकापुर से बनारस रोड पर महानदी के तट पर एक प्राचीन गुफा है। अंदर से देखने पर यह ओम की आकृति की बनी हुई दिखाई देती है। जनश्रुति के अनुसार इसी गुफा में महर्षि महरकंडा ऋषि तप और साधना करते थे। उसके पास ही उनका एक आश्रम भी था ।जहाँ वनवास के दौरान भगवान राम सीता और लक्ष्मण जी उनसे भेंट करने आए थे।

जमदग्नि आश्रम- सूरजपुर तहसील में देवगढ़ नामक स्थान है। जो अंबिकापुर से लगभग 38 किलोमीटर दूर रेड नदी के तट पर स्थित है । यह महर्षि जमदग्नि का आश्रम माना जाता है। रामायण काल में इस जगह पर महर्षि जमदग्नि का आश्रम था। जो भगवान परशुराम के पिताजी और उनकी माता रेणुका थी। कहते हैं कि इसी रेणुका जी रेण नदी के नाम से यहाँ पर बहती हैं। वनवास के दौरान इस क्षेत्र पर भगवान राम आए थे।

मतंग ऋषि -रामायण काल में महर्षि मतंग का आश्रम शिवरीनारायण के पास स्थित था। कुछ लोग मतरेंगा नामक स्थल को भी मतंग ऋषि का आश्रम स्थल मानते हैं ।रामायण काल में मतंग ऋषि की शिष्या शबरी से भगवान राम की भेंट हुआ था ।जो उस आश्रम की रक्षा करते । जहाँ उनके गुरु मतंग जी ने भगवान राम से उनकी भेंट की भविष्यवाणी पहले ही कर दिए थे ।

शरभंग मुनि – किवदंती अनुसार मैनपाट के मछली प्वाइंट के पास सरभंजा ग्राम है। जहाँ शरभंग मुनि का आश्रम हुआ करता था। वनवास के दौरान भगवान राम पहले बंदर कोट से केसरी वन पहुँचे और उसके बाद सूतीक्ष्ण मुनि को साथ लेकर महर्षि दंतोली के पास गये। वहां से सभी महर्षि शरभंग मुनि के आश्रम जाकर उनसे मुलाकात की।

मंडूक ऋषि – बिलासपुर के पास मदकू द्वीप को मंडूक ऋषि का आश्रम स्थल मानते हैं ।उत्खनन के बाद यहां कुछ मंदिरों के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं। मान्यता है कि यहीं पर मंडूक ऋषि का आश्रम था ।जहाँ पर वे तप साधना करते थे।

वाल्मीकि आश्रम- तुरतुरिया के पास उनका आश्रम था। जहाँ पर लव और कुश का जन्म हुआ था। बेग्लर और कनिंघम ने भी अपने सर्वे रिपोर्ट में तुरतुरिया ग्राम में ही वाल्मीकि आश्रम होने की मान्यता की बात कही थी।

अत्रि ऋषि- ऋग्वेद के पांचवें मंडल के ऋषि, अत्री को माना जाता है माना जाता है। किवदंति अनुसार पांडुका के पास अतरमरा में उनका आश्रम था।

लोमस ऋषि आश्रम- शरीर पर अत्यधिक रोम होने के कारण इस ऋषि का नाम लोमस पड़ा था। रामायण काल में दक्षिण यात्रा के समय भगवान राम से लोमस ऋषि की भेंट हुई। लोमस संहिता, लोमस रामायण आदि ग्रंथ के रचयिता महर्षि लोमस ही थे। दक्षिण कोसल में राजिम के पास महानदी के तट पर उनका आश्रम हुआ करता था।

श्रृंगी ऋषि- श्रृंगी ऋषि का आश्रम सिहावा के पास स्थित पहाड़ी पर था। इसके अलावा भी सिहावा के गिरि कंदराओं में ऋषियों के आश्रम थे। श्रृंगी ऋषि को भगवान राम की बहन शांता का पति माना जाता है। जिन्होंने अयोध्या के महाराजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ को संपन्न कराया था। किवदंती है कि उनके कमंडल से एक समय जल गिर गया था। जो दक्षिण की ओर बहने लगा था उसे उन्होंने उत्तर की ओर बहने का आदेश दिया। तब यहाँ से कुछ दूर जाने पर महानदी दक्षिण की ओर जाते हुए उत्तर की ओर बहने लगी थी।

अंगिरा ऋषि – ऋग्वेद के अनुसार अग्नि की खोज इसी ऋषि अंगिरा ने किया था। यह महर्षि वृहस्पति के पुत्र थे। इनका आश्रम भी इसी क्षेत्र में था।

ऋषिकंक- गंगरेल बांध के पास ही देवखूंट नामक ग्राम था। यहाँ मंदिरों का एक समूह था। पर जब गंगरेल बांध बना तो यह क्षेत्रत्र बांध के पानी में डूब गया। यहीं देवखूंट में ही ऋषि कंक का आश्रम था। इनका एक आश्रम कांकेर में भी था। माना जाता है कि कांकेर का नाम इसी ऋषि कंक के नाम पर ही पड़ा।

महर्षि अगस्त्य – महर्षि अगस्त्य को मंत्र दृष्टा भी कहा जाता है ।इनका विवाह विदर्भ के राजकुमारी लोपामुद्रा के साथ हुआ था। कहा जाता है कि मंत्र शक्ति के प्रभाव से उन्होंने एक बार समुद्र को भी पी लिया था ।

उन्होंने गौतम ऋषि के आश्रम के बारे में बताते हुए कहा कि सिहावा के पास ही न्याय शास्त्र के रचयिता गौतम ऋषि का आश्रम भी था। राम ने एक यात्रा के दौरान विश्वामित्र जी की आज्ञा से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार किया था।

फिर उन्होंने अखंड ऋषि के बारे में बताते हुए कहा कि लाटामारी के पास अखंड ऋषि का आश्रम था। माण्डकर्णी ऋषि के बारे में बताते हुए कहा कि मांडुकर्णी नदी के तट पर एक आश्रम हुआ करता था। नदी की धारा यहाँ पर 5 धारा में बंटकर गिरती है।

राम को हम भाँचा का रूप मानते हैं। बस्तर में अनेक ऋषि मुनियों का आश्रम थे। हमारी संस्कृति ऋषि- मुनियों की संस्कृति है। जिनसे वनवास के दौरान भगवान राम ने भेंट की। अंत में तुलसीदास कृत स्त्रोत का पाठ कर, धन्यवाद करते हुए अपनी वाणी को विराम दिया ।

उसके बाद ललित शर्मा जी ने कहा कि आज के इस वेबीनार में श्रीमती रेखा पांडेय जी ने दक्षिण कोसल के ऋषि परंपरा और उनके आश्रम के बारे में विस्तार से जानकारी दी ।

इसके बाद उन्होंने आज के अतिथि वक्ता डॉक्टर हरिशचंद्र जी, फाउंडर डायरेक्टर ,सेंटर फॉर इनर साइंस हॉस्टन, यू एस ए को उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया। उनका उद्बोधन भारतीय ऋषि ट्रेडीशन एंड इट्स ग्लोबल इंपैक्ट पर था। उन्होंने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारतीय ऋषि मुनियों का वैश्विक प्रभाव पर व्याख्यान को मैंने तीन खंडों पर बांटा है । आज साइंस का युग है। हमें क्या पढ़ना चाहिए, हम क्या पढ़ रहे हैं और हमें क्या-क्या करना है इत्यादि पर उन्होंने चिंतन करते हुए कहा कि- ऋषि उसे कहते हैं जिन्होंने कुछ दर्शन कर लिया है। अंतः चक्षु से जिसने कुछ दर्शन कर लिया है। अंतः चक्षु से जिसने कुछ देख कर पा लिया है, और फिर उस ज्ञान को बांटते हैं ,वही ऋषि है । यह अभ्यास के माध्यम से ही प्राप्त होता है । हठयोग से न जोड़कर इसे पतंजलि से जोड़ कर देखेंगे। ऋषि शब्द धातु में ज्ञान की प्राप्ति है। वेद को श्रुति कहा जाता है। जिसे कोई नहीं कह सकता है कि इसे मैंने लिखा है। वेद मंत्र ही प्रमाणित रुप से बोल रहे हैं कि उनके चार हिस्सा है। हमने बाहरी रूप से वेद सुना है। जबकि उन्होंने अंतः चक्षु से उसे प्राप्त किया। चित्त वृत्ति निरोधः सूत्र को पतंजलि ने अपनाया । सर्व चिंता के आधार पर मानव मात्र को ज्ञान देता है । इस प्रक्रिया को लेकर किसी मजहब विशेष को न लेकर मानव मात्र के कल्याण के लिए देखना चाहिए ।

सांख्यचित्र के माध्यम से अपनी बातें करते हुए कहा कि अंतर्ज्ञान मुनियों को समाधि के रूप में मिलती है । कपिल ने उसे ही विज्ञान कहा है। साइंस और विज्ञान में यही अंतर है । ऋषि और मंत्र पर चर्चा में, आपने कहा कि 1-1 मंत्र के एक ऋषि हैं। वेदों में प्रत्येक मंत्र के एक देवता होता है, जो दिव्य मंत्र से प्रकाशित हैं। मंत्र के ऋषि ने सर्वप्रथम उसी मंत्र को जाना। फिर छंद के रूप में ढाला गया उसे।

जैसे कि मैडम जी ने अंगिरा आदि ऋषियों के बारे में कहा- ऐतिहासिक रूप से माना जाता है कि पाणिनि ने व्याकरण शास्त्र की रचना की, जबकि पाणिनि के पहले भी व्याकरण थे । पर अंतिम में उसे पाणिनि ने बद्ध किया। उसे छः धाराओं में रचनाबद्ध किया ।

निरुक्त आदि छंदों की विस्तार किया । वे ही ऋषि -मुनि कहलाते हैं। सांख्य भी एक ऋषि है । ऋषियों की संख्या हजारों में हैं। जैसे कि दयानंद जी ने कहा कि यह ब्रह्मा जी से जैमीनी तक हैं।

आधुनिक युग में मैटर को द्रव्य कहा जाता है। इसे लकड़ी के उदाहरण देकर समझाया। आज का साइंस के एक मैटर तक ही आबद्ध है। यूरोपियन मजहबी परंपरा ज्ञात 5000 वर्ष की ही देन है। उनका पूर्व में कोई भेद नहीं है। जिस प्रकार की अब है।

आज के साइंस के हिसाब से 1 मैटर को लैबोरेट्री में बनाते हैं। जिसे लैब में प्रयोग करते हैं। भारतीय ऋषि परंपरा में इनका अध्ययन किया जाता था। हमारे ऋषि मुनि वैज्ञानिक थे। आधुनिक युग के सामने, इसे मजहब में गलत रूप से प्रकट किया जा रहा है। आधुनिक विज्ञान विकासवाद के बोधक है। भारत में दो चिंतन हैं। दोनों का समन्वय कैसे होगा ? यह कठिन काम है।

मैं महर्षि दयानंद को श्रद्धांजलि देना चाहूँगा वेदमंत्र में वह रहस्य हैं जो मनुष्य को एक दिशा दे सकता है। विगत 3000- 4000 साल से हम इस दिशा में कह रहें हैं। इस दिशा में दयानंद जी ने व्यापक चर्चा की है। तिब्बत में ही आदि मानव का उदय हुआ होगा, क्योंकि यही सबसे बड़ा भाग है। इत्यादि बातें करते हुए,उन्होंने अपनी वाणी को विश्राम देकर सबका धन्यवाद किया ।

फिर कार्यक्रम के होस्ट ललित शर्मा जी ने मुख्य अतिथि श्रीमती रेणुका सिंह मिनिस्टर आफ स्टेट फॉर ट्राईबल अफेयर्स गवर्नमेंट ऑफ इंडिया को अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया।

श्रीमती रेणुका सिंह जी ने जय श्रीराम बोल कर अपना उद्बोधन प्रारंभ किया। सबसे पहले उन्होंने सभी अतिथियों को संबोधित किया। तत्पश्चात् उन्होंने आधुनिक परिवेश में इस प्रकार के कार्यक्रम की महत्ता को बताते हुए कहा कि पूर्व में ही हम कोरोना बीमारी से परिचित हैं। जिसके कारण हम इस प्रकार के कार्यक्रम से जुड़े हैं। भविष्य में भी इस प्रकार के वेबीनार के माध्यम से जुड़ते रहेंगे। अपनी अपनी बातों को रखते हुए देश की संस्कृति को मजबूत करेंगे । सरगुजा की पावन भूमि, देवभूमि है, यह मेरी कर्म भूमि है। आप सबकी मनोकामना को आज हलषष्ठी देवी पूरी करें। आज शेषावतार बलदाऊ जी के जन्मदिन पर भी आप सबको बधाई ।

रामगढ़, सरगुजा क्षेत्र प्राचीन राजपत्रों, अभिलेखों और नक्शा में देवभूमि रहा है। शरभंग, वाल्मीकि ऋषि सरगुजा में आकर तपकर आश्रम भी बनाए। विद्वानों के अनुसार है यहाँ की सभ्यता से रामायण काल के पूर्व की है।
चौदह बच्छर विपत्ति ल बितावय।
रामगढ़ पर्वत म घरे ल बनवाय।
राज जस संत न होत।

प्रयाग, भरहुत, सतना होते हुए राम सरगुजा आए थे सूरजपुर जिले में रक्सगंडा नामक जगह पर एक पोखरी है जहाँ का पानी साल भर मटमैला रहता है। मान्यता है कि इसी पोखरी में सीता स्नान करती थी। यहाँ की मिट्टी से बाल धोती थी । इसीलिए यहाँ का पानी साल भर मटमैला रहता है । जबकि आसपास के क्षेत्रों में स्वच्छ जल के अनेक स्रोत हैं।

जमदग्नि ऋषि का आश्रम का वर्णन करते हुए उन्होंने अपने माता पिता को धन्यवाद देते हुए कहा कि मेरा नाम भी जमदग्नि ऋषिपत्नी रेणुका के नाम पर ही रखा गया है। सरगुजा और प्राचीन दक्षिण कोसल के इतिहास और पुरातत्व अधिक से अधिक समृद्ध रहा है। भगवान राम को धरती पर लाने का गौरव भी इसी धरती को ही जाता है। बस्तर में सीता नदी बहती है, जिसका संबंध निश्चित ही सीता देवी से रहा होगा। शबरी की भेंट भगवान राम से शिवरीनारायण में हुई थी, कंक का संबंध निश्चित ही कांकेर से रहा होगा। शिल्पांकन में जांजगीर के विष्णु मंदिर, खरौद के लक्ष्मणेश्वर मंदिर, मल्हार के पातालेश्वर मंदिर और भीम-कीचक मंदिर के शिल्पांकन से संबंध है। ताला के संग्रहालय में ऋषि का शिल्पांकन देखने को मिलता है। तुरतुरिया में वाल्मीकि का आश्रम रहा है ।जहाँ लव- कुश का जन्म हुआ। मान्यता है कि वनवास के समय राम का इस क्षेत्र से संबंध रहा है।

राजिम क्षेत्र से लोमस ऋषि, सिहावा से श्रृंगी ऋषि और सप्तर्षियों का संबंध पर भी आपने प्रकाश डाला। हम सब सौभाग्यशाली हैं की राम का ननिहाल यहाँ है। हम सब भारतवासी बहुत खुश हैं कि 500 सालों से हम सब जिस चीज का इंतजार कर रहे थे। जिस पर इस 5 अगस्त को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने राम मंदिर का भूमि पूजन किया, आदि बातें कहते हुए, उन्होंने अपनी वाणी को विराम दिया। कार्यक्रम के होस्ट ने कहा कि आपका उद्बोधन सारगर्भित रहा है । आपने बहुत से बातों पर प्रकाश डाला है।
फिर ललित शर्मा जी ने अध्यक्षीय उद्बोधन के लिए प्रो शैलेन्द्र सराफ जी को आमंत्रित किया ।

अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए स़राफ जी ने सभी को संबोधन पश्चात् कहा कि रामायण विश्वकोश के निर्माण के लिए, रामायण शोध संस्थान और सी एस एच डी के माध्यम से जो यह काम हो रहा है, वह अद्भुत है। भारतीय अस्मिता के पुनर्जागरण के बाद यह प्रथम आयोजन है। फिर उन्होंने तुलसी के दोहे का वाचन किया। पश्चिम की संस्कृति हर चीज में प्रमाण मांगती है । हमारी संस्कृति को अब पश्चात्य भी मानता है, पर वह दो बातों को छोड़ देते हैं। मन और आत्मा को। क्योंकि इस पर उनका कोई शोध नहीं है। जबकि हमारे संस्कृति में इस पर व्यापक चर्चा होती है। आज के उद्घाटन उद्बोधन में डॉ विवेक सक्सेना जी ने सारगर्भित बातें कहीं। मुख्य वक्ता ने भी विस्तार से आज के विषय पर सारगर्भित बातें की। इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण के माध्यम से हमारी संस्कृति में, राम की संस्कृति का दस्तावेज़ीकरण होगा।

रेखा पांडेय जी जिस प्रकार सभी ऋषि और उनके आश्रम का विस्तार से चर्चा किया वह सराहनीय है। उसके बाद भी सभी, सब कुछ जानते हैं। जब दस्तावेज़करण होगा। तो यह अमूल्य धरोहर होगी। वेदों के बारे में बोलते हुए अतिथि वक्ता ने विचारपूर्ण और वैज्ञानिकता को संयुक्त रूप से मेल को शोधपरक उद्बोधन करने की बात कही। वेदों का कोई लेखक नहीं है । ध्वनि को भी सुनते और लाइट को देख सकते थे । इसे ज्ञात कर वेदों का आबंधन किया। साइंस और अध्यात्म का कोई मेल नहीं होता है। पर हमारे अतिथि वक्ता श्री हरिश्चंद्र जी जैसे विद्वानों ने संबंध स्थापित किया है। इन दस्तावेजीकरण का लाभ भविष्य में होना हैं। हरिश चंद्रा जी ने भी विस्तार से, अपनी बातें अच्छे शब्दों में, साइंस और अध्यात्म को समन्वित कर कनेक्ट कर बहुत अच्छा व्याख्यान सारगर्भित रूप में दिया।

उन्होंने ललित शर्मा जी को आचार्य हरिश्चंद्र जी एक और व्याख्यान रखने की सलाह दी। जिसे ललित शर्मा जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। हरीशचंद्र जी ने दयानन्द जी के बातों को उद्धरण देते हुए इस बात पर जोर दिया कि हिमालय के तिब्बत क्षेत्र में, जिसे त्रिविष्टप के नाम से जाना जाता था उस पर आदिमानवों की उत्पत्ति हुई। उसके लिए उन्होंने कुछ तर्क दिए। रेणुका जी को यथा नाम तथा गुण कहते हुए उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा की।

बाद में ललित शर्मा जी आभार प्रदर्शन के लिए। सी एस एच डी के सचिव विवेक सक्सेना जी को आभार प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया। जिस पर विवेक शर्मा जी ने सभी अतिथियों के अलावा फेसबुक और यूट्यूब से जुड़े हुए समस्त श्रोताओं का भी आभार व्यक्त किया।

हरिसिंह क्षत्री
मार्गदर्शक – जिला पुरातत्व संग्रहालय कोरबा, छत्तीसगढ़ मो. नं.-9407920525, 9827189845

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