मंदिरों की नगरी सिंगारपुर जहाँ विराजी हैं मावली माता। कई शताब्दी पूर्व बंजारों की अधिष्ठात्री देवी अब समूचे अंचल की आराध्या हो गई हैं। भक्तों की आस्था के साथ लोक विश्वास में मावली माता सभी मनोरथ को पूर्ण करने वाली हैं। सिंगारपुर में मंदिर के समीप कई समाजों के मंदिर बनते चले गये और सिंगारपुर मंदिरों की नगरी हो गया।
मावली माता मंदिर में भव्य निर्माण के साथ सनातन देवी देवताओं सहित महापुरुष आदमकद मूर्तियाँ लगाई गई हैं। आज सिंगारपुर एक धार्मिक तीर्थ स्थल बन गया है।
मावली माता का मंदिर कब बना इस पर कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं है। जन श्रुति और इतिहास की कड़ियों को पिरोते हुए मंदिर के अध्यक्ष दाऊ जगत नारायन अग्रवाल बताते हैं – कभी सिंगारपुर आबादीहीन समतल मैदान था। उन दिनों लाखा बंजारा व्यापार करने आते थे और उनका पड़ाव यहीं होता था।
बंजारों ने अपने निस्तार के लिए यहाँ एक तालाब बनवाया, इसी के साथ बंजारों के मुखिया ने दैवीय प्रेरणा से माता के स्वरुप को गढ़ा और मंदिर बना वहाँ उन्हें प्रतिस्थापित किया। मंदिर निर्माण के बाद मुखिया यहीं रम गया। जिसकी समाधि आज भी मंदिर के समीप बनी हुई है।
1901 के गजेटियर में मावली सिंगारपुर का उल्लेख किया गया है। तरेंगा के मालगुजार दाऊ कल्याण सिंह ने सिंगारपुर के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए एक गोंड़ पुजारी को नियुक्त किया, मंदिर की व्यवस्था चलती रहे इसके लिए लेवई गांव की जमीन मंदिर में दान दी।
मावली माता के प्रति लोंगों की आस्था बढ़ती चली गई, जो मनौती मानने माता के दरबार में आने लगे। इसी के साथ कई समाज के मंदिर यहाँ बनते चले गये। उल्लेखनीय मंदिरों में साहू समाज का राम मंदिर, देंवागन समाज का परमेश्वरी देवी मंदिर, झिरिया राऊत समाज का लड्डू गोपाल मंदिर, कुर्मी समाज का राम दरबार मंदिर, ढीमर समाज का महादेव मंदिर, यादव समाज का भोला नाथ मंदिर आदि हैं। सतनामी समाज का जैतखाम भी यहाँ स्थापित है।
लोक देवी के नाम से मावली माता आज सभी समाज में पूजनीय है। जिनके मंदिर निर्माण का सिलसिला आज भी जारी है। एक दशक पूर्व मावली माता मंदिर को विस्तार देने उनके अनन्य भक्त जगत नारायण आगे आए, दाऊ जी ने माता मंदिर के आस पास मंदिर से जोड़कर तीन मंजिला भवन बनाया। जिस भवन में सभी समाज के आराध्य देवों की आदमकद मूर्तियाँ लगवाई।
सनातन धर्म के सभी देवों की मूर्तियों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, त्रिदेवियों में लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा सहित नदी देवियों की मुर्तियाँ भी स्थाप्ति की गई हैं। हिन्दुओं के चार तीर्थ बद्रीनाथ, द्वारिकाधीश, रामेश्वरम और जगन्नाथ जी के विग्रह भी प्रतिस्थापित किए गए हैं।
पौराणिक कथ्यों के आधार पर कई देवी देवताओं की मूर्तियां लगाई गई हैं, जो सम्पूर्ण गाथा कहते हैं। विष्णु के दशावतार, रामदरबार, शैव परिवार की प्रतिमांए अलग अलग कक्षों में दिखती हैं। सर्व धर्म के उद्देश्य को लेकर जैन तीर्थंकरों सहित कबीर दास, गुरु नानक देव, जलाराम बापू, महाराजा अग्रसेन, रामदेव, सांई बाबा, संत माता कर्मा आदि की प्रतिमाएं हैं। सभी मूर्तियाँ संगमरमर की हैं जिन्हें अलग-अलग कक्षों में स्थापित किया गया है।
सिंगारपुर में माता मंदिर का भव्य प्रवेश द्वार सुंदर अलंकरणों से सुसज्जित है। मंदिर के प्रवेश द्वार के समीप प्राचीन तालाब है, जिसके प्रति भक्तों की आस्था आज भी है। फ़सलों में कीट प्रकोप होने पर किसान तालाब का जल ले जाकर खेतों में छिड़काव करते हैं। मंदिर समिति ने एक बड़ी आधुनिक धर्मशाला भी बनाई हैं जहां बाहर के भक्त आकर ठहर सकते हैं।
हर बरस कुंवार एव शारदीय नवरात्रि पर्व पर भारी जन समूह यहाँ आ जुटता है, पहले माता के दरबार में मनौती पूर्ण होने पर बकरे की बलि दी जाती है। एक दशक पूर्व बलि प्रथा बंद कर दी गई है। कुंवार नवरात्रि पर्व में भक्तों की मनोकामना ज्योति प्रज्जवलित की जाती है। 2019 में सात हजार से अधिक मनोकामना ज्योति कलश स्थापित किए गए थे।
माता मंदिर समिति ने सिंगारपुर को सुंदर तीर्थ स्थल बनाने के लिए एक विशाल उद्यान भी बनाया है, मंदिर समिति के प्रदीप अग्रवाल ने बताया कि जन कल्याण हेतु यहां पर पूरे वर्ष कई प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाते हैं। जिससे नवयुवकों को रोजगार प्रोत्साहन मिलता है। बाहर से आए तीर्थ यात्रा समूह के लिए भोजन की समुचित व्यवस्था भी की जाने लगी है।
छतीसगढ़ अंचल में ही नही, दूरस्थ क्षेत्रों से भक्तगण सिंगारपुर माता का दर्शन करने आते हैं। माता के मंदिर तक पहुंचने के लिए बिलासपुर रायपुर रेलमार्ग के बीच भाटापारा रेल्वे स्टेशन से जाया जा सकता है। भाटापारा से पूर्व दिशा की ओर सड़क मार्ग पर बारह किमी दूरी पर सिंगारपुर स्थित है। किसी भी मौसम में सिंगारपुर पहुंचा जा सकता है।
आलेख