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चैतुरगढ़ की महामाया माई

कलचुरी राजवंश की माता महिषासुरमर्दिनी चैतुरगढ़ में आज महामाया देवी के नाम से पूजनीय है। परंपरागत परिधान से मंदिर में माता अपने परंपरागत परिधान से सुसज्जित हैं, जो 12 भुजी हैं, जो सदैव वस्त्रों से ढके रहते हैं। पूर्वाभिमुख विराजी माता को सूरज की पहली किरण उनके चरण पखारने को लालायित हो उठती है और भक्तगण उनके दर्शन पाकर कृतार्थ हो उठते हैं।

महामाया मंदिर – माता का मंदिर लाफ़ागढ़ किला के सिंहद्वार से पश्चिम की ओर बना हुआ है। मंदिर नागर शैली में बना पूर्वाभिमुख है। सभा मंडप और गर्भगृह तक पहुंचने के लिए 8 सीढ़ियां हैं। संपूर्ण मंदिर 20 स्तंभों पर आधारित है। गर्भगृह चौकोर अधिष्ठान के ऊपर है जो नीचे से चौड़ा ऊपर से संकरा होता हुआ वृत्ताकार है। गर्भगृह में माता महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति स्थापित है। महामाया देवी छत्तीसगढ़ की पहली पहली देवी मूर्ति है, जो कलचुरी राजवंश के छत्तीसगढ़ में आधिपत्य का प्रतीक है। मंदिर का सभा मंडप 16 स्तंभों वाला है, जिसके ऊपर प्रस्तर निर्मित की छत है। सभा मंडप के साथ चार स्तंभों वाला प्रवेश द्वार है जहां से गर्भ गृह में पहुंचा जाता है।

इतिहास- मैकल पर्वत श्रृंखला के बीच छत्तीसगढ़ में एक है लाफ़ागढ़, जिसे चैतुरगढ़ का किला भी कहा गया है। मैकल पर्वत श्रृंखला की 3060 फीट की ऊंची पहाड़ी पर प्राचीन सैन्य सुरक्षा दृष्टि से बना हुआ है यह दुर्गम किला। जो चारों ओर प्राकृतिक दीवारों से घिरा हुआ है, केवल कुछ स्थानों पर ऊंची -ऊंची दीवारें बनाई गई हैं।                      

चैतुरगढ़ किले के तीन प्रवेश द्वार मेनका विदार, हुंकारा द्वार और सिंहद्वार हैं। पहाड़ी के शीर्ष पर समतल मैदान है और यहां बनाए गए हैं पांच तालाब जिसमें तीन तलाब सदानीरा है।

हैहयवंश के शासन काल से यहां का इतिहास मिलता है। हैहयवंशी राजा के 18 पुत्रों में से एक पुत्र हुआ कलिंगा। कलिंगा का पुत्र राजा कमला बड़ा प्रतापी हुआ जिसने तुम्मान में कई साल तक राज किया। कलचुरी वंश के राजा रत्नराज प्रथम ने राजा कमला को परास्त किया। रत्नराज के बाद पृथ्वीदेव ने राज्य काल संभाला। पृथ्वीदेव ने कलचुरी संवत 821 अर्थात 1069 ईसवी सन् में लाफ़ागढ़ किले का निर्माण किया। लाफागढ़ किला में कलचुरी कालीन स्थापत्य कला का वैभव नजर आता है। 14शताब्दी में गोंड राजा संग्राम सिंह के 52 गढ़ों में से एक गढ़ लाफ़ागढ़, राजनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण बना रहा। 

पूजा परंपरा – शारदीय व चैत्र नवरात्रि पर्व पर यहां विशेष पूजा होती है। पहले राजा पूजा करते थे फिर प्रजा देवी का पूजन करती है। नवरात्र पर यहां दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं और माता के समक्ष अपनी मनोकामना के लिए प्रार्थना करते हैं। मंदिर की देखरेख करने के लिए उड़िया बाबा ने किले के समीप अपनी धूनी बनाई हैं।

दर्शनीय स्थल – श्रृंगी झरना पर्वत श्रृंखला में स्थित है इस पर्वत श्रृंखला में ही जटाशंकरी नदी का उदगम स्थल है। जटाशंकरी नदी तट पर तुम्मान खोल प्राचीन स्थल है ,जो कभी कलचुरी वंश की प्रथम राजधानी था।

शंकर खोल गुफा- माता मंदिर से 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित है शंकर गुफा। गुफा का प्रवेश द्वार छोटा होने के कारण यहां लेट कर जाना पड़ता है। 25 फीट लंबी गुफा के अंत में शिवलिंग स्थापित है। शंकर गुफा जाते समय आसपास का प्राकृतिक मनोरम दृश्य देखने के लायक है।

चामा दहरा – चामा दहरा के आसपास का मनोरम दृश्य बड़ा लुभावना है। जटाशंकरी नदी उदगम के समीप यह देखा जा सकता है। मेनका मंदिर – शंकर गुफा के ऊपर चढ़ाई पर मेनका मंदिर है, जो बाद में बनवाया गया प्रतीत होता है। यहां तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी है मेनका मंदिर जाते समय आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है जिसे यहां से निहारा जा सकता है। पहाड़ के पांच तालाब – पर्वत के शिखर पर पांच तालाब बने हुए हैं जिसमें जिसमें तीन तलाब सदानीरा हैं। तालाबों में तरह तरह के पक्षी गण दिख पड़ते हैं।        

चैतुरगढ़ का किला – सुरक्षा की दृष्टि से बना चैतुरगढ़ का किला बेजोड़ नमूना है। कलचुरी कालीन स्थापत्य कला को यहां देखा जा सकता है। अब किला बहुत जगह से टूट चुका है मगर उसके अवशेष वैभवशाली इतिहास के साक्षी हैं। किले तक पहुंचने के लिए सीधी चढ़ाई है।किला के प्रवेश में सिंह द्वार प्रस्तर निर्मित है।  

पर्यटन – चैतुरगढ़ को छत्तीसगढ़ का कश्मीर भी कहा गया है। यहां धर्म प्राण लोग देवी महामाया का दर्शन करने आते हैं वहीं पुरातत्व प्रेमी कलचुरी कालीन स्थापत्य कला को निहारते हैं और यहां की अनूठी मनोरम प्रकृति का आनंद लेते हैं। पहाड़ की चढ़ाई के साथ आसपास की सुरम्य प्रकृति में तरह-तरह के पेड़ -पौधे जड़ी -बूटियां और चहचहाते दुर्लभ पक्षी, सब कुछ एक साथ प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य समेटे हुए हैं चैतुरगढ़। पर्वत के ऊपर एसईसीएल ने पर्यटकों को ठहरने के लिए मातृगृह बनवाए हैं। यहाँ कीपूजा एवं विकास समिति ने भी यहां यात्रियों के विश्राम हेतु कमरे बनवाए हैं ।यहां पेयजल की भी सुविधा है।

पहुंच मार्ग – चैतुरगढ़ पहुंचने के लिए कोरबा रेलवे स्टेशन से 50 किलोमीटर एवम बिलासपुर रेलवे स्टेशन से 55 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से कोरबा बस स्टैंड से 50 किलोमीटर एवं बिलासपुर से पाली बादरा वन मागँ मार्ग पर 55 किलोमीटर दूर स्थित है, चैतुरगढ़। किले तक पहुंचने के लिए बिलासपुर से पाली 40 किलोमीटर सड़क मार्ग है और पाली से बगदरा तक 15 किलोमीटर सड़क मार्ग है। बगदरा के बाद किल तक पहुंचने के लिए चढ़ाई करनी पड़ती है। पैदल या अपने वाहन द्वारा भी ऊपर तक पहुंचा जा सकता है।

सभी फ़ोटो – ललित शर्मा

आलेख

श्री रविन्द्र गिन्नौरे
भाटापारा, छतीसगढ़

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