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केशकाल का भव्य झरना : उमरादाह

प्रकृति की अपार खूबसूरती से भरा बस्तर संभाग अपने अकूत प्राकृतिक सौंदर्य और खनिज संपदा के लिए जाना जाता है। इसी क्रम में अविभाजित बस्तर जिले से मुक्त होकर बने नवीन जिले कोंडागांव में पर्यटन की अपार संभावनाएं है, जिसका सिरमौर केशकाल विकासखंड है। विगत एक दो वर्षों में चर्चा …

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नागा साधू द्वारा शापित नगर की कहानी

प्राचीनकाल से भारत भूमि में संत-महात्माओं, ॠषि-मुनियों की सुदीर्घ परम्परा रही है। संत-महात्माओं के आशीषों के फ़लों की किंदन्तियो, किस्से कहानियों के रुप में वर्तमान में चर्चा होती है तो उनके द्वारा दिए गये शापों की भी चर्चा होती है। ऐसा ही एक शाप लखनपुर को मिला था। जानकारों की …

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मंदिरों की नगरी : प्रतापपुर

छत्तीसगढ़ के उत्तरांचल में जनजातीय बहुल संभाग सरगुजा है, यहाँ की प्राकृतिक सौम्यता, हरियाली, ऐतिहासिक व पुरातात्विक स्थलें, लोकजीवन की झांकी, सांस्कृतिक परंपराएं, रीति-रिवाज, पर्वत, पठार, नदियाँ कलात्मक आकर्षण बरबस ही मन को मोह लेते हैं। सरगुजा अंचल के नवीन उत्खनन ने तो भारत के इतिहास में एक नया स्वर्णिम …

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अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार : छत्तीसगढ़ निर्माण दिवस

पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का सपना हमारे पुरखों ने देखा था और उस सुनहरे स्वप्न को हकीकत का अमलीजामा पहनाने के लिए संघर्ष और आंदोलन का एक लंबा दौर चला। पं.सुंदरलाल छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रथम स्वप्नदृष्टा थे तत्पश्चात डॉ खूबचंद बघेल, संत पवन दीवान, ठाकुर रामकृष्ण सिंह और श्री चंदूलाल …

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मध्ययुगीन भारतीय भक्ति परम्परा की सिरमौर मीरा बाई

मध्ययुगीन भक्ति परम्परा की सिरमौर मीरा बाई उस युग की एकमात्र महिला भक्त संत है जिन्होंने सगुण भक्ति के कृष्णोपासक के रूप में हिंदी साहित्य में अपनी अमिट छाप ही नही छोड़ी वरन उस युग के समाज पर प्रश्न उठाकर समाज की दिशा व दशा निर्धारित करने का बीड़ा भी …

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ज्योतिष और खगोलशास्त्र के प्रकांड पंडित : महर्षि वाल्मीकि

भारत वर्ष ॠषि, मुनियों, महर्षियों की जन्म भूमि एवं देवी-देवताओं की लीला भूमि है। हमारी सनातन संस्कृति विश्व मानव समुदाय का मार्गदर्शन करती है, यहाँ वेदों जैसे महाग्रंथ रचे गए तो रामायण तथा महाभारत जैसे महाकाव्य भी रचे गये, जिनको हम द्वितीयोSस्ति कह सकते हैं क्योंकि इनकी अतिरिक्त विश्व में …

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आनंद का द्वार शरद पूर्णिमा त्यौहार

सनातन परम्परा प्रकृति को पूजती है, उसकी आराधना करती है। प्रकृति में सर्वप्रथम सूर्य और चंद्रमा के साथ पृथ्वी दृष्टिगोचर होती है। इसलिए प्रात: काल शैय्या से उठने एवं पृथ्वी पर पग धरने से पहले उसे नमन करने की परम्परा है। उसके बाद स्नानादिपरांत सूर्य को अर्घ देकर दिवस के …

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जिनकी रगों में दौड़ती थी भारतभक्ति की लहरें : भगिनी निवेदिता

स्वामी विवेकानन्द ने भगिनी निवेदिता से कहा था कि ‘भविष्य की भारत-संतानों के लिए तुम एकाधार में जननी, सेविका और सखा बन जाओ।’ अपने गुरुदेव के इस निर्देश का उन्होंने अक्षरश: पालन किया था। भारत की लज्जा और गर्व निवेदिता की व्यक्तिगत लज्जा और गर्व बन गये थे। किसी भी …

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समर्पण और देशभक्ति की पर्याय : भगिनी निवेदिता

“भारतवर्ष से जिन विदेशियों ने वास्तविक रूप से प्रेम किया है, उनमें निवेदिता का स्थान सर्वोपरि है।” —अवनीन्द्रनाथ ठाकुर  भारत भूमि और भारतीय संस्कृति के वैभवशाली स्वरुप के आकर्षण ने सदैव ही विदेशियों को प्रभावित किया और इसी कारण कुछ विदेशियों ने कर्मभूमि मानकर भारत की सेवा में पूरा जीवन …

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शक्ति का उपासना स्थल खल्लारी माता

छत्तीसगढ़ अंचल की शाक्त परम्परा में शक्ति के कई रुप हैं, रजवाड़ों एवं गाँवों में शक्ति की उपासना भिन्न भिन्न रुपों में की जाती है। ऐसी ही एक शक्ति हैं खल्लारी माता। खल्लारी में माता जी की पूजा अर्चना तो प्रतिदिन होती ही है चैत और कुआंर कि नवरात्रि में …

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