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भारतीय हस्तशिल्प: रचनात्मकता और कलात्मकता का अनूठा संगम

भारत का हस्तशिल्प/ परम्परागत शिल्प विश्व प्रसिद्ध है, प्राचीन काल से ही यह शिल्प विश्व को दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर करता रहा है। तत्कालीन समय में ऐसे शिल्पों का निर्माण हुआ जिसने विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया। नवीन अन्वेषण प्राचीन काल में परम्परागत शिल्पकारों द्वारा होते रहे हैं। जिन्हें चमत्कार से कम नहीं समझा जाता था। एक उदाहरण राजा भोज के काल है, राजा भोज के भोजप्रबंध में लिखा है –

घटयेकया कोशदशैकमश्व: सुकृत्रिमो गच्छति चारुगत्या ।

वायुं ददाति व्यजनं सुपुष्कलं विना मनुष्येण चलत्यजस्त्रम ॥

यंत्रयुक्त हाथी चिंघाड़ता तथा चलता हुआ प्रतीत होता है। शुक आदि पक्षी भी ताल के अनुसार नृत्य करते हैं तथा पाठ करते है। पुतली, हाथी, घोडा, बन्दर आदि भी अंगसंचालन करते हुए ताल के अनुसार नृत्य करते मनोहर लगते है। उस समय बना एक यंत्रनिर्मित पुतला नियुक्त किया था। वह पुतला वह बात कह देता था जो राजा भोज कहना चाहते थे ।।

हस्तशिल्प से तात्पर्य उन कलाकृतियों से भी है जो हाथ से अपने आस-पास उपलब्ध वस्तुओं द्वारा सरल औजारों से निर्मित की जाती है। हस्त निर्मित इन वस्तुओं का विशेष महत्व होता है। इन कलाकृतियों में दैनिक उपयोग की वस्तुओं से लेकर सजावट, फैशन एवं दैनिक घरेलू उपयोग की वस्तुएं बनाई जाती हैं। भारत की कला-संस्कृति अपनी सम्पन्नता एवं अनूठेपन के कारण विश्व प्रसिद्ध और सदैव ही आकर्षण का केंद्र भी रही है। भारत की परम्परगत शिल्पकला को वर्तमान में हस्त शिल्प भी कहा जाने लगा है।

भारत में सभी राज्यों के लोगों के बीच हस्तशिल्प के महत्व  के प्रति समाज में जागरूकता लाने व सहयोग बढ़ाने तथा कारीगरों के कल्याणार्थ एवं प्राचीन काल से चली आ रही संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के उद्देश्य से अखिल भारतीय हस्तशिल्प विकास आयुक्त के कार्यालय एवं वस्त्र मंत्रालय द्वारा अखिल भारतीय हस्तशिल्प दिवस पूरे भारत मे 8 दिसंबर से 14 दिसंबर तक  मनाया जाता है।

जिसमें कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शन का अवसर प्रदान किया जाता है जिसमें देश की विभिन्न  जाति, धर्म, व्यवसाय, परंपरा, संस्कृति, सभ्यता से लोगों को परिचित कराने के उद्देश्य से विभिन्न कलाकारों द्वारा  हस्तनिर्मित कलाकृतियों, वस्तुओं की प्रदर्शनियाँ लगाई जाती हैं और जगार, मेले का आयोजन किया जाता है। जहां  देश-विदेश से प्रतिनिधि, व्यापारी और सभी लोग  देखने आते हैं। इस आयोजन से कलाकारों की कलाकृतियों को प्रोत्साहन मिलने के साथ उनका बाजार भी बढ़ता है और प्रचार-प्रसार भी देश-विदेश तक होता है। देश औद्योगिक विकास  को भी बढ़ावा मिलता है।

अखिल भारतीय शिल्प सप्ताह में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है,जिसमें क्रेता-विक्रेता की बैठक, हस्तशिल्प की प्रदर्शनी, भारतीय कलाकारों द्वारा कलात्मक प्रदर्शन, राष्ट्रीय पुरस्कार  विजेता शिल्प व्यक्तियों द्वारा  सजीव प्रदर्शन एवं भारतीय भोजन की प्रदर्शनी इत्यादि कार्यक्रम होते हैं साथ ही स्वर्गीय कमला देवी चट्टोपाध्याय को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है, ये समाज सुधारक व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा भारतीय हस्तकला के क्षेत्र में नवजागरण लाने वाली गाँधी वादी महिला थीं। इन्होंने ग्रामीण अंचल में घूम घूम कर हस्तशिल्प ,हस्तकरघा कलाओं का संग्रह किया।

भारतीय हस्तशिल्प की अपनी विशिष्टता एवं गौरवशाली पारंपरिक इतिहास भी रहा है। यहाँ कलाकारों और उसकी हस्त निर्मित कलाकृतियों का पूरा खज़ाना है। यहां का हस्तशिल्प राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय स्तर अपनी विशेष पहचान बना कर प्रतिष्ठित भी हो चुका है।

भारत के हस्तशिल्प में बांस शिल्प, बेंत शिल्प, बेल मेटल शिल्प, मिट्टी शिल्प, पीतल शिल्प, जूट, कागज, रॉक या पत्थर शिल्प, शैल शिल्प इसमें  शंख, कछुआ, समुद्री शैल से निर्मित वस्तुयें आती हैं। सोने-चांदी की मीनाकारी, बुनाई-कढ़ाई,काष्ठ शिल्प,संगमरमर, कांच,चमड़ा, चित्रकारी इत्यादि अनगिनत हैं।

भारत के हस्तशिल्प में काश्मीरी ऊनी कालीन ,कढ़ाई व जरी की कढ़ाई वाले वस्त्र, मिट्टी और सिरेमिक के उत्पाद का अपना विशेष स्थान है। प्राचीन काल से इन हस्तशिल्पों को सिल्क रुट रास्ते यूरोप, अफ्रीका, पश्चिम एशिया व दूरवर्ती पूर्व के दूरस्थ देशों को निर्यात किया जाता था। भारत के हर प्रान्त का अपना लोक हस्तशिल्प है। विभिन्न धर्मों के अपने हस्तशिल्प हैं जो धार्मिक प्रयोजन के लिए ही निर्मित किये जाते हैं, परन्तु उनकी सुंदरता के आकर्षण से  सभी खिंचे चले आते हैं।

भारतीय हस्तशिल्प और सुंदर कलाकृतियों का क्षेत्र व संबंधित जानकारियां  अत्यंत विस्तृत है। हस्त निर्मित वस्तुओं में कलाकार की रचनात्मकता एवं कलात्मकता के साथ कल्पनाशीलता का भी  सम्मिश्रण मिलता है जिसे कलाकार पूरी तन्मयता के साथ गढ़ता है। इसमें  उस कलाकार की भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है।

हस्तशिल्पकार/परम्परागत शिल्पकार जाने-अनजाने अपनी संस्कृति, परंपरा, इतिहास का संवाहक बन जाता है। अपनी कलाकृतियों के माध्यम से लोक रीति एवं शास्त्रीय परंपरा का भी समन्वय स्थापित करते हुए हस्त शिल्प के  विभिन्न प्रकारों  को नया स्वरुप प्रदान करता है। साथ ही अपनी जीविकोपार्जन का माध्यम भी बनाता है।

हस्तशिल्पकार लोगों की रुचि तथा समय की मांग  के अनुरूप इनमें कुछ परिवर्तन करते हुए  कलाकृतियों को नए कलेवर के साथ भी प्रस्तुत करता है परंतु उसकी मौलिकता एवं स्वाभाविकता में कोई अंतर नहीं आता।

आज हस्तशिल्प आय का वैकल्पिक स्रोत के साथ अर्थ व्यवस्था का आधार भी है। मेक इन इंडिया  द्वारा इस क्षेत्र में उत्पादन पर विशेष जोर दिया जा रहा। प्रधानमंत्री की इस योजना का उद्देश्य भारतीय कलाकारों को कला प्रदर्शन का अवसर प्रदान करना है साथ ई कामर्स साइट्स से भी सहयोग मिल रहा जहां कलाकारों द्वारा उत्पाद सीधे बेचे जा सकते हैं।

पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही ये कलायें रोज़गार का भी अवसर प्रदान करने में सक्षम हैं। जिसमें कलाकार अपनी कल्पनाशक्ति से बेजान वस्तुओं जैसे धातु, लकड़ी, मिट्टी, जानवरों  की हड्डियों, दांत, कपड़े, घांस-फूंस एवं अपने अंचल में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन से ही अपनी कला को नैसर्गिक सौंदर्य के साथ जीवन्त रूप प्रदान करता है।

अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह  द्वारा देश भर के उन समस्त कारीगरों एवं उनकी कला को प्रोत्साहित किया जाता है ,जिन्होने  भारतीय संस्कृति – कला को  अब तक सहेज कर रखा है जो  हमारी अमूल्य धरोहर है। प्राचीन काल में भारत की उन्नति में एवं विश्वगुरु का स्थान दिलाने में परम्परागत शिल्पकला विशेष योगदान रहा है, वर्तमान में भी सरकार को परम्परागत शिल्प के संरक्षण एवं संवर्धन में विशेष ध्यान देना चाहिए।

फ़ोटो – ललित शर्मा (इण्डोलॉजिस्ट)

आलेख

श्रीमती रेखा पाण्डेय (लिपि) हिन्दी व्याख्याता अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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