जनजातीय कबीलों के अपने सांस्कृतिक रीति रिवाज होते हैं, जो उनके कबीले में पीढ़ी दर पीढ़ी चले आते हैं तथा ये कबीले परम्परागत रुप से अपनी संस्कृति से बंधे होते हैं। दक्षिण कोसल में बहुत सारी जनजातियाँ निवास करती हैं, उनमें से एक बैगा जनजाति है। बैगा जनजाति का विस्तार …
Read More »Monthly Archives: December 2018
दक्षिण कोसल का एक ऐसा स्थान जहाँ भयंकर युद्ध के अवशेष मिलते हैं
बालोद से दुर्ग मार्ग में पैरी नामक छोटा सा ग्राम है। पैरी ग्राम से लगा हुआ एक छोटा सा ग्राम है गौरेया। बालोद से आने वाली तांदुला नदी पैरी एवं गौरेया ग्राम की सीमा रेखा बनाती है। बालोद क्षेत्र अपने एतिहासिक एवं दर्शनीय स्थलों के लिये छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। …
Read More »बस्तर की जनजातीय भाषा हल्बी के बारे में जानें
आदिवासी बहुल बस्तर अंचल में यहाँ की मूल जनजातीय भाषा गोंडी (मैदानी गोंडी, अबुझमाड़ी गोंडी) के साथ-साथ हल्बी, भतरी, दोरली, धुरवी, परजी, चँडारी, लोहारी, पनकी, कोस्टी, बस्तरी, घड़वी, पारदी, अँदकुरी, मिरगानी, ओझी, बंजारी, लमानी, पण्डई या बामनी आदि जनजातीय एवं लोक-भाषाएँ बोली जाती रही हैं। प्राय: सभी लोक-भाषाएँ सम्बन्धित जनजातियों/जातियों …
Read More »डोंगी में दिल्ली से कलकत्ता तक यात्रा की कहानी, डॉ राकेश तिवारी की जुबानी
घुमक्कड़ मनुष्य की शारीरिक मानसिक एवं अध्यात्मिक क्षमता की कोई सीमा नहीं। ये तीनों अदम्य इच्छा से किसी भी स्तर तक जा सकती हैं और चांद को पड़ाव बना कर मंगल तक सफ़र कर आती हैं। घुमक्कड़ी करना भी कोई आसान काम नहीं है, यह दुस्साहस है जो बहुत ही कम …
Read More »जानिए पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक कौन थे एवं कहाँ है उनकी जन्मभूमि?
छत्तीसगढ के रायपुर जिले के अभनपुर ब्लॉक के ग्राम चांपाझर में पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मभूमि स्थित है। देश-विदेश से बहुतायत में तीर्थ यात्री दर्शनार्थ आते है पुण्य लाभ प्राप्त करने। कहते हैं कि कभी इस क्षेत्र में चम्पावन होने के कारण इसका नाम चांपाझर पड़ा। कालांतर में …
Read More »राजा कर्ण जिनके राज्याभिषेक होने पर उनका कल्चुरी संवत प्रारंभ हुआ
मेकलसुता रेवा का उद्गम स्थल अमरकंटक है, यहां प्राचीन काल के अवशेष मिलते हैं तथा यह ॠषि मुनियों की तपोस्थली रही है। इतिहास से ज्ञात होता है कि वैदिक काल में महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में ‘यदु कबीला’ इस क्षेत्र में आकर बसा और यहीं से इस क्षेत्र में अन्यों का …
Read More »बन बाग उपवन वाटिका, सर कूप वापी सोहाई
दक्षिण कोसल के प्राचीन महानगरों में जल आपूर्ति के साधन के रुप में हमें कुंए प्राप्त होते हैं। कई कुंए तो ऐसे हैं जो हजार बरस से अद्यतन सतत जलापूर्ति कर रहे हैं। आज भी ग्रामीण अंचल की जल निस्तारी का प्रमुख साधन कुंए ही हैं। कुंए का मीठा एवं …
Read More »जानिए देवालयों की भित्ति में यह प्रतिमा क्यों स्थापित की जाती है
प्राचीन मंदिरों के स्थापत्य में बाह्य भित्तियों पर हमें कौतुहल पैदा करने वाली एक प्रतिमा बहुधा दिखाई दे जाती है, जिसकी मुखाकृति राक्षस जैसी भयावह दिखाई देती है। जानकारी न होने के कारण इसे लोग शिवगण मानकर आगे बढ़ जाते हैं। कई बार मंदिरों में उपस्थित लोगों से पूछते भी …
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