विश्व भर में विभिन्न धर्म/सम्प्रदाय को मानने वाले हैं। प्रत्येक का अपना एक पंचाग या कैलेंडर है। इन्हीं तिथियों के अनुसार विभिन्न पर्व, व्रत-त्योहार परंपरागत रूप से मनाए जाते हैं। इसी प्रकार नए वर्ष को भी बड़े पर्व के रूप में मनाने की परपरा दिखाई देती है। ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार एक जनवरी को नया वर्ष मनाया जाता है।
हिंदू नववर्ष नव संवत्सर, हिंदू धर्म पंचांग के अनुसार चैत्र मास का कृष्ण पक्ष बीत जाने के पश्चात अमावस्या तिथि के दूसरे दिन शुक्लपक्ष की प्रथम तिथि अर्थात प्रतिपदा को चैत्र नवरात्रि के साथ मनाया जाता है। इसी दिन से बसन्त नवरात्रि का प्रारंभ भी होता है।
हिंदू पंचांग की गणना सूर्य, चंद्र, नक्षत्र पर आधारित होती है। पंचांग के पांच अंग तिथि, नक्षत्र, योग, करण और वार हैं। हिंदू पंचांग का चैत्र माह वर्ष का प्रथम एवं फाल्गुन अंतिम माह होता है। प्रत्येक माह में कृष्ण एवं शुक्लपक्ष होते हैं। चैत्र माह में धरती, सूर्य का एक चक्र पूर्ण कर दूसरा चक्र प्रारंभ करती है तभी नववर्ष का प्रारंभ होता है। जो अंग्रेजी कैलेंडर के मार्च-अप्रैल माह में हिंदु नवसंवत्सरके रूप में मनाया जाता है।
भारत में विक्रम संवत के अनुसार समस्त तीज-त्यौहार मनाए जाते हैं जिसे चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने स्थापित किया था। उन्होंने प्राचीन काल से चले आ रहे ऋषि-संवत, कलियुग-संवत और युधिष्ठिर-संवत को परिष्कृत करके विक्रम संवत चलाया। स्वतंत्रता पश्चात शक-संवत को राष्ट्रीय संवत घोषित कर दिया गया।
भारत के सभी प्रांतों में नववर्ष विभिन्न नामों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा, कर्नाटक में युगादि, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगादि, पंजाब में वैशाखी, कश्मीर में नवरेह, मणिपुर में सजिबुनोंगमा पानबा या मेइतेई चोइराओबा, सिंध में चेटीचंड, गोवा और केरल में संवत्सर पड़वो नाम से तथा अन्य राज्यों में विशु, चित्रैय, तिरुविजा नामों से जाना जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाने के नैसर्गिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण हैं।
इसे नवसंवत्सर इसलिए कहा जाता है कि हिन्दू माह बारह मास, चैत्र, वैशाख, जेष्ठ, आषाढ़, सावन, भादों, अश्विन(कुंवार), कार्तिक, अगहन, पौष, माघ, फाल्गुन होते हैं। उसी तरह प्रत्येक आने वाले वर्ष का भी एक नाम होता है। बारह माह के एक काल को संवत्सर कहते हैं। प्रत्येक संवत्सर का भी एक नाम होता है।
संवत्सर अर्थात बारह मास की विशेष अवधि। बृहस्पति के राशि बदलने के साथ इनका आरंभ माना जाता है। साठ संवत्सरों के नाम इस प्रकार हैं-परभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव, अव्यव, सर्वजीत, सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर, नन्दन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्बी, विलम्बी, विकारी, शार्वरी, प्लव, शुभक्रत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, पराभव, प्लवंग, कीलक, सौम्य, साधारण, विरोधकृत, परिधावी, प्रमादी, आनन्द, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुन्दभी, रुधिरोद्गारी, रक्ताक्षी, क्रोधन एवं अक्षय। वर्तमान नवसंवत्सर को पिंगल नाम से जाना जाएगा।
भारतीय हिन्दू धर्म पंचांग और काल-निर्धारण के अनुसार हिंदु धर्म मतावलम्बी नववर्ष को बड़े हर्षोल्लास के साथ परंपरागत तरीकों से दिशा-स्थान के अनुसार मनाते हैं। क्योंकि नवीनता सदैव कल्याण एवं सुख-समृद्धि की आशा की किरण लेकर आती है। नया, नव, नूतन शब्द सुनते ही हृदय उत्साह और उत्सुकता से भर उठता है।
नया कुछ भी हो चाहे, भौतिक जगत की वस्तुएं हों या नया कार्य व्यापार हो अथवा नववर्ष हो, इन सभी की अनुभूति अनूठी ही होती है। समय और जीवन दोनों ही चलायमान हैं। उत्तर-चढ़ाव भी निश्चित है। इसलिए जीवन को सरसता और आनन्द से व्यतीत करने के लिए मनुष्य सदैव प्रयत्नशील रहते हुए जीवन के प्रत्येक क्षण को आनन्द पर्व की भांति मनाता है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व
- इसी दिन आज से 1,97,38,13,123 वर्ष पूर्व ईश्वर ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। (सृष्टि संवत्)
- इसी दिन आज से 1,96,08,53,123 वर्ष पूर्व इस सृष्टि काल के प्रथम युवा मनुष्यों के जोड़ों ने जन्म लिया था।(मानव संवत्)
- मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था।
- महाराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 5158 वर्ष पूर्व इसी दिन हुआ था।
- 2079 वर्ष पूर्व सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन अपना राज्य स्थापित किया। उसी दिन से प्रसिद्ध विक्रमी संवत् प्रारंभ हुआ।
- 148 वर्ष पूर्व महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन को आर्य समाज की स्थापना दिवस के रूप में चुना। आर्य समाज वेद प्रचार का महान कार्य करने वाला एकमात्र संगठन है।
- विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी का जन्म भी इसी दिन हुआ था।
नया वर्ष बीते समय की बातों से सीख लेकर नई आशा, उत्साह के साथ आने वाले समय को सुख-समृद्धि से भरपूर जीवन जीने को प्रेरित करता है। हिन्दू धर्म पंचांग के अनुसार नववर्ष का प्रारंभ चैत्र माह की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है। इसी दिन से बसन्त नवरात्रि (चैत्र नवरात्रि) प्रारंभ होती है तथा भगवान राम का जन्म दिन इसी नवरात्रि की नवमी तिथि को धूम धाम से मनाय जाता है।
आलेख
बहुत सुंदर जानकारी👌👌👌