आर्य संस्कृति के दक्षिण में प्रसार के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम की भूमिका सर्वोपरि है। ऋग्वेद में विंध्याचल के आगे क्षेत्रों का कोई उल्लेख नहीं मिलता विंध्य पर्वत से ही उत्तर व दक्षिण भारत को विभाजित किया गया है। राम ने अपने चौदह वर्ष के वनवासी जीवन में दक्षिण क्षेत्र …
Read More »Monthly Archives: March 2023
चिरमिरी बरतुंगा कालरी में 14 वीं शताब्दी का सती मंदिर
चिरमिरी बरतुंगा कालरी में प्राचीन देवालय के अवशेष स्थित हैं। भग्नावशेषों में यहाँ बहुत सारे सती स्तंभ हैं, जो इस क्षेत्र में फ़ैले हुए हैं। यहाँ नवरात्रि में जातीय एवं जनजातीय समाज के लोग सती माता की आराधना एवं उपासना करते हैं। प्राचीन सती मंदिर बरतुंगा चैत्र नवरात्र के दिनों …
Read More »बुचीपुर की महामाया माई
हाफ नदी के सुरम्य तट पर बेमेतरा जिला के नवागढ़ तहसील में बसा छोटा सा गांव बुचीपुर है। यह गांव छत्तीसगढ़ के अन्य गांव के समान ही खेती किसानी वाला गांव है, परंतु इसकी प्रसिद्धि यहां विराजमान माँ महामाया के नाम से दूर-दूर तक है। दूर-दूर से यहां श्रद्धालु आते …
Read More »मल्हार की तपोलीन डिडिनेश्वरी देवी
अरपा, लीलागर और शिवनाथ नदी के बीच में बसी है प्राचीन नगरी मल्हार। कई धर्म, संस्कृतियों की धरोहरों को समेटे हुए यह कलचुरियों का गढ़ रही है। भगवान शिव के उपासक कलचुरि नरेश ने यहां मल्लाषरि, मल्लारी शिव का मंदिर बनवाया था। मल्लासुर दैत्य का संहार करने वाले शिव का …
Read More »जानिए संवत्सर क्या है?
विश्व भर में विभिन्न धर्म/सम्प्रदाय को मानने वाले हैं। प्रत्येक का अपना एक पंचाग या कैलेंडर है। इन्हीं तिथियों के अनुसार विभिन्न पर्व, व्रत-त्योहार परंपरागत रूप से मनाए जाते हैं। इसी प्रकार नए वर्ष को भी बड़े पर्व के रूप में मनाने की परपरा दिखाई देती है। ग्रेगेरियन कैलेंडर के …
Read More »भारतीय कालगणना की वैज्ञानिकता : नव वर्ष विशेष
आज सृष्टि के विकास आरंभ का दिन है, और संसार के लिये कालगणना के लिये नवसंवत्सर । अर्थात नये संवत् वर्ष का प्रथम दिन है । आज से विक्रम संवत् 2080 और युगाब्द 5125 आरंभ हो रहा है । इस संवत्सर का आरंभिक नाम नल और 24 अप्रैल से पिंगल …
Read More »बारहमासी लोकगीत : छत्तीसगढ़
लोककला मन में उठने वाले भावों को सहज रुप में अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्वत: स्थानांतरित हो जाने वाली विधा है। लोक कला हमारी संस्कृति की पहचान होती है, हमारी खुशी को प्रकट करने का माध्यम होती है। लोककला का क्षेत्र …
Read More »बिंद्रानवागढ़ की जमींदारी
बिंद्रानवागढ जमींदारी का इतिहास शुरु होता है लांजीगढ के राजकुमार सिंघलशाह के छुरा में आकर बसने से। तत्कालीन समय में यहां भुंजिया जाति के राजा चिंडा भुंजिया का शासन था। यहां की जमींदारी मरदा जमींदारी कहलाती थी। राजकुमार सिंघलशाह चूंकि एक राजपुत्र था, उसके छुरा में आकर बसने से चिंडा …
Read More »रामसाय की सुरमोहनी भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे
“घोड़ा रोवय घोड़ासार म, हाथी रोवय हाथीसार म …मोर रानी ये या, महलों में रोवय …” भरथरी की विधा में इस गीत का राग-संगीत तबले की थाप, बांसुरी के सुर में जीवन की सच्चाई को ब्यक्त करता है। छत्तीसगढ़ को इतिहास को झांक कर देंखें तो यहाँ का इतिहास यहाँ …
Read More »नवसस्येष्टि यज्ञ :पौराणिक ऐतिहासिक संदर्भ
भारत पर्वोत्सव की परम्परा अत्यन्त प्राचीन रही है फिर चाहे वह कोई भी त्यौहार क्यो न हो, हमारी उत्सवधर्मी संस्कृति में इसकी न केवल सदीर्घ परम्परा मौजुद है वरन् कई-कई प्रचलित रीतियों के साथ-साथ लोकमान्यताओं, अध्यात्मिक चेतना एवं धार्मिर्क आस्थाओं के बीज भी विद्यमान है। ऋतुराज वसंत की पूर्णाहुति पर …
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