चिरमिरी बरतुंगा कालरी में प्राचीन देवालय के अवशेष स्थित हैं। भग्नावशेषों में यहाँ बहुत सारे सती स्तंभ हैं, जो इस क्षेत्र में फ़ैले हुए हैं। यहाँ नवरात्रि में जातीय एवं जनजातीय समाज के लोग सती माता की आराधना एवं उपासना करते हैं। प्राचीन सती मंदिर बरतुंगा चैत्र नवरात्र के दिनों में बरसों से श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र बना हुआ है।
चिरमिरी बरतुंगा कालरी में सती मंदिर के समीप प्राचीन सभ्यता के अवशेष आज भी विखंडित होकर बिखरे पड़े हैं. हजारों साल पुरानी मूर्तियां आज भी यहां देवालय के रूप में पूजी जा रही हैं तथा जन आस्था का केन्द्र बनी हुई हैं। अष्टमी पूजन के साथ यहाँ भोग भंडारे का भी आयोजन किया जाता है।
आज भी लोग इन प्राचीन मूर्तियों को देखने को यहां पहुंचते हैं। यहां लोग जब जमीन की मिट्टी को हटाते है तो प्राचीन अवशेष निकलते हैं। कोयला उद्योग के समीप जंगलों के बीच इस मंदिर अपने आप मे अद्भुत और आश्चर्य का केंद्र है। सती मंदिर देवालय परिसर में टूटा-फूटा पुराना मंदिर है जिसमें कुछ पुरानी मूर्तियां व पत्थर व मिट्टी के बर्तन रखे हुए हैं।
जानकारी अनुसार स्थानीय स्तर पर उक्त देवालय में माता सती की पूजा प्राचीन काल से होती आ रही है। आज भी यहां पर बड़ी संख्या में पुराने अवशेष पड़े हैं। इस देवालय में बिखरी हुई मूर्तियों के मध्य माता सती का मंदिर स्थापित है, जहां चैत्र नवरात्र में विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
सती मंदिर के विषय मे जानकार बताते है कि रियासत काल मे उक्त स्थान में गोंड राजवंश की कुल देवी पूजा अर्चना की जाती रही है और आज भी सती मंदिर के मुख्य पुजारी का वंशज नियमित रूप से पूजा अर्चना करते आ रहे है।
व्यवस्था और प्रशासनिक उपेक्षाओं के बीच भी आज भी सती मंदिर स्थानीय नागरिकों और जनजाति के आस्था का केंद्र बना हुआ है, नवरात्र में सती मंदिर देवालय की छटा बड़ी ही अलौकिक रहती है .
आसपास के रहवासियों का कहना है कि लगभग 6 साल पहले पुरातत्व विभाग की टीम आई थी। उस समय कुछ अवशेषों को वह अपने साथ भी ले गई थी। सर्वे में बताया गया था कि यह 14 वीं शताब्दी के प्राचीन अवशेष है। इन प्राचीन अवषेषों का संरक्षण आज तक नहीं किया गया।
आलेख
बहुत ही बढ़िया जानकारी
बहुत सुंदर जानकारी अद्भुत स्थल