पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का सपना हमारे पुरखों ने देखा था और उस सुनहरे स्वप्न को हकीकत का अमलीजामा पहनाने के लिए संघर्ष और आंदोलन का एक लंबा दौर चला। पं.सुंदरलाल छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रथम स्वप्नदृष्टा थे तत्पश्चात डॉ खूबचंद बघेल, संत पवन दीवान, ठाकुर रामकृष्ण सिंह और श्री चंदूलाल चंद्राकर जैसे अनेकों माटी पुत्रों ने छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के आन्दोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में अटल जी की रायपुर में सभा हुई तो उन्होंने छत्तीसगढ़ की जनता से 11 लोकसभा सीट में अपने प्रत्याशियों को जिताने का आग्रह किया और चुनाव जीतने के बाद पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का आश्वासन दिया। चुनाव के बाद परिणाम आए। अपेक्षानुरूप अटल जी को सीटें नहीं मिली फिर भी उन्होंने अपना वादा निभाया और 1 नवंबर सन् 2000 से हमारा छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया। स्थापना के पश्चात छत्तीसगढ़ राज्य सफलता के नित नए सोपान तय करता रहा और आज हम बीसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की शस्य श्यामला धरती रत्नगर्भा है।एक से बढ़कर एक रत्न छत्तीसगढ़ महतारी की कोरा में जन्म लिए हैं। जिन्होने छत्तीसगढ़ के वैभव को देश-विदेश में फैलाया। दक्षिण कौशल, चेदिसगढ जैसे नामों से वर्णित इस धरा की बात ही निराली है। लोकगीत,सरल-सहज लोकजीवन और वन प्रांतर छत्तीसगढ़ के गौरव में चार चांद लगाते हैं और छत्तीसगढ़ के वैभव का यशगान करती है छत्तीसगढ़ के प्रख्यात भाषाविद्, साहित्यकार,उद्घोषक और कुशल वक्ता डॉ नरेन्द्र देव वर्मा की लेखनी से सृजित गीत अरपा पैरी के धार……
छत्तीसगढ़ महतारी का वर्णन करती इस गीत की सर्वप्रथम प्रस्तुति कला मर्मज्ञ दाऊ महासिंह चंद्राकर द्वारा गठित सांस्कृतिक लोकमंच”सोनहा बिहान” में हुई। इस गीत ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। सबसे बड़ी बात ये थी कि इस गीत की स्वरलिपि भी उन्हीं के द्वारा रची गई थी, जो आज भी थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ अनेक गायक गायिकाओं के कंठ से मुखरित होता है।
एक साक्षात्कार में सोनहा बिहान के गायक रहे भीखम धर्माकर जी ने बताया है कि इस गीत के लिए केदार यादव, साधना यादव सहित बहुत से कलाकारों ने खूब मेहनत किया था और उनकी मेहनत रंग भी लाई और गीत को अपार ख्याति मिली। इस गीत को स्व.लक्ष्मण मस्तूरिया, पद्मश्री ममता चंद्राकर, नन्ही गायिका आरू साहू सहित अनेक छोटे-बड़े गायक-गायिकाएं अपना स्वर दे चुके हैं। छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित लोक सांस्कृतिक मंच यथा चिन्हारी, लोकरंग अर्जुंदा और रंग सरोवर में इस गीत की प्रस्तुति जरुर होती है।
गीत के रचयिता साहित्यकार एवं भाषाविद डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा का जन्म सेवाग्राम वर्धा में 4 नंवबर 1939 को हुआ था। 8 सितंबर 1979 को उनका रायपुर में निधन हुआ। डॉ. नरेंद्र देव वर्मा, वस्तुतः छत्तीसगढ़ी भाषा-अस्मिता की पहचान बनाने वाले गंभीर कवि थे।उनके बड़े भाई स्वामी आत्मानंदजी का प्रभाव उनके जीवन पर बहुत अधिक पड़ा था।
उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा व साहित्य का उद्भव विकास में रविशंकर विश्वविद्यालय से पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त किया था और छत्तीसगढ़ी भाषा व साहित्य के लिए उत्कृष्ट कार्य किया था। उनकी एक प्रसिद्ध कृति थी- सुबह की तलाश नामक उपन्यास। हालांकि ये कृति हिंदी में थी पर इसी कृति का मंचीय स्वरूप था सोनहा बिहान। इस मंच की मूल संकल्पना उनकी थी साथ ही वे मंच पर उद्घोषक की भूमिका भी निभाते थे।
डॉ नरेन्द्र देव वर्मा जी द्वारा लिखित अरपा पैरी के धार….गीत को राज्य गीत का दर्जा दिलाने के लिए छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ अनेक वरिष्ठ साहित्यकार बहुत सालों से प्रयासरत थे। अंततः उनका प्रयास सफल हुआ और इस गीत को पिछले वर्ष राज्योत्सव के अवसर पर छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्यगीत घोषित किया गया।
ये भी एक संयोग है कि डॉ नरेन्द्र देव वर्मा जी के इस कालजयी गीत को राज्यगीत के रूप में प्रतिष्ठित करने का गौरव उनके दामाद और वर्तमान मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी को मिला। शासन द्वारा कुछ समय के बाद ही राज्यगीत को स्कूलों में प्रार्थना के समय गाने का आदेश जारी किया गया जो विद्यालयों में जारी है।
राष्ट्रीय गीत, राष्ट्र गान और राज्य गीत को गाने का क्षण गौरवशाली होता है। विभिन्न सरकारी समारोह में भी इस गीत को गाना अनिवार्य किया गया है। ये गीत छत्तीसगढ़ की पहचान बनकर छत्तीसगढ़ महतारी के वैभव को चतुर्दिक फैला रहा है।
अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार
इँदिरावती हा पखारय तोर पईयां
महूं पांवे परंव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
सोहय बिंदिया सहीं, घाट डोंगरी पहार
चंदा सुरूज बनय तोर नैना
सोनहा धाने के अंग, लुगरा हरियर हे रंग
तोर बोली हावय सुग्घर मैना
अंचरा तोर डोलावय पुरवईया
महूं पांवे परंव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
रयगढ़ हावय सुग्घर, तोरे मउरे मुकुट
सरगुजा अउ बिलासपुर हे बइहां
रयपुर कनिहा सही घाते सुग्घर फबय
दुरूग बस्तर सोहय पैजनियाँ
नांदगांव नवा करधनिया
महूं पांवे परंव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया।।
बोलो छत्तीसगढ़ महतारी की जय।