प्राचीनकाल से भारत भूमि में संत-महात्माओं, ॠषि-मुनियों की सुदीर्घ परम्परा रही है। संत-महात्माओं के आशीषों के फ़लों की किंदन्तियो, किस्से कहानियों के रुप में वर्तमान में चर्चा होती है तो उनके द्वारा दिए गये शापों की भी चर्चा होती है। ऐसा ही एक शाप लखनपुर को मिला था।
जानकारों की मानें तो रियासत काल में एक नागा बाबा ठाकुर बाड़ी अर्थात राम मंदिर आश्रम में कहीं से आकर ठहरे तथा मंदिर आश्रम को अपनी तपोभूमि बना लिए। तत्कालीन समय में लखनपुर में जमींदार का शासन था। नागा बाबा के वहां ठहरने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं थी।
बताया जाता है कि नागा बाबा बाकायदा अपनी आत्मरक्षा के लिए दो नाली बन्दूक अपने पास रखते थे तथा सवारी के लिए एक घोड़ा भी पाल रखा था। ठाकुर बाड़ी मंदिर में अक्सर भगवान जी के भक्तजन महिला-पुरुष पूजा अर्चना करने आते तथा नागा बाबा के भी दर्शन लाभ लेते थे।
नागा साधु विनोदी स्वभाव वाले होने के साथ अपने भक्तों से अतिशय प्रेम करते थे। सामान्य रूप से वक्त गुजरता रहा। परन्तु वक्त ने एक भयानक करवट बदली। लखनपुर गांववासियों ने बाबा को बदनाम करते हुए महिलाओं के उपर कुदृष्टि रखने का झूठा आरोप लगा दिया। जो नागा बाबा जैसे संत के लिए असहनीय था।
इस कृत्य पर उन्होंने लखनपुरवासियों को आर्थिक रुप से नष्ट एवं नाश होने का शाप दे दिया, इस नगर में कोई अपनी आर्थिक उन्नति नहीं कर सकेगा और गढ़ी के मुख्य दरवाजे की ओर से होते हुए अपने घोड़े पर सवार दक्षिण दिशा की ओर बह रही चुलहट नदी के सती घाट के उपर सुनसान एवं पलास पेड़ों से घिरे सुनसान स्थान में अपनी ही दो नाली बंदूक से गोली चलाकर आत्माहत्या कर ली।
गोली चलने की आवाज आस-पास के लोगों ने सुनी, घोड़े को अकेले इधर-उधर विचरते देखा लेकिन डर से किसी में यह साहस नहीं था कि गढ़ी में जाकर जमींदार को इस भयानक दुर्घटना के विषय में बता सकें। किसी तरह घटना के सम्बन्ध में तत्कालीन सतासीन जमींदार साहब को घटना की जानकारी दी गई।
जमींदार साहब ने इस दुखद घटना को संज्ञान में लेते हुए नागा बाबा के पार्थिव शरीर की समाधि उसी स्थान पर स्थापित करवा दी जहाँ पर उन्होंने आत्म हत्या की थी। वह स्थान पर विद्यमान है जहां नागा बाबा ने अपने प्राण त्यागे थे। तब से लेकर लखनपुर गांव को शापित समझा जाने लगा।
इस घटना के समय काल का कोई लिखित उल्लेख नहीं मिलता परन्तु लोगों में आज भी किंवदन्ति के रुप में चर्चा होती है। जब यह दुर्घटना हुई तब लखनपुर जमींदारी में किस जमींदार का शासन था इसका भी कोई लिखित अभिलेख नहीं मिलता और ना ही साक्षी बचे। परन्तु आज भी नागा बाबा के किस्से ग्रामीणों के बीच किंवदन्ति के रुप में चर्चित हैं।
कभी लखनपुर एक गांव हुआ करता था जहां जमींदारों का शासन चलता था, कालांतर में यह नगर का रुप ले लिया है। न प्राचीन जमीदारी व्यवस्था रही, न जमीदारों का शासन, परन्तु आज भी वीराने में नागा बाबा का मठ विद्यमान है, जो उस घटना की स्मरण कराता है, जिससे उन्होंने अपने प्राण दिए।
नागा बाबा का यह चमत्कार माना जाता है कि जब कभी नगर क्षेत्र में वर्षा नहीं होती आम नगरवासियों, पालतू मवेशियों में कोई बीमारी या संकट की घड़ी आती है तब ग्राम बैगा या बाबा के भक्त उनकी पूजा अर्चना करते हुए बाबा को मनाते हैं उनकी कृपा से स्थिति सामान्य हो जाती है।
नागपंचमी, नवरात्रि, दीपावली इत्यादि विशेष पर्वों पर लोग माथा टेकने बाबा के मठ में पहुंचते हैं तथा अपनी मनौती मानते हैं। एक साधु को लांछित करके उसे आत्महत्या जैसे कृत्य के लिए विवश करने के कारण उनके द्वारा दिए गये शाप का भय लखनपुर के निवासियों वर्तमान में बना हुआ है।
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