हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। बताया जाता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण के मुख से गीता के उपदेश निकले थे। पूरे विश्व भर में मात्र श्रीमद भगवत गीता ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसकी …
Read More »कबीरपंथियों के आस्था का केन्द्र दामाखेड़ा
छत्तीसगढ़ में कबीरपंथियों की तीर्थ स्थली दामाखेड़ा, रायपुर बिलासपुर मार्ग पर सिमगा से 10 किमी दूरी पर एक छोटा सा ग्राम है। यह कबीरपंथियों की आस्था का सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता है। कबीर साहब के सत्य, ज्ञान तथा मानवतावादी सिद्धांतों पर आधारित दामाखेड़ा में कबीर मठ की स्थापना वर्ष …
Read More »हे मातृभूमे तुमको नमन
हे मातृभूमे! कर रहे, तव अर्चना तुमको नमन।प्रभु कर कमल की हो मनोहर सर्जना तुमको नमन।। अमरावती के देवगण,ले जन्म आते हैं जहाँ।रघुनाथ औ यदुनाथ भी,लीला रचाते हैं यहाँ। वो जीभ गल जाये करे जो भर्त्सना तुमको नमन।हे मातृभूमे! कर रहे तव अर्चना तुमको नमन।। सब ज्ञान औ विज्ञान की,उदगम …
Read More »दक्षिण कोसल के वैष्णव पंथ का प्रमुख नगर शिवरीनारायण
आदिकाल से छत्तीसगढ़ अंचल धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। यहाँ अनेक राजवंशों के साथ विविध आयामी संस्कृतियाँ पल्लवित एवं पुष्पित हुई। यह पावन भूमि रामायणकालीन घटनाओं से जुड़ी हुई है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध एवं शाक्त पंथों का समन्वय रहा है। वैष्णव पंथ …
Read More »बाबासाहेब के निर्वाणकाल की व्यथा : पुण्यतिथि विशेष
कबीर तहां न जाइए, जहाँ सिद्ध को गाँव, स्वामी कहे न बैठना, फिर फिर पूछे नांव। इष्ट मिले अरु मन मिले मिले सकल रस रीति, कहैं कबीर तहां जाइए, जंह संतान की प्रीति। बाबासाहेब अम्बेडकर के कांग्रेस से जुड़ाव को कबीर के इन दोहों के माध्यम से पुर्णतः प्रकट किया …
Read More »मुक्त मुल्क हो गद्दारों से
राजनीति के गलियारे में, निंदा की लगती झड़ियाँ।आतंकी पोषित हैं किनके, जुड़ी हुई किनसे कड़ियाँ।।बंद करो घड़ियाली आँसू, सत्ता का लालच छोड़ो।बिखर रही है व्यर्थं यहाँ पर, गुँथी एकता की लड़ियाँ।। वह जुनून अब रहा नहीं क्यों, देश प्रेम का भाव नहीं।पनप रही कट्टरता केवल, लिए साथ अलगाव वहीं।।स्वर्ग धरा …
Read More »हाथी किला एवं रतनपुर के प्राचीन स्थल
बिलासपुर-कोरबा मुख्यमार्ग पर 25 किमी की दूरी पर प्राचीन नगर रतनपुर स्थित है। पौराणिक ग्रंथ महाभारत, जैमिनी पुराण आदि में इसे राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। त्रिपुरी के कलचुरियों ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक शासन किया। इसे चतुर्युगी नगरी भी कहा जाता है, जिसका तात्पर्य है …
Read More »दक्षिण कोसल के प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्र
प्रागैतिहासिक काल के मानव संस्कृति का अध्ययन एक रोचक विषय है। छत्तीसगढ़ अंचल में प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्रों की विस्तृत श्रृंखला ज्ञात है। पुरातत्व की एक विधा चित्रित शैलाश्रयों का अध्ययन है। चित्रित शैलाश्रयों के चित्रों के अध्ययन से विगत युग की मानव संस्कृति, उस काल के पर्यावरण एवं प्रकृति …
Read More »चरैवेति है मंत्र हमारा
जो बढ़ते जाते हैं प्रतिदिन, वे चरण हमारे हैं। श्रम से हमने इस जगती के भाग सँवारे हैं।। चरैवेति है मंत्र हमारा, यही है सुख का धाम।सतकर्मों का लक्ष्य हमारा, रखे हमें अविराम। मत समझो तुम राख हमें, जलते अंगारे हैं। जो प्रतिदिन बढ़ते जाते,वे चरण हमारे हैं।श्रम से हमने …
Read More »आस्था और विश्वास का केन्द्र : नर्मदा
सदियों से भारत अनेक संस्कृतियों का सगम स्थल रहा है। विभिन्न संस्कृतियाँ यहां आईं, पुष्पित, पल्लवित हुई और भारतीय संस्कृतियों का संगम स्थल रही। धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से प्रसिध्द हुई और अपने साथ आज भी किसी न किसी कहानी को लिए हुए उस युग का गौरवगान कर रही है। …
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