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लोक देवता करमपाठ

आदिकाल से ग्रामदेव डीह-डिहारिन आदि दैवीय शक्तियों की विशेष कृपा दृष्टि, अनुकम्पा जन सामान्य पर बनी रहती थी और आज़ भी बनी रहती है। एक खास अवसर पर इन देवी-देवताओं की पूजा आराधना श्रृद्धालु ग्रामवासियों द्वारा की जाती है। ऐसा ही एक देवस्थान लखनपुर- मुख्यालय से महज तीन किमी की दूरी पर स्थित है जहां लोग अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए वर्ष भर आते रहते हैं। मानता पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाने लोग पहुंचते है।

इस देव के अनेकों चमत्कारों के किस्से कहानी कहे सुने जाते हैं। गिरिशीर्ष पर विद्यमान ग्राम पंचायत बंधा के करमपाठ ग्राम देव अद्भुत है। बताते है कि यदि किसी व्यक्ति की कोई चीज गुम गई है तो इनके दरबार में अनुनय विनय करने से वह खोई हुई वस्तु पुनःउस व्यक्ति को प्राप्त हो जाती है। इसके अलावा और भी कोई अभिलाषा हो वह सब पूरी होती है।

लखनपुर सहित दूसरे क्षेत्रों के लोग भी अपनी अनको समस्याएं लेकर करमपाठ देवधाम में आते और माथा टेकते है। करमपाठ देव दीन दुखियों, सबकी मनोकामना पूरी करते हैं। इनकी सच्चाई, शक्तियों के बारे में कोई लिखित प्रमाण साक्ष्य तो नहीं मिलता अपितु जन सामान्य की श्रद्धा से प्रतीत होता है कि इस स्थान पर शक्ति विराजमान है।

करमदेव का स्थान ऊंची पहाड़ी पर विद्यमान है। दुर्गम पहाड़ी पर इनका स्थान होने कारण पूर्व में श्रृद्धालुओं को पूजा अर्चना करने में बड़ी कठिनाई होती थी। बेडौल राहों से गुजर कर इनके दरबार तक पहुंचना पड़ता था जिसका अहसास जंगल के अवशेषों को देखकर होता है। लोक देवी-देवताओं के स्थान ऐसे ही दुर्गम स्थानों पर होते हैं।

करम पाठ देव नाम क्यों पड़ा होगा इसके बारे में जनश्रुति है कि जंगल में करमी पेड़ों की बाहुलता रहीं है, करमी पेड़ देव स्वरूप पुजनीय होते हैं। यही कारण रहा होगा कि इनका नाम करमपाठ पड़ा होगा। इनके ईर्द-गिर्द  आज भी करमी पेड़ विद्यमान है।

सरगुजा जिले में पेड़ों, पर्वतों, जल सरोवरों जैसे स्थान को दैवीय शक्ति के रूप में मानते हैं। मिशाल के तौर पर देखा जाये तो पेड़ों के समुह झुंड को सरना देव के रूप में लोग पूजते हैं। सम्भवतः जंगल के इस हिस्से में करमी पेडो की झुरमुट होने कारण इस स्थान को करमदेव की संज्ञा दी गई होगी।

करमपाठ नामक देव का पूंजा अर्चना किसने सर्वप्रथम की, देव के बारे में किसने जाना, कोई लिखित ऐतिहासिक प्रमाण तों नहीं मिलता अपितु ग्राम बैगा सियम्बर राम के बुजुर्ग दूधनाथ सिंह गोंड तथा सुमरू दास के अनुसार उस जमाने के लोगो को इस बात की अनुभूति हुई कि इस जगह पर कुछ भी कहने सुनने मांगने से मन की अभिलाषा पूरी होती है। तब से लेकर पहाड़ के गोद में इस जगह को करमपाठ देव स्थल के नाम से जानने लगे। 

जनश्रुतियों से पता चलता है कि प्राचीन लखनपुर- रियासत काल में इस करमपाठ देव की आराधना कर जमींदार ने जंगली हाथी को पकड़ने की मानता मानी, करमपाठ देव के कृपा से जंगली हाथी देव स्थल पर पहुंच गया परन्तु एक पेड़ के ठूंठ से उसका सिर टकराने के कारण मौत हो गई, जमींदार ने उस जंगली हाथी के शरीर को वहीं दफन करा दिया जो आज भी मौजूद हैं।

जमींदार मान गए कि वास्तव में करमदेव सबकी मनोकामना पूरी करते हैं। यह बात विख्यात हो गई कि पहाड़ी पर सभी की मानता पूरी होती है। श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ती गई, करमपाठ देव को लोग दिल की गहराई से मानने लगे। परम्परा आज भी जारी है। यह देवस्थान इस बात का गवाह है कि अतीत  में दूर दराज के गांवों के लोग अभावग्रस्त रास्तों से गुजरकर करम देव के स्थान पर पूजा अर्चना करने आते रहे होंगे।

धीरे-धीरे करम पाठ देव का पूजनीय स्थल क्षेत्र में विख्यात हो गया। भौगोलिक दृष्टि से पहाड़ों की वादियों में बसे देव स्थल इस बात का सबूत हैं कि किसी जमाने में आसपास में घना वन रहा होगा। कालांतर में पहाड़ी को काटकर सड़क बना दी गई है। जिससे भक्तजन सुगमता से इनके दरबार तक पहुंचते हैं।

मुन्ना पाण्डे, वरिष्ठ पत्रकार लखनपुर, सरगुजा

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