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लोक संस्कृति

महर महर करे भोजली के राउर : भोजली तिहार

श्रावण मास में जब प्रकृति अपने हरे परिधान में चारों ओर हरियाली बिखेरने लगती है तब कृषक अपने खेतों में बीज बोने के पश्चात् गांव के चौपाल में आल्हा के गीत गाने में मग्न हो जाते हैं। इस समय अनेक लोकपर्वो का आगमन होता है और लोग उसे खुशी खुशी …

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शिव का अघोरी रूप एवं महिमा

श्रावण मास में शिवार्चना पर विशेष आलेख त्रिदेवों में एक शिव का रूप और महिमा दोनों ही अनुपमेय है। वेदों में शिव को रुद्र के नाम से सम्बोधित क्रिया गया तथा इनकी स्तुति में कई ऋचाएं लिखी गई हैं। सामवेद और यजुर्वेद में शिव-स्तुतियां उपलब्ध हैं। उपनिषदों में भी विशेषकर …

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नाग पंचमी का व्यापक अर्थ एवं मीमांसा

श्रावण मास के श्रुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भारत में नाग पंचमी मनाने की परम्परा है। हमारी सनातन परम्परा में नागों को देवता माना गया है, इसलिए इनकी पूजा के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है। नाग पंचमी का संबंध सिर्फ एक सर्प विशेष से नहीं है प्रत्युत …

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खुशहाली एवं समृद्धि का प्रतीक हरेली एवं हरेला त्यौहार

भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ – साथ उत्सव प्रधान भी है। यहाँ अधिकतर त्यौहार कृषि कार्य पर आधारित हैं, प्रत्येक त्यौहार किसी न किसी तरह कृषि कार्य से जुड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ में जब धान की बुआई सम्पन्न हो जाती है तब सावन माह की अमावश को कृषि …

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उत्सवप्रिय छत्तीसगढ़ का हरेली तिहार

सावन का महीना अपनी हरितिमा और पावनता के कारण सबका मन मोह लेता है। सर्वत्र व्याप्त हरियाली और शिवमय वातावरण अत्यंत अलौकिक एवं दिव्य प्रतीत होता है। लोकजीवन भी इससे अछूता नहीं रहता। छत्तीसगढ़ में चौमासा श्रमशील किसानों के लिए अत्यंत व्यस्तता का समय होता है। खेती किसानी का कार्य …

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जनकपुरी से जुड़ा है हरेली का तिहार

सावन माह की अमावस्या को छत्तीसगढ़ में हरेली पर्व मनाया जाता है। इस पर्व के साथ जुड़ी हुई अनेक मान्यताएं लोक में प्रचलित हैं। एक मान्यतानुसार यह कृषि पर्व राजा जनक द्वारा हल चलाने के फलस्वरुप माँ सीता के प्रकट होने से जुड़ा हुआ है। ऋषि-मुनियों के रक्त से भरा …

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रमणीय बुजबुजी एवं नथेला दाई

प्रकृति बड़ी उदार है। प्रकृति के सारे उपादान लोक हित के लिए हैं। नदी जल देती है। सूरज और चांँद प्रकाश देते हैं। पेड़ फूल, फल और जीवन वायु देते हैं। प्रकृति का कण-ंउचयकण लोक हितकारी है। इसलिए प्रकृति और पर्यावरण को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। परन्तु अपने कर्तव्यों …

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वर्षा ॠतु में छत्तीसगढ़ी लोक जीवन की उमंग

छत्तीसगढ़ का अधिकांश भूभाग मैदानी है इसलिए यहाँ के जनजीवन में वर्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि यहाँ का लोक जीवन कृषि पर आधारित है। यही कारण है कि वर्षा ऋतु का जितनी बेसब्री से छत्तीसगढ़ में इंतज़ार होता है अन्यत्र कहीं नहीं होता? वर्षा की पहली फुहार से मिट्टी …

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प्रदक्षिणा की संस्कृति : राजिम की पंचकोशी यात्रा

जीवन के लिए गति आवश्यक है। गति से ऊर्जा मिलती है। केवल मनुष्य ही नही, अपितु प्रकृति के लिए यह आवश्यक है। ग्रह-उपग्रह, नक्षत्र सब गतिमान हैं। इनकी यह गतिमानता जीव-जन्तुओं व प्रकृति के अन्य उपादानों में ऊर्जा भरती है। समूची सृष्टि गति के अधीन है। गति भी कैसी? रैखिक …

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छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के पर्याय खुमानलाल साव

बंगाल ने रवींद्र-संगीत को मान्यता प्रदान कर उसे अपनी पहचान बना ली। रवींद्र-संगीत को स्थापित कर दिया। इसी तरह से असम ने भूपेन हजारिका को अपनी पहचान बना लिया किन्तु छत्तीसगढ़ ने खुमान-संगीत को अपनी पहचान बनाने के लिए मान्यता प्रदान नहीं की है और स्थापित भी नहीं किया है। …

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