प्रकृति बड़ी उदार है। प्रकृति के सारे उपादान लोक हित के लिए हैं। नदी जल देती है। सूरज और चांँद प्रकाश देते हैं। पेड़ फूल, फल और जीवन वायु देते हैं। प्रकृति का कण-ंउचयकण लोक हितकारी है। इसलिए प्रकृति और पर्यावरण को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। परन्तु अपने कर्तव्यों का निर्वहन हम कितना कर पा रहे हैं ? यह विचारणीय विषय है।
शहर के लोग सुविधा भोगी हैं। अपनी सुविधा और विलासिता के लिए बड़ी निर्ममता पूर्वक प्रकृति को नुकसान पहुँचाते हैं। इसके विपरित प्रकृति के नजदीक रहने वाले गाँव के लोग हर प्रकार से प्रकृति की रक्षा कर, उसका सम्मान करते हैं। प्रकृति की रक्षा और उसके सम्मान का प्रतीक स्थल है ‘‘बुजबुजी।’’
बलिदानियों की नगरी और संस्कारधानी छुईखदान से पश्चिम दिशा में लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित है बुजबुजी। छुईखदान से निकल कर हम जैसे ही बीरूटोला गाँव पहुँचते हैं, प्रकृति का मनोरम दृश्य दिखाई देने लगता है। इस क्षेत्र को प्रकृति ने बड़ी उदारता के साथ सजाया-ंसँवारा है।
हरी भरी ऊँची पहाड़ियाँ। पहाड़ियों की गोद में लहराते ऊँचे-ंऊँचे पेड़ प्रकृति का वरदान हैं। ये पेड़ पौधे ही तो हमारे प्राण हैं। ये नहीं होगें तो हमारा जीवन कहाँ होगा? शीतल हवाओं के साथ आती जंगली फूलों की मन मोहक गंध पाकर हृदय भाव विभोर हो जाता है।
सड़क के दोनों किनारे खडे़ पेड़ हवाओं के साथ लहराकर जैसे हमारा स्वागत करते हैं। कुछ ही समय पश्चात हम पहुँच जाते हैं ‘‘छिंदारी बाँध।’’ छिंदारी बाँध की अपार जल राशि देखकर मन में खुशियों की हिलोरे उठने लगती हैं और मुँह से अनायास निकल पड़ता है-ं‘‘वाह…वाह।’’
छिंदारी और नथेला दो विशाल बांँध हैं। जिन्हें रानी रश्मि देवी सिंह जलाशय के नाम से जाना जाता है। दोनों एक साथ जुड़े हुए हैं। दोनों बाँधो की जल राशि मिलकर अप्रतिम सौंदर्य उपस्थित करती है। पश्चिम दिशा में दूर-ंबहुत -ंदूर दिखाई पड़ने वाले पेड़-ंउचयपौधे, जंगल और और पहाड़ कश्मीर का दृश्य उपस्थित करते हैं। इसी बाँध के जल से छुईखदान और खैराग-सजय़ क्षेत्र के खेतों की सिंचाई होती है।
छिंदारी बाँध एक खूबसूरत पर्याटन स्थल है। दूर-ंदूर से लोग यहाँ पिकनिक मनाने आते हैं। यहाँ खूबसूरत गार्डन और बच्चों के लिए मंनोरंजन के झूले इत्यादि की व्यवस्था है। एक विश्राम गृह भी है जो सिंचाई विभाग का है।
यहीं पर ‘नथेला दाई’ का मंदिर है। श्रद्धालु यहाँ मॉ का दर्शन कर प्रसन्न होते हैं। इसी छिंदारी बाँध से थेड़ी दूर पर है बुजबुजी। बुजबुजी तक पहुँचने के लिए हमें टोपा मंड़वा भाँठा गाँव के पहले दाहिनी ओर मुड़ना होगा। बुजबुजी एक प्राकृतिक जल स्त्रोत है। जहाँ से निरन्तर गर्म जल की धारा निकल रही है।
इस स्थान से बुज-ंबुज, बुज-ंबुज, मंद ध्वनि व बुलबुलो के साथ पानी की धारा निकलने के कारण इसका नाम बुजबुजी पड़ा। बुज-ंबुज शब्द की ध्वन्यात्मकता ही बुजबुजी है। बुजबुजी से निकलने वाली जल धारा बड़ी निर्मल है। कहा जाता है कि इसके जल से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को मेला भरता है। जिसमें आस पास के लोग आकर अपनी भक्ति और आस्था को प्रकट करते है। यहाँ पर एक पक्के कुंड निर्माण किया गया है, जो आकर्षक है। कुंड के भीतर तैरने वाली छोटी-ंछोटी मछलियाँ मन को हर लेती है। एक छोटा मंदिर है, जिसमें मकर वाहिनी माँ गंगा की संगमरमर की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर जल सहयोग द्वारा निर्मित है।
विभिन्न अवसरों पर यहाँ भागवत कथा, प्रवचन व अन्य धार्मिक कार्य सम्पन्न होते है। कुंड से निकलने वाली जल धारा नाले के रूप में परिवर्तित होकर नदी में मिल जाती है। प्रमुख कुंड के नीचे एक अन्य कुंड भी है। जिसके आगे चितावर व बनराकस कोंचई (घुंइया) के काफी पौधे हैं, जो औषधि के काम आते हैं।
बुजबुजी की चारों ओर भरे घने वृक्ष और जंगल हैं। पश्चिम दिशा में किसानों के खेत और फिर गाँव है टोपा मड़वा भाठा। मैने जिज्ञासा वश एक ग्रामीण से पूछा-ं गाँव का नाम मड़वा भाठा है, इसके साथ टोपा शब्द क्यों जुड़ा हुआ है ? उसने मुस्कुरा कर इस संबंध में अनभिज्ञता प्रकट की। मुझे लगता है कि टोपा शब्द जुड़ने का कोई न कोई विशेष कारण होगा।
बुजबुजी शांति स्थली है। यहाँ आने से मन को शांति मिलती है। छुईखदान शहर के लोग अक्सर यहाँ आकर मन की शांति प्राप्त करते हैं। बुजबुजी कुंड व मंदिर में एक वृद्ध सेवा दार हैं। नाम है भवत राम सिरदार जो अपनी उम्र लगभग अस्सी वर्ष बताते है। कुंड व मंदिर की देखभाल करते हैं। आने वाले यात्रियों का मार्ग दर्शन करते हैं। मंदिर के एक किनारे बैठे रहते हैं। काफी वर्षो से वे मंदिर की सेवा में संलग्न हैं।
कुंड के समीप ही एक समाधि सथल है, जो काफी पुराना है। मैंने भवत राम जी से पूछा -ं कि ‘‘यह क्या है ?’’ तब उन्होंने बताया कि यह ठाकुर टोला वाले राजा का मठ है। मैंने फिर पूछा -ंकौन से राजा का ? तब उन्होंने कहा -ंनाम नहीं मालूम। बनावट की दृष्टि से उक्त समाधि लगभग डेढ़ सौ साल पुराना होगा।
यह भी उल्लेखनीय कि बुजबुजी पहले ठाकुरटोला जमीदार के हक का था। छुईखदान सियासत की सीमा छिंदारी से शुरू होती थी। ऐसा भवत राम जी ने बताया। बुजबुजी छोटी जगह होने के बावजूद एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है।
यहाँ प्रकृति की सुंदरता बिखरी हुई है। चिड़ियों की चहचाहट और हवाओं की सरसराहट तन-ंमन को संतृप्त करती है। बैताल रानी घाट आते-ंजाते बुजबुजी का दर्शन लाभ लिया जा सकता है। बैताल रानी घाट की लोकप्रियता बढ़ने से इस क्षेत्र में पर्यटन के लिए नई संभावनाओं के द्वार खुलेगें।
छिंदारी बाँध के साथ-ंसाथ बुढ़ान भाट, देवरचा व लावातरा जैसे वनग्रामों की शोभा का आनंद लिया जा सकता है। लावातारा से कुछ ही दूरी पर मंडीप खोल गुफा स्थित है। जो वर्ष में एक बार ही खुलता है। यहाँ प्रकृति के नैसर्गिक साैंदर्य से आँखे तृप्त होती है और वन की असीम शांति से मन शांत औ संतृप्त होता है। प्रकृति की सुंदरता और आत्मिक शांति की प्राप्ति का मनोरम स्थल है बुजबुजी।
आलेख
बहुत ही सुंदर जगह