Home / संस्कृति / लोक संस्कृति (page 10)

लोक संस्कृति

अक्षय तृतीया का सामाजिक महत्व एवं व्यापकता

अक्षय अर्थात जिसका कभी क्षय या नाश ना हो। हिन्दू पंचाग के अनुसार बारह मासों की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि शुभ मानी जाती है, परंतु वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि स्वयं सिद्ध मुहूर्त में होने के कारण हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्व है। ऋतु परिवर्तन काल …

Read More »

जहाँ प्रतिदिन भालू उपस्थिति देते हैं : मुंगई माता

हमारे गाँव के बड़े बुजुर्गों ने जब से होश संभाला तब उन्होंने देखा कि उनके पूर्वज ग्राम की पहाड़ी पर पूजन सामग्री लेकर आदि शक्ति मां जगदम्बा भवानी की नित्य पूजा अर्चना करते रहते हैं और अपने ग्राम्य जीवन की सुख-शांति, खुशहाली की कामना करते हैं। आज भी इसी रीति …

Read More »

पंडो जनजाति का लाटा त्यौहार

सरगुजा अंचल में निवासरत पंडो जनजाति का लाटा त्यौहार चैत्र माह में मनाया जाता है। लोक त्यौहारों में लाटा त्योहार मनाने प्रथा प्राचीन से रही है। पंडो वनवासी समुदाय के लोग इस त्यौहार को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। दरअसल यह त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रि के समय …

Read More »

लोकदेवी पतई माता

भारत में प्रकृति रुपी देवी देवताओं पूजा सनातन काल होती आ रही है क्योंकि प्रकृति के साथ ही जीवन की कल्पना की जा सकती है, प्रकृति से विमुख होकर नहीं। भारत देश का राज्य प्राचीन दक्षिण कोसल वर्तमान छत्तीसगढ़ और भी अधिक प्रकृति के सानिध्य में बसा है। प्राचीन ग्रंथों …

Read More »

नवागाँव वाली छछान माता

छछान माता नवागांव वाली भी आदि शक्ति मां भवानी जगतजननी जगदम्बा का रूप और नाम है। छछान माता छत्तीसगढ़ प्रान्त के जिला महासमुंद मुख्यालय से तुमगांव स्थित बम्बई कलकत्ता राष्ट्रीय राजमार्ग पर महासमुंद से लगभग 22 किलोमीटर दूरी पर सीधे हाथ की ओर लगभग 300 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित …

Read More »

नाट्यशास्त्र एवं लोकनाट्य रामलीला

रंगमंच दिवस विशेष आलेख भारत में नाटकों का प्रचार, अभिनय कला और रंग मंच का वैदिक काल से ही निर्माण हो चुका था। भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से प्रमाण मिलता है। संस्कृत रंगमंच अपनी चरम सीमा में था। नाटक दृश्य एवं श्रव्य काव्य का रूप है जो दर्शकों को आनंदानुभूति कराती …

Read More »

छत्तीसगढ़ की खड़िया जनजाति की जीवन शैली

खड़िया जाति भारत मे सर्वाधिक उड़ीसा, झारखंड के बाद छत्तीसगढ़ में पाई जाती है। जनगणना के अनुसार छतीसगढ़ में खड़िया 49032 है, जिसमें रायगढ़, फरसाबहार, जशपुर के बाद महासमुन्द जिले में इनकी आबादी अधिक है। बागबाहरा के जंगल क्षेत्र व बसना विकास खण्ड में भी इनकी बसाहट है। खड़िया जाति …

Read More »

सरगुजा के लोकनृत्य का प्रमुख पात्र “खिसरा”

रंगमंच या नाट्योत्सव भारत की प्राचीन परम्परा है, इसके साथ ही अन्य सभ्यताओं में भी नाटको एवं प्रहसनों का उल्लेख मिलता है। इनका आयोजन मनोरंजनार्थ होता था, नाटकों प्रहसनों के साथ नृत्य का प्रदर्शन हर्ष उल्लास, खुशी को व्यक्त करने के लिए उत्सव रुप में किया जाता था और अद्यतन …

Read More »

पारधी जनजाति की शिल्पकला आधारित जीवन शैली

पारधी जनजाति मूल रूप से एक खानाबदोश शिकारी, खाद्य संग्राहक घुमंतू जनजाति है। इनका मुख्य कार्य शिकार करना है। जीविकोपार्जन के लिए पारधी जनजाति के लोग शिकार करते हैं। वर्तमान में शिकार पर प्रतिबंध होने के बाद भी ये तीतर, बटेर, घाघर, खरगोश, सियार, लोमड़ी आदि का चोरी छुपे शिकार …

Read More »

लोक कल्याण हेतु दान का पर्व : छेरछेरा

छतीसगढ़ के त्योहारों में परम्परा का गजब समन्वय है, देश भर में होली दिवाली सहित अनेक पर्व तो मनाते ही है किंतु माता पहुंचनी, पोरा, तीजा, इतवारी, नवाखाई, बढोना, छेवर और छेरछेरा ऐसे लोक स्थापित पर्व हैं जिसे लोक अपने स्तर और तरीके से नियत तिथि को मनाता है। छेरछेरा …

Read More »