भारत में प्रकृति रुपी देवी देवताओं पूजा सनातन काल होती आ रही है क्योंकि प्रकृति के साथ ही जीवन की कल्पना की जा सकती है, प्रकृति से विमुख होकर नहीं। भारत देश का राज्य प्राचीन दक्षिण कोसल वर्तमान छत्तीसगढ़ और भी अधिक प्रकृति के सानिध्य में बसा है। प्राचीन ग्रंथों में भी छत्तीसगढ़ के साल वनों की चर्चा है। छत्तीसगढ़ में प्रकृति पूजा के साथ साथ प्रकृति के सानिध्य में ही देवी उपासना भी विभिन्न नामों और रूपों में की जाती है।
आदि शक्ति मां जगदम्बा के स्वरूप में ही एक माता हैं पतई माता, ग्राम पहाड़ी पर विराजमान पतई माता। पतई माता का नामकरण के सम्बंध में ग्राम्य बुजुर्ग जन से पूछने पर कोई ठोस आधार पता न चला सभी का यही कहना है कि माता जी का यह नाम उन्हें अपने पूर्वजों से प्राप्त हुआ। पर मेरे चिंतन मनन उपरांत माता जी के नामकरण को लेकर यह संभावना मन में उत्पन्न होती है कि शायद यह नाम भी प्रकृति से ही प्राप्त हुआ होगा। छत्तीसगढ़ में एक शब्द है डारा-पाना डारा अर्थात वृक्ष की छोटी डंगाली जिसमें पत्ते भी लगे हो और पाना अर्थात पत्ता।
इसलिए विवाह में मण्डपाछादन करने के लिए छत्तीसगढ़ में मड़वा के लिए डारा काटा जाता है। तेंदू पत्ता घना हो इस कारण डारा छोपे जाता है। डारा छोपना अर्थात छोटे छोटे तेंदू के पौधे को फावड़े से जमीन तक काटना। शब्द डारा पाना की तरह ही एक और शब्द है पाना-पतई पाना अर्थात पत्ता और पतई भी पत्ते का ही पर्याय है जो संयोजन के लिए पाना शब्द के साथ अधिकतर प्रयुक्त होता है। पहाड़ी पेड़ पत्तों के मध्य विराजमान होने के कारण ही शायद माता जी का नाम पतई माता पड़ा होगा।
पहाड़ी के नीचे 20 से 25 घरों का छोटा सा गांव बसा हुआ है। जिसका नाम पतई माता ग्राम है। गांव का नामकरण माता जी के नाम के आधार पर ही किया गया। पतई माता ग्राम की पहाड़ी पर विराजमान हैं। जहाँ दर्शन हेतु चढ़ने के लिए 150 सामान्य सीढियां हैं। पतई माता का मंदिर भारत देश के छत्तीसगढ़ प्रान्त के महासमुंद के जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर मुंबई कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग पर थाना पटेवा ग्राम जो राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही स्थित है, से दक्षिण में 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। माता जी के मंदिर तक दर्शन करने पहुँचने के लिए निजी वाहन से ही पहुंचा जा सकता है। सार्वजनिक बस से मात्र पटेवा तक ही पहुंचा जा सकता है।
ग्रामीण अंचल के अन्य माता मंदिर की तरह ही पतई माता का मंदिर भी कोलाहल से दूर एकांत प्रकृति की गोद में सुरम्य रमणीय पहाड़ी पर घने जंगलों के मध्य स्थित है। मन्दिर जाने के मार्ग पर ही माताजी का नाम लिखा हुआ भव्य स्वागत द्वार है।मन्दिर में सीढ़ी चढ़ना प्रारंभ करने के पूर्व भी स्वागत द्वार है।पहाड़ी के नीचे ही ज्योति कक्ष एवं मन्दिर कार्यालय हैं। पूजा सामग्री के दुकान हैं। श्री सत्यनारायण जी का मंदिर है। श्री पटेश्वर महादेव जी का मन्दिर है। ऊपर में नाग गुफा है। श्री सिद्ध बाबा का मंदिर है। माता पतई जी का मन्दिर, माता जी मंदिर के बगल में दिवाल पर माता खल्लारी, कालीमाता, संतोषी माता की प्रतिमा बनाई गई है जिनकी पूजा अर्चना की जाती है।
इन मंदिरों के अतिरिक्त श्री हनुमानजी का मंदिर, श्री भैरव जी का मंदिर, श्री मुंगई माता का मंदिर और भी अन्य देवी देवताओं के मंदिर बने हुए हैं। पतई माता का मंदिर गुफा के द्वार पर ही बनाया गया है। माता जी की प्रतिमा को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो माता जी गुफा द्वार पर रखवाली कर रहीं हो,या अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए गुफा से बाहर द्वार पर आईं हैं।
माता पतई जी की पूजा अर्चना सैकड़ों वर्ष पूर्व से हो रही है वर्तमान में भी सुबह शाम नियमित पूजा अर्चना होती है। क्वांर नवरात्रि में जग जंवारा के साथ साथ मनोकामना पूर्ति ज्योति कलश स्थापना की जाती है। चैत्र नवरात्रि पर्व पर केवल मनोकामना पूर्ति ज्योति ही प्रज्ज्वलित की जाती है। वर्तमान चैत नवरात्रि में 271 ज्योति प्रज्ज्वलित किया गया है। जहाँ दिन भर एवं देर रात तक भक्तों के द्वारा माता जी का यशगान किया जाता है।
पतई माता ग्राम के 65 वर्षीय श्री बहुर सिंग ध्रुव एवं 38 वर्षीय मंदिर पुजारी श्री दिलेश्वर वैष्णव बताते हैं कि पतई माता मंदिर में कार्यक्रमों का संचालन आसपास के क्षेत्र के कई ग्रामों के कार्यकर्ताओं के द्वारा किया जाता है। जिनमें प्रमुख रूप से वर्तमान अध्यक्ष श्री लक्ष्मण पटेल तेंदवाही, सचिव श्री नरेश जी तथा उपाध्यक्ष श्री जानुराम ध्रुव पतई माता ग्राम निवासी, बोर्रा ग्राम से श्री खोलबहरा और चिरको निवासी, रोशन पटेल संचालन समिति के सहयोगी हैं। पुजारी जी बताते हैं कि पूर्व में माता जी की पूजा अर्चना श्री तुकाराम वैष्णव जी करते थे, उनके बाद श्री कृष्ण दास वैष्णव जी रहे वर्तमान में श्री दिलेश्वर वैष्णव जी माता जी की पूजा अर्चना करते हैं और वर्तमान में मन्दिर के 2 पंडा हैं मुख्य पंडा श्री इतवारी ध्रुव65 वर्षीय हैं जो विगत 40 वर्ष से हैं और दूसरे50 वर्षीय श्री किशुन ध्रुव जो विगत22 वर्ष से पतई माता मंदिर के पंडा हैं।
छत्तीसगढ़ में पंडा और पुजारी अलग अलग होते हैं पुजारी नित्य कर्म पूजा पद्धति के अनुसार पूजा अर्चना करते हैं। जबकि पंडा तांत्रिक उपासना करते हैं। छत्तीसगढ़ लोक में ऐसा माना जाता है कि जब माता जी की नवरात्रि में पूजा अर्चना होती है ज्योति प्रज्ज्वलित होती है जंवारा बोया जाता है तब आसुरी शक्तियाँ यज्ञ में विघ्न डालने मायाबी आक्रमण करती हैं। तब ये पंडा ही तंत्र मंत्र साधना से यज्ञ की रक्षा करते हैं।
पुजारी जी पतई माता मंदिर से जुड़ी हुई एक सच्ची घटना बताते हैं कि ई. सन् 1986 के पूर्व ग्राम पटेवा के सहकारी बैंक के मैनेजर अपने परिवार को लेकर पतई माता पहाड़ी पर दर्शन कराने लेकर गए थे। मैनेजर साहब जैसे ही परिवार के साथ पहाड़ी पर माताजी के समक्ष पहुंचे तभी बड़ी मधुमक्खियों (भांवर) के समूह ने हमला कर दिया। हमला इतना अधिक था कि सभी जैसे तैसे प्राण बचाकर वहां से निकले और अस्पताल में भर्ती हुए इलाज उपरांत स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हुआ। तब माता जी ने उन्हें स्वप्न में आदेश दिया कि आप पहाड़ी पर मेरी प्रतिमा के ऊपर मंदिर का निर्माण कर पूजा अर्चना करो। मैनेजर साहब ने यह स्वप्न वृत्तांत ग्रामवासियों को बताया तब सभी के सलाह उपरांत 1986ई .में पतई माता जी के मंदिर का निर्माण हुआ तब से माता जी की पूजा में भव्यता आई और अधिकाधिक संख्या में मनोकामना पूर्ति ज्योति कलश स्थापना की जाने लगी। वर्तमान में माता जी के दर्शनार्थ बहुत दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं। पतई माता मंदिर में बहुत ही आत्मिक शांति प्राप्त होती है।वातावरण शान्त एकांत और रमणीय है जो भक्तों का मन मोहित कर लेता है।
श्री बहुर सिंग ध्रुव एवं पुजारी श्री दिलेश्वर वैष्णव एवं पतई माता मंदिर संचालन समिति के सदस्यों द्वारा प्राप्त जानकारी।
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