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बस्तर का तीजा व्रत एवं तीजा जगार

छत्तीसगढ़ अंचल के अन्य त्यौहारों में तीजा व्रत भी प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार भासो मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को प्रदेश के सरगुजा क्षेत्र से लेकर बस्तर तक मनाया जाता है। पोला तिहार से इस पर्व की तैयारी प्रारंभ हो जाती है। विवाहित बेटियाँ-बहने अपने भाई के आने …

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यहाँ लगता है देव न्यायालय एवं मिलता है देवी देवताओं को दंड

छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में एक ऐसा स्थान है जहाँ प्रतिवर्ष भादौ मास में देव न्यायलय लगता है, जहाँ  लोग अपने-अपने ग्राम के देवी-देवताओं को लेकर पहुंचते हैं। इस न्यायालय में देवी-देवता आरोपी होते हैं और फ़रियादी होते हैं ग्राम वासी। इस देव न्यायालय में देवी देवताओं की पेशी होती …

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संतान की दीर्घायु की कामना का पर्व हलषष्ठी

लोक में संतान की रक्षा के लिए, पति की रक्षा के लिए पर्व मनाने का प्रचलन है। परन्तु कमरछठ पर्व में माताओं द्वारा संतान की दीर्घायु के लिए व्रत (उपवास) किया जाता है। हमारे छत्तीसगढ़ राज्य की अनूठी संस्कृति का यह एक ऐसा पर्व है जिसे हर वर्ग, हर जाति …

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बावनमारी में लिंगो पेन (देव) का जन्म स्थल लिंग दरहा

         पर्वतीय उपत्यकाओं और सुरम्य वन प्रांतर में बसा सम्पूर्ण केशकाल क्षेत्र प्रकृति एवं पुरातत्व के अतुल वैभव से भरा पड़ा है । इस क्षेत्र में अनेक स्थानों पर प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष, पाषाणकालीन अवशेष, प्रतिमाओं एवं शैलचित्रों आदि की प्राप्ति हुई है, जो बाहरी दुनियाँ से अज्ञात है या …

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भारतीय आदिवासियों में शिक्षा का प्रसार एवं वर्तमान स्थिति

जनजातियां विश्व के लगभग सभी भागों में पायी जाती है, भारत में जनजातियों की संख्याअफ्रीका बाद दूसरे स्थान पर है। प्राचीन महाकाव्य साहित्य में भारत में निवासरत विभिन्न जनजातियों जैसे भारत, भील, कोल, किरात, किन्नरी, मत्स्य व निषाद आदि का वर्णन मिलता है। प्रत्येक जनजाति की अपनी स्वयं की प्रशासन …

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भारत से लेकर माया सभ्यता तक नाग

सर्प एवं मनुष्य का संबंध सृष्टि के प्रारंभ से ही रहा है। यह संबंध इतना प्रगाढ एवं प्राचीन है कि धरती को शेषनाग के फ़न पर टिका हुआ बताया गया है। इससे जाहिर होता है कि धरती पर मनुष्य से पहले नागों का उद्भव हुआ। वैसे भी नाग को काल …

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प्रकृति के प्रति प्रेम एवं कृतज्ञता व्यक्त करने का त्यौहार है हरेली

सावन का महीना प्रारंभ होते ही चारों तरफ़ हरियाली छा जाती है। नदी-नाले प्रवाहमान हो जाते हैं तो मेंढकों के टर्राने के लिए डबरा-खोचका भर जाते हैं। जहाँ तक नजर जाए वहाँ तक हरियाली रहती है। आँखों को सुकून मिलता है तो मन-तन भी हरिया जाता है। यही समय होता …

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प्राचीन शिल्प एवं काव्य में सोलह शृंगार

दक्षिण कोसल के प्राचीन मंदिरों में अलंकृत अप्सराओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं, विभिन्न कालखंड के इन शिल्पों से हमें तत्कालीन सौंदर्य प्रसाधनों की जानकारी मिलती है। आभूषणों के अलंकरण के साथ वस्त्रालंकरण एवं केशगुंथन की विभिन्नता दिखाई देती है। प्राचीन से अद्यतन सौंदर्य अभिवृद्धि के उपायों पर दृष्टिपात करते हैं। …

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आज़ाद था, आज़ाद हूँ, आज़ाद ही मरूंगा

‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।’ यह गीत बचपन से सुनते आए थे। इस गीत के माध्यम से यह बताया गया है कि स्वतंत्रता की प्राप्ति अहिंसा से हुई। जब स्वतंत्रता की प्राप्ति अंहिसा से हुई तो क्या क्रांतिकारी बेवजह जान …

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क्या आप जानते हैं तंत्र-मंत्र से गांव कब क्यों और कैसे बांधा जाता है?

सावन माह लगते ही सवनाही तिहार मनाने का समय आ गया। सावन के पहले रविवार से गाँव-गाँव में सवनाही मनाने का कार्य प्रारंभ हो चुका है। इस दौरान ग्रामवासी गाँव एवं खार (खेत) में स्थिति समस्त देवी-देवताओं की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने का यत्न करते हैं, जिससे गाँव में …

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