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जशपुर का परम्परागत दशहरा

भारत एवं छत्तीसगढ़ राज्य के कई रियासतकालीन दशहरा उत्सव प्रसिद्ध हैं, इन्ही में एक छत्तीसगढ़ के जशपुर का ऐतिहासिक एवं रियासतकालीन दशहरा महोत्सव भी आता है। अन्य क्षेत्रों की भांति शारदीय नवरात्रि के पहले ही दिन से यहां का ऐतिहासिक दशहरा उत्सव प्रारंभ होता है।

जशपुर राजपरिवार

यहाँ एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि रियासतकाल में जशपुर राज परिवार द्वारा श्री बालाजी भगवान को जशपुर राज का राजा के रुप में प्रतिष्ठापित कर उनके प्रतिनिधि के रुप में राजकाज संभालते रहे हैं। अत: आज भी जन महोत्सव के अवसर पर भगवान बालाजी को ही इस क्षेत्र का राज स्वामी मानते हुए उनके प्रतिनिधि के रुप में राजपरिवार के सदस्य उत्सव का प्रारंभ और समापन अपनी उपस्थिति में करते हैं।

जशपुर राजवंश की कुल देवी मां काली हैं। भगवान बालाजी एवं माँ काली का मंदिर रियासत के पुराने राजमहल के पास ही स्थित है। नवरात्रि की प्रथम तिथि से दशमी तक राजपरिवार के सदस्यों की उपस्थिति में विधि विधान से अनुष्ठान सम्पन्न किए जाते हैं। जशपुर दशहरा उत्सव की एक विशेषता यह है कि नवरात्रि के मध्य माता की पूजा आराधना वैदिक रीति से श्री बालाजी मंदिर और तांत्रिक विधि से माँ काली मंदिर में की जाती है।

जशपुर राजा रणविजय सिंह जुदेव

माँ काली की तांत्रिक विधि से पूजा करने के पश्चात उन्हें बकरे की बलि देने की प्रथा भी है। जहाँ भी शक्ति की उपासना होती हैं वहाँ परम्परागत रुप से शक्ति को बलि दी जाती है। पूर्व काल में भैंसा बलि दिया जाता था परन्तु वर्तमान में भैंसा के स्थान पर बकरे की बलि ही देवी को अर्पण की जाती है।

विजयादशमी के दिन बालाजी मंदिर से ही भगवान बालाजी की रथयात्रा निकाली जाती है। जिसकी अगुवाई वर्तमान राजा श्री रणविजय सिंह जुदेव करते हैं। जशपुर के वर्तमान राजा श्री रणविजय सिंह जुदेव नगर मे ही स्थित एक निश्चित स्थान पर राजपुरोहित के माध्यम से अपराजिता देवी की उपस्थिति में शस्त्र पूजा करते हैं, अपराजिता देवी की साक्षी में पूजा का अर्थ यह है कि उनका सतत आशीष राजा को प्राप्त होता रहे एवं वो अपराजित रहें। इस दौरान डोम जाति के लोग पारम्परिक वाद्ययत्रों के वादन के साथ नृत्य करते हैं।

जशपुर दशहरा

शस्त्र पूजा सम्पन्न करके के बाद राजा साहब सभी राजपरिवार के सदस्यों के साथ रावण दहन स्थल (रणजीता स्टेडियम) में आते हैं तथा यहाँ आकर दशहरा शुभंकर के प्रतीक नीलकंठ पक्षी को उड़ाते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि यह पक्षी उल्लास एवं समृद्धि का प्रतीक है, इसको उड़ाने के साथ राज्य की सुख समृद्धि की कामना की जाती है। नीलकंठ पक्षी की व्यवस्था पूर्व से ही ग्रामीणों द्वारा की गई रहती है।

भव्य आतिशबाजी के साथ रावण के पुतले का दहन किया जाता है। पुतला दहन के समय उपस्थित जन जय श्री राम का उद्घोष कर बुराई पर अच्छाई की विजय की खुशियाँ मनाते हैं। इस उत्सव में जशपुर जिले के दूर दराज के गांवों के जनजातीय बंधु उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं एवं परम्परागत रुप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं।

नीलकंठ पक्षी उड़ाते हुए राजा रणविजय सिंह जुदेव

इसके पश्चात बालाजी भगवान का रथ पुन: अपने स्थान पर लाया जाता है तथा बालाजी के विग्रह को राजपरिवार के लोग रथ से उतार कर उनके आसन पर पुन: प्रतिष्ठित कर देते हैं। इस तरह जशपुर का दशहरा उत्सव सम्पन्न होता है।

आलेख

डॉ विनय तिवारी
सहायक प्राध्यपक
शासकीय पीजी महाविद्यालय जशपुर, नगर (छग)

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