छत्तीसगढ़ की प्राचीनता और उसकी महत्ता के संदर्भ में अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। इसके बावजूद प्राचीन काल के संदर्भ में कोई उपयुक्त रुप से कालक्रमानुसार वृतांत नहीं मिला है जिससे क्रमबध्द प्रामाणिक इतिहास की पुनर्रचना की जा सके। इसके लिए एक अंश तक ही पौराणिक साहित्य पर निर्भर किया जाता …
Read More »प्राचीन भारत में नौका परिवहन एवं नौका शास्त्र
भारत की महान संस्कृति को छुद्र दिखाने के लिए विघ्न संतोषियों ने ऐसे झूठ फ़ैलाये जो कि सभ्य समाज के गले से नीचे नहीं उतरते। इनके झूठों को आगे बढ़ाने का कार्य इनके कुशिष्यों ने किया। जो कि कॉपी पेस्ट के रुप में अभी तक चल रहा है। इसमें एक …
Read More »कुल उद्धारिणी चित्रोत्पला गंगा महानदी
महानद्यामुपस्पृश्य तर्पयेत पितृदेवता:।अक्षयान प्राप्नुयाल्वोकान कुलं चेव समुध्दरेत्॥ (महाभारत, वनपर्व, तीर्थ यात्रा पर्व, अ-84)अर्थात महानदी में स्नान करके जो देवताओं और पितरों का तर्पण करता है, वह अक्षय लोकों को प्राप्त होता है, और अपने कुल का भी उध्दार करता है। महानदी का कोसल के लिए वही महत्व है जो भारत …
Read More »मानव इतिहास एवं प्राचीन सभ्यता जानने का प्रमुख साधन संग्रहालय
संग्रहालय मनुष्य को अतीत की सैर कराता है, जैसे आप टाईम मशीन में प्रवेश कर हजारों साल पुरानी विरासत एवं सभ्यता का अवलोकन कर आते हैं। मानव इतिहास एवं प्राचीन सभ्यता जानने का संग्रहालय प्रमुख साधन है। इसलिए संग्रहालयों का निर्माण किया जाता है, इतिहास को संरक्षित किया जाता है। …
Read More »भोंगापाल के बुद्ध एवं मोहनी माया
लोक मान्यताएं प्रधान होती हैं, लोक ने जिसे जिस रुप में मान लिया, पीढियों तक वही मान्यता चलते रहती है। जिस तरह राजिम के राजिम लोचन मंदिर के मंडप में स्थापित बुद्ध को राजा जगतपाल माना जाता है, तुरतुरिया में केशी वध एवं वृत्तासुर वध के शिल्पांकन को लव और …
Read More »प्राचीन मंदिरों के मूर्ति शिल्प में उत्कीर्ण आभूषण
स्त्री एवं पुरुष दोनों प्राचीन काल से ही सौंदर्य के प्रति सजग रहे हैं। स्त्री सौंदर्य अभिवृद्धि के लिए सोलह शृंगार की मान्यता संस्कृत साहित्य से लेकर वर्तमान तक चली आ रही है। कवियों ने अपनी कविताओं में नायिका के सोलह शृंगार का प्रमुखता से वर्णन किया है तो शिल्पकार …
Read More »प्राचीन नगर चम्पापुर एवं चम्पई माता
छत्तीसगढ़ नाम से ही ध्वनित होता है कि यह गढ़ों का प्रदेश है। छत्तीसगढ़ में बहुत सारे गढ़ हैं जो विभिन्न जमीदारों एवं शासकों के अधीन रहे हैं, जिनका प्रमाण हमें अभी तक मिलता है। इन गढ़ों में तत्कालीन शासकों द्वारा पूजित उनकी कुलदेवी की जानकारी भी मिलती है। ऐसा …
Read More »भरतपुर, जिला कोरिया की पुरासंपदा
छत्तीसगढ के उत्तर पश्चिम सीमांत भाग में स्थित कोरिया जिले का भरतपुर तहसील प्राकृतिक सौदंर्य, पुरातत्वीय धरोहर एवं जनजातीय/सांस्कृतिक विविधताओं से परिपूर्ण भू-भाग है। जन मानस में यह भू-भाग राम के वनगमन मार्ग तथा महाभारत कालीन दंतकथाओं से जुड़ा हुआ है। नवीन सर्वेक्षण से इस क्षेत्र से प्रागैतिहासिक काल के …
Read More »चैतुरगढ़ की महामाया माई
कलचुरी राजवंश की माता महिषासुरमर्दिनी चैतुरगढ़ में आज महामाया देवी के नाम से पूजनीय है। परंपरागत परिधान से मंदिर में माता अपने परंपरागत परिधान से सुसज्जित हैं, जो 12 भुजी हैं, जो सदैव वस्त्रों से ढके रहते हैं। पूर्वाभिमुख विराजी माता को सूरज की पहली किरण उनके चरण पखारने को …
Read More »शक्ति तीर्थ डोंगरगढ़ की बमलाई माता
राजनांदगांव से 36 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित डोंगरगढ नगरी धार्मिक विश्वास एवं श्रध्दा का प्रतीक है। डोंगरगढ की पहाड़ी पर स्थित शक्तिरुपा माँ बम्लेश्वरी देवी का विख्यात मंदिर सभी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहां मां बम्लेश्वरी देवी के दो विख्यात मंदिर है। डोंगरगढ की पहाड़ी पर 1600 …
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