माँ मड़वारानी का प्रसिद्ध मंदिर छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले से लगभग 29 कि.मी.की दूरी पर खरहरी गाँव मे पहाड़ी के ऊपर गहरी खाई के समीप कलमी पेड़ के नीचे स्थित है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर के निकट एक दूसरे कलमी पेड़ में मीठे पानी का स्रोत था जो …
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नित वाणी में तेज भरो माँ!
नित वाणी में तेज भरो माँ! एक नहीं, नौ माताओं की, मुझको अद्भुत शक्ति मिले ।नित वाणी में तेज भरो माँ, मुझको नव-अभिव्यक्ति मिले।। ‘शैलपुत्री’ औ ‘ब्रह्मचारिणी’, ‘चंद्रघटा’ का वंदन है।‘कुष्मुण्डा’, ‘स्कन्दमात’ औ ‘कात्यायनी’ शुभदर्शन है। ‘कालरात्रि’, ओ ‘महागौरी’ तू, ‘सिद्धिदात्री’ की भक्ति मिले।।एक नहीं नौ माताओं की, मुझको अद्भुत …
Read More »मोटियारी घाट की बंजारी माता : नवरात्रि विशेष
ग्राम्य जीवन जीने वाला लोक मानस बड़ा सीधा, सरल, सहज, भोला भाला, उदार और आस्थावान होता है। प्रकृति का हर उपदान उसके लिए देवता है। प्रकृति के कण–कण में देवत्व की अनुभूति करता है। इसलिए लोक समाज के इर्द–गिर्द देवी–देवताओं के स्थल बहुतायत रूप से मिलते है। यह भी देखा …
Read More »बहुआयामी प्रतिभा के धनी : डॉ बल्देव
06 अक्टूबर पुण्यतिथि विशेष आलेख बहुत से व्यक्ति किसी विधा-विशेष में दक्ष होते हैं, उन्हें हम उनकी विशेष विधा के कारण पहचानते हैं। कुछ व्यक्ति अनेक विधाओं में दक्ष होते हैं, उन्हें हम बहु-आयामी प्रतिभा के रूप में जानते हैं। बहुत से प्रतिभा-सम्पन्न व्यक्ति केवल अपनी प्रतिभा के प्रचार-प्रसार में …
Read More »कचना धुरवा की अमर प्रेम कहानी
बहुत पुरानी बात है जब बालाघाट लांजीगढ़ रियासत के राजा सिंहलसाय ध्रुव थे। राजा राजा की रानी गागिन अपूर्व सुंदरी थी। लांजीगढ़ पहाड़ी और दुर्गम जंगलों से घिरा था। यहां गेहूं ज्वार और बाजरा की खेती होती थी, भरपूर फसल होने के कारण लांजीगढ़ एक मजबूत रियासत मानी जाती थी। …
Read More »पत्थर और छेनियाँ
जो पत्थरों से जितना रहे दूरउतने रहे असभ्यउतने रहे क्रूर। जो पत्थरों से करते रहे प्यारचिनते रहे दीवारबन बैठे सरदार। फेंकते रहे पत्थर होते रहे दूर, नियति ने सपने भीकिये चूर चूर। पत्थरों को रगड़ पैदा की आग,उन्ही की बुझी भूख,उन्ही के जागे भाग। जिन्होंने फेंक पत्थरछीनना चाहा, हथियाना चाहा,वे …
Read More »भारत माता के बहादुर लाल : लाल बहादुर शास्त्री
बात वर्ष 1928 की है, एक 24 वर्षीय नवयुवक का विवाह होने जा रहा था। नवयुवक था अत्यंत आदर्शवादी। अपने तत्वों के अनुसार जीवन जीने वाला। समाज में समानता स्थापित हो इसलिए उसने अपना उपनाम का भी त्याग कर दिया था। काशी विद्यापीठ से स्नातक पदवी प्राप्त करने के पश्चात् …
Read More »जनजातियों के नृत्य, नाट्य और उत्सवों में मुखौटे
पहले पहल शायद आदि मानव ने अपने आप को प्रकृति के अनुकूल बनाने के लिए मुखौटों का उपयोग किया होगा, वह इसलिए कि शिकार करना आसान हो। और फिर मुखौटे आदिम जनजीवन की धार्मिक अवधारणाओं को भी अभिव्यक्ति देते रहे। जनजातियों के नृत्य, नाट्य और पारंपरिक उत्सवों में मुखौटों का …
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