माँ मड़वारानी का प्रसिद्ध मंदिर छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले से लगभग 29 कि.मी.की दूरी पर खरहरी गाँव मे पहाड़ी के ऊपर गहरी खाई के समीप कलमी पेड़ के नीचे स्थित है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर के निकट एक दूसरे कलमी पेड़ में मीठे पानी का स्रोत था जो हमेशा बहता था, एक दिन किसी का बर्तन खो जाने से जब पेड़ को काटकर देखा गया तो वहाँ बर्तन दिखाई नहीं दिया।
ऐसा भी कहा जाता है कि कलमी वृक्ष के कट जाने के बाद मां मड़वारानी अपने चार बहनों के साथ वहां आई और अपनी पूर्ण शक्ति के साथ वहां रखे पांच पत्थरों में समाहित हो गईं। इसी कारण अब वे पिंड रूप में पूजी जाती हैं। मंदिर चारों ओर घने फूलदार एवं फलदार वृक्षों से घिरा हुआ है । पहाड़ी पर बहुत सी ऐसी भी जड़ीबूटियां हैं जो आयुर्वेदिक दृष्टि से अत्यंत लाभदायक हैं। यहाँ असंख्य पक्षियों, पशुओं एवं जानवरों को हर मौसम में घूमते देखा जा सकता है।
इस मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना स्थानीय निवासियों के द्वारा ही की जाती है । पर्वत पर स्थित माँ मड़वारानी का मंदिर लोगों के बीच अटूट श्रद्धा एवं भक्ति का केन्द्र माना जाता है। इस क्षेत्र में यह मान्यता है कि जब भी कोई संकट यहां के लोगों एवं गांव पर आता है तो माता मड़वारानी उनकी रक्षा करती है। मां मड़वारानी के दरबार में भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। यही वजह है कि दूर दराज से लोग बड़ी संख्या में माँ का दर्शन करने यहाँ पहुंचते हैं एवं नवरात्रि पर्व के अवसर पर मंदिर के प्रांगण में दीप प्रज्जवलित करवाते हैं। नवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखते ही बनती है।
माँ मड़वारानी के अवतार से संबंधित बहुत सी किंवदंतिया़ प्रचलित हैं जिसके अनुसार –
● मंदिर के पुजारी के दादा- परदादा के सपने में मां मड़वारानी आई थी एवं उनसे कलमी पेड़ पर अपने होने की बात कही थी, तब से मां मड़वारानी की पूजा उस विशेष स्थल पर होने लगी।
● कुछ लोगों का कहना है कि मां मड़वारानी अपनी शादी के मंडप जिसे छत्तीसगढ़ी भाषा में मड़वा कहते हैं को छोड़कर यहाँ आ गई थी। इस दौरान बरपाली-मड़वारानी रोड में उनके शरीर में लगी हल्दी एक बड़े पत्थर पर लग गई जिसके चलते वह पत्थर पीला हो गया। मां मड़वारानी के मंडप से आने के कारण गांव और पहाड़ को मड़वारानी के नाम से जाना जाने लगा।
● एक अन्य मतानुसार मां मड़वारानी भगवान शिव से कनकी में मिलीं। माँ मड़वा रानी कनकी के शिव धाम से शिव जी का आशीर्वाद लेकर इस ग्राम में आ गई और यहां के लोगों की रक्षा करने लगी। मां मड़वारानी संस्कृत में “मांडवी देवी” के नाम से जानी जाती हैं।
● यह भी कहा जाता है कि कुछ गांव के कलमी पेड़ों की पत्तियों में हर वर्ष नवरात्रि के अवसर पर जवा अपने आप उग जाता है और एक सर्प उसके आस-पास घूमते हुए दिखाई पड़ता है।
● कुछ बुजुर्गों की माने तो माँ मड़वारानी मां बरपाली, सोहागपुर, भैसमा, मड़वारानी गाँवों के बाजारों में खरीदी के लिए जाती थीं। उनके अलौकिक रूप एवं दिव्य प्रकाश से प्रभावित होकर जब कुछ लोगों ने उनका पीछा तो मड़वारानी मां कलमी पेड़ में जाकर गायब हो गईं इसलिए पेड़ के नीचे माँ का मंदिर बनवाया गया।
माँ मड़वारानी के मंदिर तक कई रास्तों से पहुंचा जा सकता है । प्रायः लोग पहाड़ के नीचे स्थित माँ मड़वारानी के मंदिर से होते हुए दर्शनार्थ ऊपर मंदिर तक की पाँच किलोमीटर यात्रा आसानी से पूर्ण करते हैं।
दूसरा मार्ग बरपाली गाँव से होकर जाता है। सीढ़ियों वाले इस मार्ग की दूरी लगभग एक किलोमीटर है। झींका-महोरा गाँव से भी ऊपर मंदिर की दूरी एक किलोमीटर पड़ती है। गाँव खरखरी से यह दूरी लगमग चार किलोमीटर के आसपास पड़ती है।
मां मड़वारानी मंदिर, पहाड़ के ऊपर जाने वाले मार्ग में हनुमान जी का मंदिर बना हुआ है। मंदिर के प्रांगण में श्रद्धालुओं के रुकने और खाने की व्यवस्था उपलब्ध है। प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण इस पहाड़ी में और भी अनेक दर्शनीय स्थल मौजूद हैं उनमें मड़वारानी पहाड़ के नीचे भगवान विष्णु, भगवान शिव, नवदुर्गा तथा राधा-कृष्ण मंदिर एवं थीपा-पानी, चुहरी, कोठी-खोला आदि प्राकृतिक स्थल प्रमुख हैं।
अपनी यात्रा के दौरान लोग हसदेव तट, कुर्रिहा तट, झींका तट, खरहरी स्टॉप डैम को देखने से भी नहीं चूकते। यदि संभव हो तो सभी को माँ मड़वारानी के दर्शन एवं प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ़ उठाने कोरबा जिला में स्थित मड़वारानी स्थल का भ्रमण अवश्य करना चाहिए।
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