षष्टम सत्र : जनजाति कला एवं संस्कृति में राम कथा
तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के अंतिम दिवस दिनाँक 31 /8/ 2020 दिन सोमवार को सुबह 10:00 बजे से लेकर 11:00 बजे तक तीसरे दिन के पहले सत्र और कुल वेबीनार छठवें अकादमिक सत्र का प्रारंभ हुआ। इस सत्र का विषय था ‘जनजाति कला एवं संस्कृति में राम कथा’ और इस सत्र के अध्यक्ष प्रोफेसर एस.के. सिंह, कुलपति, बस्तर विश्वविद्यालय, जगदलपुर, छत्तीसगढ़, मुख्य वक्ता श्री नंदकुमार साय जी पूर्व अध्यक्ष राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत, अतिथि वक्ता- प्रोफेसर विनोद तनेजा जी, पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी अमृतसर, विश्वविद्यालय रहे । इस सत्र का संचालन डॉक्टर महेंद्र मिश्र रायपुर छत्तीसगढ़ ने किया इस सत्र के होस्ट श्री महेंद्र मिश्र जी ने कहा यह सत्र बहुत महत्वपूर्ण है मुझे अमृतसर से अभनपुर तक और बस्तर तक सभी के समय का ध्यान रखना है और उन्होंने सत्र अध्यक्ष से अनुमति लेकर उन्हें ही अपने उद्बोधन के लिए मंच प्रदान किया।
प्रोफेसर इसके सिंह ने कहा कि रामकथा के ऊपर यह आयोजन है। यह अति सुंदर है। छत्तीसगढ़ में यहाँ रचे बसे मर्यादित राम के बारे में जानना हर व्यक्ति जानना चाहता है। इसके बारे में इतनी जानकारियाँ बिखरी पड़ी हुई है। उसे एक जन्म में जानना मुश्किल है । यह वाल्मीकि का राम है, के राम को भी जानने वाले बहुत हैं।
जहाँ जहाँ से राम का पथ गया हैं जहाँ जहाँ रहते थे। उन सभी लोगों के मन में राम ही निवास करते हैं। ऐसा मेरा मानना है। सभी के हृदय में राम विद्यमान रहते है। कॉन्फ्रेंस में दिए हुए ज्ञान का लाभ लेना चाहिए। हमारा देश पूरा राममय हैं। पर थाईलैंड में भी और कोरिया में भी, श्रीलंका में भी इंडोनेशिया में भी, राम हैं। जिसे जानने की उत्सुकता भी उतनी ही दिखाई देती है। बस उन्हें जागृत करना है। जितना जानेंगे उतनी नई चीज मिलेगी। इस प्रकार बातें कहते हुए श्री सिंह जी ने अपनी वाणी को विराम दिया । होस्ट ने छठवें सत्र के मुख्य वक्ता श्री नंदकुमार साय जी को आमंत्रित किया।
इस सत्र के मुख्य वक्ता श्री नंदकुमार साय जी ने कहा कि हम सब सौभाग्यशाली हैं। जो भगवान राम का अधिकतर समय यहाँ के वनों में व्यतीत किया है। वनवास के समय अयोध्या से निकलते समय ही कह दिया था कि जो वन में रहते हैं, वही मेरे हैं। ऐसा कह कर उन्होंने महाकांतार में प्रवेश किया । जंगल में जो लोग रहते हैं, उनका गोत्र जीव जंतुओं के नाम में होता है । वे पराक्रमी होते हैं उन्हीं लोगों को लेकर एक बहुत बड़ी सेना तैयार कर रावण पर उन्होंने विजय प्राप्त की। उन्होंने कहा कि यदि राम वन में नहीं जाते तो शायद राम बन नहीं जाते। जिस राम कि हम बात करते हैं, वह शायद नहीं बन पाते। वह सबके साथ मिलकर बनवासी हो गए बन जाते हैं। तो वनवासी की तरह ही दिखते हैं, इसलिए आज अधिकांश देश उनका अध्ययन कर रहे हैं । उसके मन में शासन कर रहे हैं। अनेक लोग कोई राम सीता आदि बनकर अभिनय कर रहे हैं। मैं सोचता हूँ कि यदि विश्व मानवता को श्रेष्ठ बनाना है, सुंदर बनाना है, तो विश्व मानवता को उनके चरित्र की भूमिका पर व्यवहार को अपनाना होगा । यह बड़ा उपकार किया है। यही कारण है कि अयोध्या में एक भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है।
मैं यह सोचता हूँ कि यह केवल मंदिर नहीं है। सब से वंचित पिछड़े जो जंगल में निवास करते हैं। उनके समानता के व्यवहार के लिए मंदिर, संपूर्ण दुनिया में, अंतिम छोर में रह रहे लोग, एक भाव से रह सके इसके कारण भगवान राम के चरित्र को समझना है। यही कारण है कि महाकांतार में गए। उन्हें रामचरित्र को कैसे उतार सकते हैं? राम जहां कहीं भी गए उनका हम चर्चा कर पाए । इस चर्चा का उद्देश्य यही होगा और यही महत्व होगा इस रामचरित राम चर्चा की विश्व में हो रही है आज गरीब से गरीब व्यक्ति तक राम के चरित्र को कैसे पहुंच सकते हैं यहीं पर चर्चा का उद्देश्य होना चाहिए। कोशिश यही हो विश्व को राममय बनाने का और हम सब यह प्रयास कर सकते हैं इस प्रकार कहते हुए इस आए जिन्हें अपनी वाणी को विराम दिया
फिर इस सत्र के संचालक जीने कहा पुस्तक के रूप में लिख सके तो अच्छा होगा जटायु और गदबा जाति के बारे में आपने कहा साय जी का उद्बोधन सराहनीय रहा राम के प्रति राम के मंदिर को समझना और अब उनका अपना विचार समझाना अद्भुत है। आचरण और प्रतीकों को जोड़ा। राम के वन गमन को ही तो गाँधी जी ने भी अपनाया था । इस तरह बातें करते हुए उन्होंने आज इस सत्र के अतिथि वक्ता श्री विनोद तनेजा जी को मंच सौंपा।
विनोद तनेजा जी ने कहा कि श्रोताओं को मेरा नमन। राम, मात्र 2 अक्षरों का नाम नहीं है। राम ने छत्तीसगढ़ में रहकर दंडकारण्य को पग-पग नापा है। अभी कछ दिन ही हुए हैं जब मैं राम को जान पाया कि अंतर्मन के प्रकाश किरण का नाम राम है,राम । जीवन की गति है, राम ठहराव नहीं है, राम सर्वत्र है राम मोह का समापन है, राम भारतीय जीवन में सर्वत्र हैं।
ब्रह्म वैवर्त पुराण में कहा गया है जो विश्व का वचन है वही परमेश्वर का वचन है। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में कुछ फैसले आए राम परिपूर्णता का उदाहरण है यह मैं तो मानता हूँ कि राम मानवीय कृत्य चरित्र का आदर्श में विद्यमान हैं और ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम है। जिसने अपने पिता के वचन पालन के लिए अपना सब कुछ गंवाया।
व्यावहारिक रूप से समझें तो यही कारण है कि उनके चरित्र को संपूर्ण भारत ने अपनाया। आप आश्चर्य करेंगे कि अमृतसर में भी बाल्मीकि आश्रम है। यहीं लव कुश पैदा हुए। यहीं रामलला का मंदिर हैं, यही माता कौसल्या का मंदिर है। यह ठीक नहीं है पर मैं मानता हूं की राम का चरित्र यहाँ भी है। राम पंजाब में भी है। पाकिस्तान में भी है। गोसाई जी के राम चरित मानस यहाँ भी है।
रामचरितमानस भारतीयता का प्रतीक,भारतीय संस्कृति में जो आदर्श चरित हैं, वह छत्तीसगढ़ के संस्कृति में राम में है। सिहावा पर्वत में श्रृंगी ऋषि रहते थे। जहाँ से चित्रोत्पला महानदी उत्पन्न हुई। श्रृंगी ऋषि शांता के पति हैं। शांता दशरथ की पुत्री हैं। मेरी मान्यता के अनुसार रायपुर बिलासपुर क्षेत्र में ही माता कौसल्या की जन्मभूमि है। इसी कारण इस क्षेत्र में राम का संबंध ममेरा है। यही कारण चित्रकूट के बाद दक्षिण कोसल में लंबे समय राम ने निवास किया। स्वर्ण मृग वध, सीता हरण आदि इसी क्षेत्र में हुआ। एक इतिहासकार क्या कहता है, समाज नहीं मानता है ।समाज अपनी मान्यता को मानता है।
छत्तीसगढ़ में श्री राम जी ने लंबा समय बिताए । यहाँ जोक, महानदी और शिवनाथ नदी के संगम स्थल पर शिवरीनारायण बसा हुआ है। जहाँ माता शबरी का आश्रम है। राम ने छत्तीसगढ़ में भरतपुर के सीता चौकी से प्रवेश कर रामचंद्र रामगढ़ पहुँचे। वहाँ से शिवरीनारायण होते हुए, तुरतुरिया पहुँचे थे । तुरतुरिया में ही लव कुश का जन्म स्थान भी पहुँचे थे।
यहाँ चंद्रखुरी में माता कौसल्या का मंदिर है । राजिम, सिहावा, दंडकारण्य क्षेत्रों में यहाँ कण-कण में, पग पग में, राम है। इन सब को दृष्टिपात करें तो स्पष्ट हो जाएगा कि राम यहाँ कण-कण में हैं। न्होंने लोक गीत के माध्यम से राम के स्थान को समझाया।
दलपति सिंह, श्यामलाल के पुस्तकों को पढ़ा, पंडित सुकलाल पांडे, द्वारका प्रसाद पांडे तिवारी, केवट संवाद को पढ़ा। राम लोक साहित्य में हर स्थान में हैंं। रायपुर में छत्तीसगढ़ी में रामायण लिखा गया। छत्तीसगढ़ में इन्हीं संसार में राम के ऊपर लगभग 700 प्रकार के रामायण है । लोक जीवन में राम की महत्ता महत्वपूर्ण है। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में राम का महत्व है । लोक जीवन में राम महत्वपूर्ण हैं। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में राम का महत्व है। जहाँ नित्य प्रसंग में राम है छत्तीसगढ़ के प्रत्येक क्षेत्र में, लोक नृत्य, लोक गीत आदि में राम है। हम राम -राम भी कहते हैं, और राम नाम सत्य भी कहते है।
हमारे धर्म के मूल भाव में, हमारे संपूर्ण जीवन में ,राम हैं। भारत में शारदीय नवरात्र के समय रामलीला का मंचन किया जाता है। रावण विजय, मर्यादा की, अहंकारी रावण पर विजय ,मर्यादा और नैतिकता का मंचन है। 1920 से भाटापारा बलौदा बाजार में रामलीला का मंचन होता आ रहा है। बस्तर में हरेली से चालू होकर 75 दिवसीय बस्तर दशहरा के नाम से प्रसिद्ध दशहरा महोत्सव मनाया जाता है ।सांस्कृतिक परिदृश्य लोक परिवेश में छत्तीसगढ़ की संस्कृति में श्री राम की भूमि के रूप में भी प्रसिद्ध है आदि बातें कहते हुए उन्होंने मंच सत्र के होस्ट को सौंप दिया ।
सत्र आगे बढ़ाते हुए उन्होंने एस.के. सिंह को मंच प्रदान किए उन्होंने कहा कि आज की चर्चा महत्वपूर्ण है। अमृतसर और बस्तर क्षेत्र से दो मूर्धन्य विद्वान लोग ने अपनी बातें रखी साय जी के पास ज्ञान का अथाह भंडार है। मैं तो समझता था कि शिव के क्षेत्र होने के कारण वहाँ से मुझे निकलना ही नहीं चाहिए पर आज आकर महसूस हुआ कि साय जी एवं तनेजा जी को सुनने के बाद पता चला कि राम तो यहाँ कई वर्ष व्यतीत किए थे। राम का ननिहाल यहाँ है। राम ने जब यहाँ को स्वीकार किया है तो हमें भी इसको को स्वीकार होना चाहिए।
साय जी को अपने अनुभवों को पुस्तक के रूप में लाना चाहिए। तनेजा जी को सुनने के बाद पता चला की आपकी उम्र ज्यादा नहीं हुई है। तुलसी ने 74 वर्ष की उम्र में राम कथा लिखना प्रारंभ किया। आपने बताया की राम का व्यक्तित्व विराट है। यह अगर नहीं होता तो विश्व में इतना प्रचार नहीं होता । श्रृंगी ऋषि की विवाह शांता से हुआ इस प्रकार की बातों को प्रचार होना ही चाहिए। सिहावा के क्षेत्र में श्रृंगी ऋषि का आश्रम है जिसे मैंने देखा है, आदि बातें करते हुए उन्होंने मंच कार्यक्रम के इस सत्र के संचालक को सौंप दिया ।
फिर इस सत्र के होस्ट ने बताया कि कैसे महानदी में एक लकड़ी को बहा दिया जाता है। वह पूरी पहुँचता है इसकी कथा है । शिवरीनारायण में अन्न का प्रसाद चढ़ाया जाता है। दशरथ पुत्री शांता का संबंध महानदी से है। यह इस वेबीनार के माध्यम से पता चला। राम के बारे में डॉक्टर लोहिया आदि ने बताया है कि राम विस्तार वादी नहीं थे इसीलिए लंका विजय के बाद भी उसे छोड़ कर आ गए। उसे यह आचरण तो आदिवासियों का गुण है । राम विस्तारवादी नहीं हैं।
गोंड जनजाति भी दो प्रकार की हैं । पहला सूर्यवंशी दूसरा रावणवंशी। इस पर भी आपने विस्तार से प्रकाश डाला। रविंद्र नाथ टैगोर के अनुसार अहिल्या का उद्धार राम ने किया था । बंजर भूमि को जहाँ हल नहीं चलाते हैं, वहाँ हल चलाकर उस भूमि को उपजाऊ बना दिया था ।यही तो अहिल्या उद्धार है। राम जैसे राजा बनने के लिए आदिवासी बनना पड़ेगा। यह गांधीवादी विचारधारा है। गदबा अपने को जटायु का वंशज मानते हैं । भद्राचलम में बाली सुग्रीव लड़ाई करते थे। रामायण में पेड़-पौधे जीव जंतुओं को बचाने का बड़ा प्रयास है। नंदकुमार साय साहब कोई किताब नहीं लिखे हैं। उन्हे एक किताब लिखना चाहिए। तनेजा जी जो अभी 16 साल के हैं।
इन बातों के साथ ही इस सत्र का आभार प्रदर्शन और धन्यवाद ज्ञापन के साथ संपन्न हुआ इस सत्र का समापन इंडोलॉजिस्ट ललित शर्मा जी ने सभी को धन्यवाद देकर आभार प्रदर्शन करते हुए इस सत्र के समापन की घोषणा की।
सप्तम सत्र : छत्तीसगढ़ की पारंपरिक चित्रकला में रामकथा का अंकन
दिनांक 31/8/ 2020 सोमवार को 11:15 से 12:15 के मध्य सप्तम अकादमिक सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र के अध्यक्ष आर.पी .तिवारी, कुलपति, भटिंडा विश्वविद्यालय, पंजाब, मुख्य वक्ता श्री खेमचंद वैष्णव, कोण्डागाँव, बस्तर, अतिथि वक्ता श्रीमती अनीता बोस, पूर्व गाइड, नेशनल म्यूजियम बैंकॉक, थाईलैंड रहीं । इस सत्र का संचालन, इंडोलॉजिस्ट श्री ललित शर्मा जी ने किया। इस सत्र का विषय “छत्तीसगढ़ की पारंपरिक चित्रकला में रामकथा का अंकन” था।
कार्यक्रम संचालन करते समय ललित शर्मा जी ने चित्रकला में रामकथा विषय पर प्रकाश डालते हुए, समयाभाव के कारण सीधे बैंकॉक से जुड़े अनिता बोस जी को मंच सौप दिए। अनिता बोस ने अपने विचार में कहा कि राम महाकाव्य केवल हम लोगों का देश का ही नहीं है। चित्रकला में राम अन्य देशों में भी हैं। मैं एक खुद कलाकार हूँ। इसलिए मेरा विषय “ब्लूसिमिंग ऑफ एन इपिक थ्रू आर्ट ऑफ वैरीयस कंट्रीज” है। फिर उन्होंने स्लाइट्स के माध्यम से बैंकॉक, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, इंडोनेशिया आदि के चित्रों को दिखलाते हुए कहा कि यह मैप म्यूजियम ऑफ बैंकॉक का है। जो सम्राट अशोक के समय का है। उस समय ट्रेडीशन इंडोनेशिया तक आ गए थे और यह क्षेत्र वृहद भारत कहलाता था। \
थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और इंडोनेशिया में राम के संबंधित चित्र मेरा विषय है। जिनके अंदर थोड़ी भी कला है, उन्होंने चित्र प्रस्तुत किया। 2019 में रामायण पर एक चित्र प्रदर्शनी हुई मैं भी उसमें शामिल थी। थाईलैंड के राजा का अंत होने पर मैदान को सर्पनुमा आकृति में सजाकर उनके दर्शन के लिए रखा गया था और यह भाव उनको भगवान विष्णु के अवतार की तरह दिखाना था।
वर्तमान राजा राम-10 हैं । उस समय से वहाँ के राजा को राम कहा जाता था और ऐसे करते-करते पीढ़ी दर पीढ़ी होते हुए आज वर्तमान में थाईलैंड में राम दसवें राजा हैं। वे लोग ब्रह्मा, शिव सबको बना रहे थे। हम लोग थाईलैंड पैलेस घूमते हैं । उत्तर दिशा से प्रवेश करने पर रामायण गैलरी है। जिसमें 178 पेंटिंग्स है। यह ग्रैंड प्लेस है, अंडानुमा आकार में रामकेईन पैलेस को बनाया गया है।
हनुमान जी की पेंटिंग थाईलैंड की आर्मी के ध्वज में होती है। कुंभकरण और हनुमान को गोल्ड प्लेटेड पेंटिंग में तैयार किया गया है। बर्मा के पांडुलिपि, इंडोनेशिया के लिथोग्राफी में, सुंदर बाटिक कला में, रामायण का चित्रण है, राम- सीता और गरुड़ के बाटिक कला में सुंदर सा चित्र को स्लाईडस् के माध्यम से उन्होंने दिखाया। कंबोडिया, बाली में बाटिक कला से लेदर तक हनुमान और रामायण के चित्र हैं। रामकेईन नामक पुस्तक में रामायण के चित्रों को पेंटिंग के माध्यम से दिखाने का प्रयास भी किया गया है। जो बहुत सुंदर बन गई है । इन सब चित्रों को उन्होंने स्लाइड के माध्यम से बहुत ही सुंदर प्रस्तुति दी और अपनी बातों को सुरुचिपूर्ण ढंग से समझाया ।
इसके बाद सत्र के संचालक ललित शर्मा जी ने उनका धन्यवाद देकर लोक कला में राम, सीता, हनुमान पर उनके द्वारा किए गए कार्यों को बताने के लिए श्री खेमचंद वैष्णव जी को आमंत्रित किया। श्री वैष्णव जी ने कहा कि मैं लोक कला में राम, सीता, हनुमान की कला को 28-30 साल पहले बनाया था। राम कथा का चित्रण बस्तर कला में नहीं मिलता है। परंतु गीतों में राम कथा में लंकाकांड आदि का उल्लेख आता है। चखना गीत में विशेषकर हनुमान, राम ,सीता का चित्रण आता है । उसे जगार शैली कहा जाता है। लक्ष्मी जगार के चित्र में विष्णु-लक्ष्मी, वादक, बाजा, मोहरी को बजाकर गीत गाते हैं।
जन जीवन से संबंधित, खेती बाड़ी से संबंधित चित्र इसमें बनाए जाते हैं। इनमें चित्रकारी के लिए, सेमी पत्ते का रंग, हरे रंग के लिए और हल्दी से बने, पीले रंग के लिए, रंग का प्रयोग करते हैं। टेड़ा से पानी निकालकर खेत पर लाने के पारंपरिक चित्र, बस्तर परिपेक्ष में, माटी तिहार में बनी ,बोनी के समय, देव कूट, सिरहा बोनी में, मिट्टी के प्रति आभार प्रकट करते हैं। इसे माटी तिहार कहते हैं। सीता हरण के बाद राम, लक्ष्मण और हनुमान का चित्र है । जगार में केवल हनुमान का चित्र है। राम वन गमन का चित्र आदि बस्तर के चित्रकला में बनाए जाते हैं। इसके बाद इसके बाद स्लाईडस् के माध्यम से वैष्णव जी ने, अपने चित्रों को दिखाने का भी प्रयास किया । तत्पश्चात इस सत्र का समापन हुआ।
समापन सत्र : दक्षिण कोशल में रामकथा की व्यापति एवं प्रभाव
तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन के अंतिम दिवस 31 अगस्त को अपरांत 12:00 से 2:00 के मध्य समापन सत्र संपन्न हुआ। जिसका विषय दक्षिण कोशल में रामकथा की व्याप्ति एवं प्रभाव रहा है । इस सत्र में स्वागत भाषण डॉक्टर योगेंद्र प्रताप सिंह, निदेशक अयोध्या शोध संस्थान, मुख्य अतिथि – श्रीमती अनुसूया उईके, महामहिम राज्यपाल, छत्तीसगढ़, सत्राध्यक्ष- प्रोफ़ेसर अंजिला गुप्ता ,कुलपति, गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर , छत्तीसगढ़, विशिष्ट अतिथि -प्रोफेसर पी. के. स्थापक ,अध्यक्ष सी एस एच डी छत्तीसगढ़ ,विशिष्ट अतिथि- प्रोफेसर शैलेन्द्र शराफ, उपाध्यक्ष फार्मेसी काउंसिल आफ इंडिया ,विशिष्ट अतिथि श्री विवेक सक्सेना- सचिव सी एस एच डी रहे। इस अवसर पर श्रीमती रेखा पांडे व्याख्याता, लमगांव,सरगुजा ने दक्षिण कोसल के “ऋषि मुनि एवं उनके आश्रम” विषय पर ब्याख्यान भी दिया। सत्र का संचालन श्री ललित शर्मा ,इंडोलॉजिस्ट, ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण छत्तीसगढ़ ने किया।
महामहिम राज्यपाल श्रीमती अनसुइया जी ने कहा कि मुझे बताया गया है कि यह संगोष्ठी ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण तैयार करने की दृष्टि से आयोजित की जा रही है। यह विषय संपूर्ण भारतवासियों ही नहीं पूरे विश्व में हमारी भारतीय संस्कृति के जो उपासक हैं, उन सभी के लिए महत्वपूर्ण हैं।
महामहिम राज्यपाल ने कहा कि यहां की भूमि और यहां के लोगों में भगवान श्रीराम का इतना प्रभाव है कि उनकी सुबह राम नाम के अभिवादन से होती है और जब वे किसी से मिलते हैं तो वे एक दूसरे से राम-राम कहकर अभिवादन करते हैं। उनके नाम में भगवान राम का उल्लेख मिलता है। हम यदि गांव में जाएं तो वहां के लोग रामचरित मानस का पाठ करते मिलते हैं और पुण्य लाभ लेते हैं। छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में कई रामायण मंडली होती है, जिसके बीच प्रतियोगिता भी होती है। अभी भी कई स्थानों पर रामलीला का मंचन होता है। दशहरे के समय तो यहां की रौनक देखते ही बनती है।
उन्होंने कहा कि भगवान राम का संपूर्ण जीवन प्रेरणादायी है। उनके जीवन से हमें समन्वयवादी जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा मिलती है। हम छत्तीसगढ़ को देखें तो यहां भी समन्वयवादी संस्कृति मिलती है। यह सब भगवान श्रीराम के आशीर्वाद से ही संभव हो पाया है। छत्तीसगढ़वासियों के मन में भगवान श्री राम के प्रति अथाह प्रेम है। यहां एक समुदाय ऐसा भी है, जिसके सदस्य अपने पूरे शरीर में भगवान राम के नाम का गोदना गोदवा लेते हैं, भगवान श्री राम के प्रति ऐसा समर्पण शायद ही कहीं देखने को मिले। इसे रामनामी सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने कहा कि हम छत्तीसगढ़ में भगवान राम के प्रति प्रेम भाव की बात करें तो कवर्धा जिले में एक पंचमूखी बुढ़ा महादेव मंदिर का उल्लेख किया जाना चाहिए, जहां पर अनवरत रामधुन गाई जाती है। यही नहीं इस प्रदेश में भगवान श्रीराम इतने गहराई तक समाए हुए हैं कि एक मुसलमान कथा वाचक दाउद खान रामायणी जैसे महापुरूष हुए, जिनमें राम के प्रति इतनी आस्था थी कि आजीवन रामकथा का वाचन करते रहे और उन्हें पूरी रामकथा कंठस्थ थी।
राज्यपाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल माना जाता है। यह माना जाता है कि रायपुर जिले के चन्द्रखुरी नामक गांव में माता कौशल्या का जन्म हुआ था, इसका प्रमाण है कि वहां माता कौशल्या का एकमात्र मंदिर स्थापित है। इस नाते भगवान राम को पूरे छत्तीसगढ़ का भांजा माना जाता है। इसलिए भांजे को श्रेष्ठ स्थान देने की परम्परा है और उनके पैर भी छुए जाते हैं। छत्तीसगढ़ को दण्डकारण्य भी कहा जाता है, जहां वनवास के दौरान भगवान राम अधिकतम समय व्यतीत किया था, जिस दक्षिण पथ मार्ग से वे लंका विजय के लिए गये उसे हम राम वन गमन पथ के नाम से जानते हैं। राज्य शासन द्वारा इसे विकसित करने की योजना बनाई गई है।
मुख्य वक्ता श्रीमती रेखा पाण्डेय ने कहा कि रामायण काल में दक्षिण कोसल एक ऐसा स्थान माना जाता है, जहां भगवान श्रीराम ने माता सीता एवं भ्राता लक्ष्मण के साथ वनवास का सर्वाधिक समय व्यतीत किया। यह भूमि श्रीराम की लीला भूमि के साथ ऋषि-मुनियों की प्रमुख केन्द्र रही है।
श्रीमती पाण्डेय ने ऋषि-मुनियों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रदेश के सरगुजा संभाग के देवगढ़ नामक स्थान में जमदग्नि ऋषि की साधना स्थली, बिलासपुर के शिवरी नारायण में मतंग ऋषि, सरगुजा जिले के रामगढ़ में शरभंगा ऋषि के आश्रम होने की मान्यता है। उन्होंने कहा कि साथ ही बिलासपुर जिले के बैतलपुर के समीप महान ऋषि मंडूक, ग्राम तुरतुरिया में वाल्मीकि ऋषि, ग्राम पांडुका के समीप अतरमरा में अत्रि ऋषि आश्रम और राजिम के त्रिवेणी संगम में महानदी के तट पर लोमेश ऋषि, सिहावा क्षेत्र में भीतररास ग्राम में श्रृंगी ऋषि का आश्रम होने की मान्यता है। यह भी माना जाता है कि बस्तर के दक्षिण पूर्व में अगस्त्य ऋषि का आश्रम माना जाता है।
श्रीमती पाण्डेय ने कहा कि ऋषि परंपरा में छत्तीसगढ़ को संत कबीर एवं संत शिरोमणी गुरूघासी दास जी का भी सान्निध्य और आशीष प्राप्त हुआ। इन समस्त ऋषि-मुनियों का प्रभाव यहां की संस्कृति में आज तक बना हुआ है।
सेंटर फॉर स्टडीज ऑन होलिस्टिक डेवलपमेन्ट छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष श्री बी. के. स्थापक ने कहा कि भगवान श्री राम हम सबके आस्था के केन्द्र हैं। छत्तीगढ़ को दक्षिण कोसल कहा जाता है, जिसका भगवान श्रीराम का करीब का संबंध रहा है। यहां माता कौशिल्या की जन्मभूमि है, जहां पर माता कौशिल्या के मंदिर का निर्माण किया जा रहा है।
इस कार्यक्रम में गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर की कुलपति डॉ. अंजिला गुप्ता, अयोध्या शोध संस्थान, उत्तर प्रदेश शासन के निदेशक डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह, ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण, छत्तीसगढ़ के संयोजक एवं सम्पादक इण्डोलॉजिस्ट श्री ललित शर्मा, फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र सराफ, सीएसएचडी छत्तीसगढ़ के सचिव श्री विवेक सक्सेना तथा संगोष्ठी संयोजक प्रो प्रवीण मिश्र बिलासपुर आयोजन सचिव डॉ नीतेश मिश्रा शामिल हुए । पूरे सत्रों की रिपोर्टिंग हरि सिंह क्षत्री मार्गदर्शक जिला पुरातत्त्व संग्रहालय कोरबा ने की।
सत्र रिपोर्टिंग