दिनांक 30 अगस्त 2020 तृतीय से पंचम सत्र
तृतीय सत्र : लोक परंपरा एवं लोक साहित्य में राम कथा
अंतर्रष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन “लोक परंपरा एवं लोक साहित्य में राम कथा” पर दिनाँक 30/8/2020 को सुबह 11:00 से 12:30 के मध्य तृतीय अकादमिक सत्र का प्रारंभ किया गया। जिस के मुख्य अतिथि प्रोफेसर कुमार रत्नम मेंबर सेक्रेट्री आईसीएचआर /आईसीपीआर दिल्ली, सत्राध्यक्ष प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा, कुलपति, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर, मुख्य वक्ता डॉक्टर बलदाऊराम साहु “लोक परंपरा में रामकथा “पर, मुख्य वक्ता प्रोफेसर राजेन यादव, हिंदी विभाग ,खैरागढ़, “लोक साहित्य में रामकथा” पर, अतिथि वक्ता प्रोफ़ेसर एन.सी .पंडा बैंकॉक थाईलैंड रहे। इस सत्र का संचालन डा रामकिंकर पांडेय जी, लाहिड़ी महाविद्यालय, चिरमिरी, छत्तीसगढ़ ने किया।
इस तृतीय अकादमिक सत्र की संचालन करते हुए प्रोफेसर रामकिंकर जी ने कहा कि राम की कथा परंपरा और साहित्य में इस प्रकार रच बस गया है कि पृथक कर देखना संभव नहीं। इस प्रकार उन्होंने बहुत सारी बातें करते हुए प्रथम वक्ता डॉ बलदेव साहू जी को मंच सौंप दिया ।
डॉक्टर बलदाऊ राम साहू जी ने “लोक परंपरा में राम कथा” विषय पर अपना उद्बोधन देते हुए राम-राम से अपना उद्बोधन प्रारंभ किया। छत्तीसगढ़ एक सांस्कृतिक क्षेत्र है यहाँ मंदिरों, मठों, भग्वनाशेषों में आर्य और द्रविड़ संस्कृति है। छत्तीसगढ़ लोक परंपरा प्रधान क्षेत्र है। छत्तीसगढ़ दो भागों में बटा है। पहला पठारी क्षेत्र और दूसरा मैदानी क्षेत्र। यहाँ लोक कथा साहित्य में राम व्याप्त है। आज भी जनजाति भाई बिना लोकगीत के कोई भी परंपरा प्रारंभ नहीं करते हैं कलयुग में तो केवल नाम ही अधारा है। जब मैं मुक्त होऊं तो अंतिम में राम नाम निकले। कहा गया राम का नाम ही जप लेना पर्याप्त है। यह लोक मान्यताएँ हैं। यहाँ का कण कण में राम है। यहाँ तो अंक में भी राम है। धान की रास काठे से नापने पर राम से प्रारंभ किया जाता है। धान बुवाई के समय किसान पहला अन्न राम के नाम से बैल को खिलाता है। फिर बीजारोपण करते हैं।
सोहर विवाह आदि परंपराओं में राम के नाम पर ही तेल चढ़ाते हैं। लोक परंपरा में घर घर में राम है। मितान बदते समय राम है । ललित भाई कल रामनामी संप्रदाय की बात कर रहे थे। गोदना में राम खुदवाने में, राम गुदवा ने में भी राम, गीत में भी राम व्याप्त है, प्रणय गीत ददरिया में भी राम है। ददरिया में संपूर्ण तत्व ही राम है। माता कौसल्या यहाँ की बेटी है। इसलिए यहाँ राम को भाँचा मानकर, भाँजे की पैर छूने की परंपरा केवल छत्तीसगढ़ में है। उनका जूठन भी खा लिया जाता है। तो वह इस भाव से कि वह भगवान राम का ही जूठन है। क्योंकि हम भगवान को भाँचा भगवान मानते हैं। फिर बीच-बीच में उन्होंने सुमधुर गीतों के माध्यम से अपनी बातें कहते चले गए। ढोला मारु, पंडवानी आदि में भी राम है। राम से ही हर कथा का प्रारंभ किया जाता है। नाचा यहाँ का लोकनाट्य है। इसमें भी अध्यात्म का प्रवेश कराकर, राम वहाँ भी प्रवेश हो गया है। उसके बाद उन्होंने गीत गाकर के राम की बातें बताई। जिसमें राम वनवास जाते समय लोगों को लेते हुए वर्णन किया। यहां सब्जी में भी राम, राउत नाचा में भी राम, कहावतों में भी राम। लेगही राम त बचाहि कोन, आज बचाहि राम त लेगही कोन। राम और माया एक साथ नहीं मिलय। जनौला में भी राम। जनजातियों के भाषाओं में परंपरा में राम। सबमें, संपूर्ण में राम है। हमारी लोक परंपरा में मान्यता है । इत्यादि कहते हुए उन्होंने अपनी बातें कहीं।
डॉ बलदाऊ राम साहू जी के वक्तव्य के पश्चात दूसरे वक्ता प्रोफेसर राजन यादव, खैरागढ़ ने अपनी बातें अध्यक्ष की अनुमति से प्रारंभ की। प्रोफेसर राजन यादव जी ने भी कहावत में-
1/-“काला पानी समुन्दर के देख डराए “
2/-” एक पल दुई सुजान” (मंदोदरी-रावण) से अपनी बातें प्रारंभ की।
3/- माता कुआरी अऊ बेटा कुँवारा, अइसन हे सारा, उनको घर ले कहोगे ओकरो पुत्र हो गए,छट्ठी मनावा । यहाँ बातें जनौला में अंजनी, हनुमान और मकरध्वज की हो रही है।
छत्तीसगढ़ के वर्णन में बहुत सारी बातें तुलसीदास जी ने भी किया है। पूर्व के वक्ताओं ने पहले ही कहा है कि यहाँ तो हर चीज में राम है।
“राम जनम लिन्हें—-” नामक बहुत ही प्यारे लोकगीत से उन्होंने सस्वर वाचन करने के बाद “मोर दाई, सीता ल बिहावय राजाराम” नामक दूसरे गीत और फिर इस प्रकार उन्हें एक के बाद एक कई गीतों में राम, सीता, लक्ष्मण आदि का सस्वर गान किया।
हमर छत्तीसगढ़ी में राम-सीता को विष्णु-लक्ष्मी के रूप में माना जाता है। कंकाल- बंजारी को शिव पार्वती मानते हैं। हम गाँव- गांव, तालाब-तालाब के, घाट-घाट में, कंकड़-पत्थर में देव मान लेते हैं। एक पत्थर उठाकर बंदर लगा दिया और वह हनुमान हो गया। उन्होंने कहा कि जय गंगान गीत में भी राम का नाम है। उन्होंने सस्वर पाठन करते हुए कहा- सुनते रावण खींचे तलवार- जय गंगा। ऋतुगीत में राम। रूप बदल जाते हैं पर स्वरूप में वही राम है। वेदना के गीत, सुआ- गीत में भी राम। इसमें राम के वनवास के समय का वर्णन को गीत में गाए जाते हैं। मुखड़ा अंतरा में राम, निर्गुण पंथ में राम, को बताए मरे के बेरा भी काम आही रे। जाति गीतों, लोकगीतों में, वन क्षेत्र में, शरीर की नश्वरता की बात आती है। मन में राम, एक ईंट के भवना ए राम, बिना पाँख के सुवना ए राम, शरीर की नश्वरता में राम।
” चोला चार दिन के हे राम”, भारद्वाज, याज्ञवल्क्य मुनि का वर्णन, याज्ञवल्क्य मुनि बड़े ही ज्ञानी थे। बाबा तुलसी के गीतों में राम कवितावली को भी लोकगीतों में डाला गया है। ‘लीला करत दशरथ घर पे ‘ “यागमुनिक बड़ा ही ज्ञानी—- ” ‘ यागमुनिक की कथा सुनावा हो’ आदि लोकगीत सस्वर वाचन किया।
मरघट में एक तरफ क्रिया कर्म हो रहा है दूसरी तरफ कर्मगीत महासमुंद के तरफ में गाया जाता है। भोजली मितान में सीता राम भोजली का उपयोग, टोनही, मारण, मोहन, उच्चाटन का प्रयोग होता है। भूगोल बदल गया है माई की उपासना नहीं बदली। ‘गौरा के जोते जले बाती’ माता गीत में हिंगलाज, शिव गौरी-गौरा के गीत, निराकार और सगुण- निर्गुण का वर्णन ,यहाँ की लोकगीतों में लहूरा देव, हनुमान, शैव, शाक्त में भी जो गीत है, उनमें भी राम व्याप्त है। सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंत में भी, राम-राम ले लेवा ,के गीत गाते हैं ।इस प्रकार सुंदर गीत की प्रस्तुति कर अपनी वाणी को प्रोफेसर राजेंद्र यादव जी ने विश्राम दिया।
उसके बाद फिर कार्यक्रम के संचालक श्री रामकिंकर जी ने अतिथि वक्ता बैंकॉक से पंडा सर को अपने विचार रखने के लिए मंच प्रदान किया।
अतिथि वक्ता बैंकॉक से पंडासर ने अपने उद्बोधन में कहा कि रामकथा क्या हमारे हिंदुस्तान में है या कहीं और भी है। मैं पिछले 3 साल से थाईलैंड में हूँ और यहाँ विद्यार्थियों को वाल्मीकि रामायण पढ़ाता हूँ। हिंदुस्तान के बाद राम कथा का मंचन थाईलैंड में होता है अयोध्या का नाम आते ही पवित्र भूमि का पता चलता है। जो थाईलैंड में है । एक राजा ने 3000 पृष्ठों में रामायण लिखी है। वे अपने आप को राम ही कहते हैं ।वर्तमान में आज जो राजा है वह दसवाँ राम के नाम से जाना जाता है। यह प्रदेश राम और श्याम के प्रदेश के नाम से जाना जाता है । यहाँ बैंकॉक से 80 किलोमीटर दूर अयोध्या है। रामायण में ऐसा क्या है ? इससे पूर्व में सुनना चाहते थे, आज भी सुना जाता है और भविष्य में भी सुना जाता रहेगा। क्योंकि यह अमर काव्य है चाहे हिंदुस्तान हो या थाईलैंड हो चाहे इंडोनेशिया।
यहाँ राम कीएन कथा का मंचन किया जाता है। थाईलैंड में ब्रह्मा जी को बड़ा मान दिया जाता है। यहाँ हर जगह उनकी मूर्ति है। वाल्मीकि ने जो लिखा है, वह सत्य घटना पर आधारित काव्य है। जो सत्य ही लिखा है। बस यहाँ के थाई रामायण में थोड़ा सा अंतर है। पर कथा वही है यहाँ राम किएन में अद्भुत वर्णन है।
लक्ष्मण को फरालैक हाफ ब्रदर, भरत को शत्रुघ्न को फरालैक हॉफ ब्रदर, कौसल्या का नाम को कौसुरिया। यहाँ हनुमान बाल ब्रह्मचारी नहीं है। एक नायक है। यहाँ सीता को सीदा कहा जाता है। रावण को दोष करण कहा जाता है। बस वेशभूषा में अंतर है। राम यहाँ भी श्याम वर्ण के हैं। यहाँ हनुमान शादीशुदा है, और उनकी अनेक पत्नियाँ हैं। हिंदुस्तान के अलावा केवल थाईलैंड में ही रामायण है। लक्ष्मण रेखा वाल्मीकि रामायण में नहीं है। तुलसी के रामचरित मानस में है। यहाँ मंचन किया जाता है। बस कथाओं में थोड़ा अंतर है। इन सब कथाओं की चित्र म्यूरल पेंटिंग आदि को पीपीटी के माध्यम से दिखा करके अपनी बातें और ही रोचक ढंग से समझाई।
इस तरह अपनी उद्बोधन समाप्त कर आगे के लिए उन्होंने होस्ट को मंच सौंप दिया। उसके बाद कार्यक्रम के संचालक ने मुख्य अतिथि प्रोफेसर कुमार मंगलम को आमंत्रित किया।
इस सत्र के मुख्य अतिथि महोदय ने कहा कि निश्चित ही राम हमारी आत्मा, जीवन के प्रारंभ से अंत तक, हमारे जीवन में रहे हैं। हम पाँच भाई हैं। मैं बड़ा हूँ। दादी मां ने जन्म के समय कहा कि छोटे भाई का नाम राम के नाम से रखना जब मैं मरूँ तो इन्हें याद कर सकूँ। ऐसी है यहाँ की संस्कृति ।
लोक साहित्य में, परंपरा में, राम आदि कहते हुए कहा कि मैं कला का विद्यार्थी हूँ। राम की कथा प्रत्येक कालखंड में चित्रांकित किया गया है। हालाँकि मुगल काल में इसे व्यापक नुकसान हुआ। नुकसान पहुँचाया गया। पर उस काल में भी जहाँगीर के काल में रामकथा का चित्रण देखने को मिलता है। अनेकों रसों में रामकथा का चित्रण है। राजा रवि वर्मा के हर चित्रण, शरीर सौष्ठव और राममय हैं। मुगल काल में राजपूत शैली का, कश्मीर शैली का और भी अनेकों शैलियों में राम को केंद्र में रखकर चित्रण किया गया। आप कहीं भी चले जाएँ, कश्मीर से कन्याकुमारी तक, अटक से कटक तक, चित्रकारों को राम का विषय खूब भाया। और उन्हीं को विषय बनाकर चित्रकारी करते चले गए। राम का चरित्र ऐसा है की चित्रकारों को चित्र बनाने विवश कर दिया।
पूर्व में भारत को इतिहास को उपनिवेशिक राज्य की तरह देखते रहे ।दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद भी , इसमें वर्षों तक हम इस सोच को अलग नहीं कर सके। अलग नहीं हो सके। दुर्भाग्य से सीता का अग्नि प्रवेश की चित्रण करने वाले को महिमामंडित कर पुरस्कृत किया गया। हमारे देवी देवताओं का चित्र एम एफ हुसैन दूषित प्रकृति से किया और हम मौन होकर देखते रहे। इससे वास्तविक कला, संस्कृति और धर्म का नुकसान होता है । समाज का कौन सा अंग है जो राम की उपादेयता को वितरित किया है। यह देखने की आवश्यकता है। आयोजकों को धन्यवाद कहते हुए आगे संचालन के लिए मंच सौंप दिया।
तब इस सत्र के संचालक इस सत्र के अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा जी को मंच सौंप दिया लोक जीवन में राम छत्तीसगढ़ से लेकर थाईलैंड तक की चर्चा आनंद देने वाली है हम सब भाग्यवान हैं कि हम छत्तीसगढ़ में रहते हैं। जिनके कण-कण में राम हैं। दंडकारण्य और प्रवेश द्वार के मध्य 75 स्थान चिन्हित किए गए हैं । जो राम वन गमन मार्ग है। जिनका विकास किया जाना है ।
राम रक्षा स्त्रोत में “लोकाभिरामम्—” श्लोक का गायन कर कहते हैं कि जो लोक को रक्षित करें वह राम है। विद्वानों ने जिस प्रकार राम की विधि विविधता पर प्रकाश डाला है, अद्भुत है। रत्नम जी ने अच्छा संकेत दिया है कि किस प्रकार स्वतंत्रता पश्चात, कैसे धर्म को विकृत किया गया। राम को मर्यादा पुरुषोत्तम ऐसे थोड़े ही कह दिया गया। जड़ चेतन सब जीव जगत में, धर्म को रिलिजन कह कर, धर्म को पोंगापंथ कर दिया। संस्कृति को कल्चर कर दिया गया। फोक में जीवन को लोक और लोक को फोक कर दिया गया। लोक जैसे व्यापक शब्द को गंवारपन का प्रतीक बना दिया गया और शासन को लोकतंत्र बना दिया गया।
लोक माने नदी, पहाड़ सब है। हमारे यहाँ तो कई लोक हैं। स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक, पाताल लोक आदि। पर यहाँ लोक को स्वतंत्रता के पश्चात जिम्मेदार लोगों ने सीमित कर दिया। भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की शिक्षा पद्धति बना दी गई। हमारे सामाजिक ताने-बाने को एक सूत्र में पिरोने वाला केवल राम है। राम कला संस्कृति साहित्य आदि में लोकनायक है। यह मेरे लिए आनंद देने लायक है। लोक शब्द है गाँव नहीं है । लोक माने संसार ।
भारत में गाँव गाँव में लोक शब्द के भाव को सब जानते हैं ।लोक एक व्यापक शब्द है। लोक माने स्वर्ग लोक, नरक लोक, गोलोक, बैकुंठ लोक आदि । यह है भारत की आत्मा में बसा हुआ लोक। जिस के अर्थ को सीमित बना दिया गया स्वतंत्रता पश्चात ।
राम का जीवन, अधिकांशत जवानी में, जंगलों में व्यतीत हुआ। वनवासियों के साथ व्यतीत हुआ । इसीलिए वह वनवासी राम कहलाए। धर्म को कोई नहीं जानता। राम स्वयं धर्म का प्रतीक है। उन्होंने तीन तापों की भी चर्चा की। दैहिक, दैविक और भौतिक। इन पर उन्होंने गीत में भी सुनाए। दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज्य में कोहू न व्यापा ।
राम का जीवन एक मर्यादा का जीवन है। राम व्यापक है राम लोक जीवन में, लोकगीतों में हैं, लोक गीतों को संरक्षित करने की आवश्यकता है। लोक को, जीवन में जीवित करने की आवश्यकता है । यहाँ के भाव अनुपम है। भाव देखिए, राम की चिड़िया राम का खेत। उन्हें फसल नष्ट होने जाने का भय नहीं रहता है। कहते हैं कि राम ने ही तो चिड़िया को जन्म दिया है और राम ही अनाज भी पैदा करते हैं ।इसलिए अगर चिड़िया अनाज खा जाएगी तो राम का ही है। यह भाव है यहां। उन्हें फसल नष्ट हो जाने का भय नहीं और आज का समय दुनिया टकराव के सामने खड़ी है। दुनिया परमाणु युद्ध के कगार पर है। दुनिया को कोई बचा नहीं सकता है। दुनिया को अगर कोई बचा सकता है, तो वह है भारतीय विचार । राम राजा बनकर इस देश का राज्य करते हैं। यहाँ का शासक राजाराम को ही माना जाता है। इसीलिए तो श्री रामचंद्र की जय, राजाराम चंद्र की जय इत्यादि जयघोष किया जाता है। इत्यादि बातों होने के बाद इस सत्र का समापन हुआ ।
चतुर्थ सत्र : छत्तीसगढ़ में रामायण गायन एवं नृत्य की परंपरा
तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का चतुर्थ सत्र दिनांक 30 /8 2/020 को अपराध 12:45 से 1:45 के मध्य ‘छत्तीसगढ़ में रामायण गायन एवं नृत्य की परंपरा’ विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रोफेसर गौरीदत्त शर्मा, कुलपति, अटल बिहारी बाजपेई विश्वविद्यालय, बिलासपुर सत्राध्यक्ष प्रोफ़ेसर देवीलाल तिवारी, कुलपति, बीके विश्वविद्यालय, आरा, मुख्य वक्ता लोक गायक एवं संस्कृति कर्मी श्री राकेश तिवारी जी रायपुर अतिथि वक्ता पंडित रामबली त्रिनिडाड रहे । इस सत्र का संचालन सुश्री सुभ्रा रजक, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर ने किया । यह सत्र गायन और वादन से परिपूर्ण था और रोचक भी । श्री राकेश तिवारी जी ने गायन और वादन से वातावरण आनंदमय बना दिया। सर्वप्रथम सत्र संचालक शुभ्रा रजक ने अतिथियों का परिचय कराने के बाद वक्ताओं को आमंत्रित किया ।
श्री राकेश तिवारी जी ने गीत गायन के साथ अपना कथन प्रारंभ किया। नवधा रामायण में लोक परंपरा में जो है उसे गीत में गाते हैं । दशरथ के घर बेटा जनमे चार रे
दशरथ के घर बेटा जनमे चार रे
सब खुशी मनाओ आए रे
नाचे सब नर नारी रे
राम भगवान के गीतों को कैसे चौपाई में गाते हैं? करमा गीत के
चोला बिन देखे तोला —– के गीत उन्होंने गाए
आगे उन्होंने बताया कि कैसे लोक परंपरा में हर चौपाई और गीत के बाद ,कैसे जयघोष करते हैं। लखन सिया बलराम चंद्र की जय। यहाँ राम- केवट संवाद ,भरत -राम मिलाप संवाद, सुग्रीव- राम संवाद आदि को लोकगीतों में कैसे गाया जाता है यह सस्वर वाचन कर बताये।
केवट भैया हमला नहका दे डोंगापार -3बार
यह प्रस्तुति सराहनीय रही।
दक्षिण कोसल में महावीर बजरंगी के ऊपर कई लोकगीत हैं। उनमें से कुछ लोक गीतों पर सस्वर वादन और गायन करके तिवारी जी ने सेमिनार को एक नई ऊर्जा प्रदान किए। उन्होंने बताया कि सारे लोकगीत राम प्रसंग के ऊपर है। इसके पहले चौपाई जोड़ दिए जाते हैं ।
एक निंदक धोबी के कारण
काबर दिए निसार हो सीता माई
दूसरा गीत
चल संगी देवता ल मनाबो
माया के फूल ल चढ़ाबो
चल बहिनी देवता ल मनाबो
चल संगी देवता ल मनाबो ।
विवाह संस्कार में रामचंद्र को दूल्हा और सीता को दुल्हन के रूप में देखा जाता है । उस समय भी गीत गाए जाते हैं ।
एक तेल चढ़गे गा
दो तेल मडवा म
राम और लखन के
एक तेल चढ़ेगे गा
ऐसे कर के सात तेल चढ़ते हैं। उन तेलों में उनके गीत गाए जाते हैं । हमारे संस्कार में राम हैं। पंडवानी, भरथरी, चंदैनी-गोंदा, लोकनाट्य नाचा, सब राम से प्रारंभ होते हैं। यहाँ तक साग सब्जी बनाने में भी राम का प्रसंग आता है।
का साग रांधे, समलिया-2
रमकेलिया म राम बिराजे
सेमी म सीतामाई।
ददरिया में राम-
राम धरे धनुष
लखन धरे बान।
आदि गीतों से इस सत्र को रोचक बनाए रखें और उनके गीतों के मर्म को भी बताते चले गए।
इसके बाद सत्र के अध्यक्ष के द्वारा कहा गया कि इतिहास में भगवान राम तो 7000 साल पहले हुआ। पर आज भी जितने भारत के हर व्यक्ति उन्हें जानता है, उतना किसी और को नहीं। जो गायन और वादन आदि में भी आते हैं। ऐसा वाल्मीकि जी के द्वारा उनके चरित्र को लिखा गया, होने के कारण है ।
आज उसका अनुवाद दुनिया में 300 भाषाओं में किया गया है। अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग भाषा में लिखा । रामलीला का मंचन किया गया । तब से यह जगह-जगह आयोजन होने लगा। तब से उसके भाइयों माताओं पिता सीता आदि के पात्रों परिचित रहे।
राम की मूर्तियाँ, चित्र, टेराकोटा आदि के अलावा लोकगीतों में भी राम और रामायण से संबंधित पात्र के ऊपर गीत बनते रहे हैं। बन रहे हैं और बनते रहेंगे । उसके बाद समयाभाव के कारण इस सत्र के होस्ट शुभ्रा रजक ने आभार प्रदर्शन कर, अध्यक्षीय भाषण के लिए ललित शर्मा जी को आमंत्रित किए। उन्होंने “सियाराम मय सब जग जानी “चौपाई से अपनी बातों को प्रारंभ करते हुए, उन्होंने कहा कि राकेश भैया ने इस सत्र को दिव्य बना दिया है। मैं उनके पीछे एक माह से पड़ा था कि वह अपना समय हमारे सेमिनार को दें ,और उन्होंने ऐसा समा बांधा कि सब भावविभोर हो गए।
पंचम सत्र : छत्तीसगढ़ में रामलीला की परंपरा एवं उसका प्रभाव
उसी तरह अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के पंचम सत्र दिनाँक 30/8/ 2020 को दोपहर 2:30 से 3:00 के मध्य “छत्तीसगढ़ में रामलीला की परंपरा एवं उसका प्रभाव” विषय पर वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसके सत्राध्यक्ष प्रोफेसर आशा शुक्ला, कुलपति, डॉ. बी. आर. अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू, मुख्य वक्ता डॉ विनय पाठक निदेशक पूर्व राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ अतिथि वक्ता डॉ मनोहर पुरी निदेशक स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र बाली इन इंडोनेशिया रहे । इस सत्र का संचालन डा. आनंद मूर्ति मिश्राजी, बस्तर विश्वविद्यालय, जगदलपुर ने किया।
इस सत्र के मुख्य वक्ता डॉ विनय पाठक ने कहा कि हमारे यहाँ राम, हमारा भांजा है। हम राम को अपना मानते हैं। हम लोग नवधा रामायण कराते हैं। 300 से 400 मंडलियाँ इस नवधा रामायण प्रतियोगिता में शामिल होते हैं। अलग-अलग मंडली अलग-अलग धुन में गाती हैं । ठाकुर छेदीलाल सिंह जी ने रावण को अंग्रेजों की तरह बनाते थे। सर्च लाइट से संदेश देते थे। अकलतरा में इस प्रकार का प्रयोग पहली बार हुआ भाटापारा में भी रामलीला होती है। बस्तर में तो 75 दिवसीय दशहरा उत्सव चलता है। रावण की प्रतिमा लगाकर, कई जगह रावण को मारने की प्रक्रिया होती है। इसे रावण भाटा कहते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग परंपराएँ हैं।
छत्तीसगढ़ में एक विशेष संप्रदाय है। जिसे रामनामी सतनामी कहते हैं। जो पूरे शरीर में राम नाम खुदवाए रहते हैं। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रोम-रोम में राम हैं। मैं कामना करता हूँ कि इस दिशा में काम करके विश्व में छत्तीसगढ़ का नाम को फैला सकते हैं। इस प्रकार बहुत सारी बातें करते हुए पाठक जी ने अपनी वाणी को विराम दिया, और आगे के लिए उन्होंने होस्ट को मंच सौपा ।
उन्होंने बताया कि किस प्रकार विनय पाठक जी ने अकलतरा, रावणभाठा राम मय है। खासकर मोहन मंडावी जी की चर्चा की। फिर उन्होंने सत्राध्यक्ष डॉ. आशा शुक्ला, कुलपति ,डॉ .बी. आर. अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू को अध्यक्षीय उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया। वे मध्यप्रदेश के मालवा में कुलपति हैं। उनकी 12 किताबें और 80 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हो गए हैं और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में वह अध्यक्षता कर चुके हैं। मैं सौभाग्यशाली हूँ कि आप से प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से शामिल रहा हूँ।
इसके बाद अध्यक्षीय उद्बोधन में श्रीमती शुक्ला ने कहा कि मेरे लिए यह प्रसन्नता का विषय है कि हमारे गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के तत्वाधान में इस प्रकार के अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है । यह इस वेबीनार का सातवां सत्र है। विनय पाठक और बाली के विद्वानों को मैंने सुना। जहाँ तक लोक गाथा और परंपरा में राम के बारे में हैं एक बार बाली में थी उस समय वहाँ के रामलीला के प्रत्यक्षदर्शी थी । श्री राम और उनकी लीला उनकी भक्ति भाव सुप्रसिद्ध थी । छत्तीसगढ़ में अभी भी मध्यप्रदेश अलग नहीं मानती। दोनों एक ही हैं । जिस संस्था के तहत वर्चुअल संगोष्ठी हो रही है यदि यहाँ होती है तो मैं विश्वविद्यालय से करना चाहूँगी।
छत्तीसगढ़ में अपनी भाषा में रामायण है। संस्कृत में रामायण हैं। पर लोक भाषाओं में भी रामायण हैं। आदर्श रामलीला बलौदा बाजार भाटापारा की रामलीला की चर्चा करना चाहूँगी। महिला सशक्तिकरण के रूप में इस रामलीला में महिला पात्रों को भी रखना चाहिए । मैं सोचती हूँ कि इन पात्रों को मौका मिलना ही चाहिए। रामलीला दशहरा के समय ना होकर होली के समय करना चाहिए।
रामलीला का प्रचार करना चाहिए और प्रस्ताव भी देना चाहिए । इंडोनेशिया में हर जगह रामचरित्र है। लीला में मुद्राओं में सब जगह श्रीराम की व्यापकता है। निश्चित रूप से कुछ न कुछ पुरातत्व अवशेष वहाँ होने चाहिए। राम की यात्रा करनी चाहिए। कौसल्या की यात्रा करनी चाहिए। मिथिला की यात्रा करना चाहिए । भौगोलिक स्थिति तैयार करनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ में राम को भाँचा कहा जाता है। इस तरह मैं भी सोचती हूँ कि उत्तर प्रदेश में भी भाँची-भाँचा से कुछ लेने का संस्कार नहीं है। देने का रिवाज है। यह सब संस्कृति चल रही है । मुझे लगता है कि धर्म पूजा की मामला है। सब को देखते हुए सरकार को इसकी बातें पहुँचाने चाहिए । इस कार्यक्रम में मुझे अवसर दिया, इसके लिए आपका धन्यवाद और आभार। इस प्रकार दूसरे दिन दिनाँक 30 /8 /2020 का तीसरे सत्र और उस दिन का आखिरी सत्र की समाप्ति हुई जिसमें राम की दक्षिण कोसल में रामकथा की व्याप्ति एवं प्रभाव पर 2 दिन तक व्यापक चर्चाएं होती रही।
सत्र रिपोर्टिंग