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राजगोंड़ समाज में राम

गोंड़ समाज में राम इस प्रकार व्याप्त हैं, जैसे हनुमान जी के अंदर श्री राम बसते है। अगर कोई अंतर है तो यह कि जिस प्रकार हनुमान जी श्राप के कारण अपनी याददास्त भूल जाते थे उसी प्रकार गोंड़ समाज श्रीराम को धारण करते हुए ही जीवन जीता है। पर जब तक उसे याद न दिलाया जाये कि आप सुबह से शाम तक जो एक दूसरे से राम राम और जय राम करते हो वही भगवान राम का स्मरण है। भगवान श्रीराम का भजन है। तब तक गोंड़ समाज हनुमान जी की तरह अपनी शक्ति खोकर इधर-उधर के भ्रमजाल में भटकता रहता है। ।

वास्तव में वर्ण के अनुसार गोंड़ समाज क्षत्रिय वर्ण है। जिसे राजगौंड़ कहा जाता था। जिसकी जीवनचर्या क्षत्रिय गुणों से परिपूर्ण है। एवं पारिवारिक और सामाजिक जीवन में श्रीराम को ही अपना आदर्श मानते हैं एवं उनके भजन भक्ति आराधना में श्रीराम चरित मानस पाठ रामायण आदि का पूरी श्रद्धा भाव से पठन-पाठन करते हैं।

गोंड़ समाज के लोगों का जब से राजाओं के समय का राजपाठ मुगलों और अंग्रेजों द्वारा छीना गया तब से धार्मिक एवं सामाजिक पतन हुआ। पर भारत देश के स्वतंत्र होने के बाद जब से उसको संवैधानिक दृष्टि से नामकरण कर अलग नाम दिये गये एवं बोलचाल में अन्य संबोधनों से परिचय दिया गया तब से गोंड़ जाति में अपने धार्मिक स्वभाव पर भ्रम होना प्रारंभ हुआ, जिसमें जो नया युवा वर्ग आता गया और बड़े बुजुर्ग धार्मिक प्रकृति के लोग समाज से खत्म होते गये।

इस प्रकार धार्मिक जानकारी से परिपक्व गोंड़ समाज के लोग आयु पूरी होने पर खत्म होते गये। जिनकी जानकारी संग्रह विरले लोगों के पास शेष बचता गया। इस प्रकार समाज में राम रोम-रोम में होने के उपरांत भी राम के प्रति भी भजन गायन के साथ श्रद्धा भाव का भी पतन हुआ।

गोंड़ समाज प्रथम महादेव या बड़ा देव को श्रद्धा भाव से पूजा करता है एवं नागदेव व शेष नाग की भी पूजा करते है। नागपंचमी को विशेष पूजा करते हैं। दूसरा भगवान विष्णु की पूजा नारायण देव या ठाकुर देव के रूप में करते हैं जो कि हर ग्राम में अश्विनी मास में श्रीगणेश चतुर्थी से विमान पालकी में विराजमान कर भगवान विष्णु की स्थापना कर पूजा करते है। एवं ग्राम में भजन करते हुए भगवान की शोभायात्रा निकालते हैं।

भगवान श्रीराम सूर्यवंश के इक्षवाकु वंश में पैदा हुए। जिनको सूर्यवंशी क्षत्रिय समाज कहा गया। गौंड़ समाज सूर्यवंशी, चंद्रवंशी और ऋषिवंशी क्षत्रियों में ऋषिवंषी क्षत्रिय हैं। जो युग अनुसार सूर्यवंशी में नागवंशी भी कहलायें। यह सभी क्षत्रिय समाज के ईश्वर भगवान को समान श्रद्धा भाव से साथ पूजता है।

इस प्रकार सतयुग का इतिहास गोंड़ समाज में मौजूद रहा जिसकी पूजा पद्धति मानते हुए समाज चलता रहा। समय अनुसार समाज में सबसे अधिक धार्मिक व सामाजिक मान्यता त्रेतायुग में भगवान श्रीराम अवतरण के युग की विद्यमान हैं। जिसमें गोंड़ समाज बड़ा देव-महादेवे वह हर संकट के निवारण के लिये यदि पूजा करता तो वो संकट मोचक हनुमान जी एवं दुर्गा खेर माई की पूजा करता है। जो कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति करता है।

सप्ताह में या शाम अथवा सुबह श्रावण मास अथवा धार्मिक मास रामनवमी नवरात्रि आदि के समय रामायण पाठ रामलीला खेल चरित्र आदि का ग्रामों में प्रदर्शन कर समाज के लोग लोककला का प्रदर्शन करते हैं।

गोंड़ समाज के गायन गीत भजन आदि में 75 से 80 गीत भजन भगवान श्रीराम के ऊपर गाये जाते हैं। महिलायें भी शादी गीत से लेकर श्रावण मास कार्तिक मास शिवरात्रि फाल्गुन चैत्र मास आदि सभी वार्षिक धार्मिक गीतों को भगवान राम और माता सीता के भक्ति गुणों में गाती हैं।

दशहरा, दीपावली आदि त्यौहारों भगवान राम के रामलीला चरित्र कार्यक्रमों के माध्यम से समाज धर्म के मार्ग पर चलने के शिक्षा समाज में फैलाता असत्य रूप रावण पर रामरूपी सत्य की जीत गोंड़ समाज हमेशा स्मरण रखता है। गोंड़ समाज में श्रीराम व्यवहारिक रूप से कैसे समाये हुए हैं। यह इस प्रकार समझा जा सकता है। गोंड़ समाज में पुरूष एवं नारी शक्ति आपस का राम-राम, जय राम, सीताराम करके सत्कार मिलने संबोधन पूर्व से करते आ रहे हैं।

सत्य बोलना पूरे समाज का वास्तविक व्यवहार है जो असत्य बोलता है। समाज में सबसे बुरा माना जाता है। समाज राजाराम चन्द्र की तरह राज्य की मान्यता है जो सत्य और ईमानदारी शक्ति के साथ अत्याचारों का निवारण करेगा वह शासक मान्य होगा। छल, कपट, झूठ, फरेब, और राक्षसी कृत्य समाज मान्य नहीं करता।

समाज में ग्राम प्रमुख अपने को किसी अयोग्य अथवा निम्न श्रेणी के व्यक्ति के अधीन रखना मान्य नहीं करता। धर्म के प्रति श्रद्धा वचन का पालन करना गोंड़ समाज आज भी कायम है। जो कि इस वाक्य से संबंध रखता है। कि रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जायें पर वचन न जाई। इस प्रकार गोंड़ समाज भी भगवान श्रीराम के इस गुण पर चलता आ रहा है। जिसका वचन भी खाली नहीं जाता है।

भगवान श्रीराम के वनवास के समय जो वनफल कंद मूल भगवान ने खाये थे एवं अपना चौदह वर्ष का वनवास वनों में बिताया था उसी प्रकार उन्हीं वनफलों को कंदमूल आदि को गोंड़ समाज आज भी भोजन के रूप में खा रहा है एवं जिस प्रकार कष्ट प्रद जीवन भगवान ने जिया उससे शिक्षा लेकर गोंड़ समाज आज अपना सम्पूर्ण जीवन श्रीराम को आदर्श मानते हुए वनों में पहाड़ों में जीता जा रहा है।

भगवान श्री राम को वनवासी समाज ने वीर हनुमान को दिया, वीर वानर राज सुग्रीव को खिलाया, माता सबरी आदि सभी गोंड़ समाज के मजबूत रक्षक आदर्श हैं। गोंड़ समाज बोलता नहीं पर आचरण व्यवहार से अपने तथ्य प्रकट करता है देव संस्कृति सनातन धर्म संस्कृति, वैदिक संस्कृति गोंड़ समाज की मूल संस्कृति है। जो कि भगवान श्रीराम को समाज में आदर्श ईश्वर मानने से वर्षों से संरक्षित चली आ रही है।

परिवार जिस प्रकार भगवान श्रीराम के भाई आपस में एक रहकर समाज और परिवार में एक रूप रहे उसी प्रकार गोंड़ समाज भी संयुक्त परिवार समाज और रिश्तों में आज भी अन्य समाज से अधिक ज्यादा बंधा हुआ है। यदि देखा जाये तो आज के आधुनिक युग में यदि सत्य धर्म संस्कृति भगवान श्रीराम के प्रति यदि कोई सच्ची श्रद्धा भक्ति देखने की मिलती है तो वो गोंड़ (राजगोंड़) समाज में देखने में मिलती है।

आलेख
लेखकः श्री अर्जुन मरकाम

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