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भारतीय संस्कृति में गोमय का महत्व

छत्तीसगढ़ में दीपावली पर गौमय से आंगन लीपने की परम्परा है, माना जाता है कि गोबर से लिपे पुते घर आंगन में लक्ष्मी का आगमन होता है। गाय को गौधन कहा जाता है तथा उसके मूत्र, गोबर, घी, दूध, दही को पंचगव्य कहा गया है। गाय के पंच गव्य से घर भरा रहता है और गृहवासी को उससे शारीरिक लाभ होता है इसलिए गाय को लक्ष्मी कहा जाता है।

गौ रुपी लक्ष्मी की सेवा दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा के रुप में की जाती है। गौधन को नहला धुलाकर सजाया जाता है, उन्हें खिचड़ी खिलाई जाती है तथा गौपालक भी उस खिचड़ी को प्रसाद के रुप में ग्रहण करता है, इसके बाद गौधन को सुहाई (सुंदर हार) बांधी जाती है। इसलिए दीपावली पूजन में गाय का अत्यधिक महत्व है। गाय के गोबर और मूत्र से मनुष्य आरोग्य को प्राप्त करता है, प्रस्तुत है इस विषय पर डॉ गायत्री दीक्षित का सारगर्भित आलेख।

प्राचीनकाल से ही प्रत्येक गृहस्थ का घर आँगन व रसोई में गोबर का लेप किया जाता था। यही नहीं हर त्यौहार व शुभ मांगलिक अवसर पर गोबर से भूमि लीपना जरूरी किया जाता था। कहा भी गया है कि “गोमयेन भूमिमुपलिप्य” ..घर आंगन को परिमार्जित संस्कारित करने के लिए…।

गोबर विविध मेडिसिनल ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल का असमांगी मिश्रण है। गाय के गोबर में एंटीबैक्टीरियल एंटी माइट बहुत से गंदगी नाशक ऑर्गेनिक कंपाउंड पाए जाते हैं। इसीलिए हमारे पूर्वजों ने लेपन घर के परिमार्जन के लिए गाय के गोबर का चयन किया यह एक वैज्ञानिक बोध था जो परंपरा से चला आ रहा था । वैदिक कर्मकांड के ग्रंथों में भी यज्ञ वेदी को गोमय से लीपने का निर्देश मिलता है।

आज शहरी संस्कृति में कच्चा स्थान ढूंढने से भी दिखाई नहीं देता फिर भी सोसाइटी पार्क में ऐसा स्थान आसानी से उपलब्ध हो जाता है वहां दीपावली होली जैसे पर्व पर गाय के गोबर का लेपन करने के पश्चात यज्ञ अनुष्ठान जप प्राणायाम करना चाहिए इससे हमारी संस्कृति जीवित रहेगी…

पहले तथा आज भी गांवों में महीने के प्रत्येक 15 दिवस के अंतराल पर पूरे घर को गाय के गोबर से लीपा जाता था। माताएं बहने कुशल कलाकार थी हाथों से बहुत सुंदर पैटर्न चित्र चौके में दिखाई देते थे। रोबोटिक आर्म से भी इतना सुंदर पैटर्न नहीं बन सकता जितना वह अपने हाथों से बना देती थी।

गोबर के लेपन से असंख्य संक्रमक बीमारियां घर में प्रवेश नहीं कर पाती थी। आज हमारे पक्के नवीन सीलन से युक्त मकान बैक्टीरिया वायरस फगसं के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन गए हैं। पक्के मकानों को गोबर से नहीं लीपा जा सकता लेकिन गाय के सूखे गोबर पर गूगल पीली सरसों गाय के घी की धूनी घर में की जा सकती है, इससे भी वही लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।

गाय के गोबर में कई गुण विद्यमान हैं। गाय के दूध-घी और यहाँ तक कि गौमूत्र के भी सामान्य व औषधीय गुण उपयोग बहुत प्रसिद्ध व प्रचलित हैं, किन्तु गाय के गोबर के विषय में ईंधन से अधिक कोई उपयोग आमजन में नहीं बताया जाता है। गाय के गोबर के औषधीय उपयोग आयुर्वेद व अन्य ग्रंथों में कहे गये हैं, शायद इसीलिये गाय के गोबर को “गोमय” नाम दिया गया है।

गाय के गोबर में जीवाणु नाशक व विषाणुहर शक्ति विद्यमान है। आधुनिक विज्ञान ने भी गोबर के इस गुण को माना है। रोगों के कीटाणु व दूषित गन्ध को नष्ट करने में गोबर अद्वितीय है, यहाँ तक कि भीषण रोगकारक बैक्टीरिया-वायरस के लिए तो गोबर यमराज के तुल्य है। इसी गुण के कारण कुछ वर्षों पूर्व इटली के वैज्ञानिकों ने एक शोध में कहा था कि टीबी सेनिटोरियम में कम से कम एक हिस्सा तो गोबर से लीपा हुआ रखा जाये तो टीबी कीटाणु अपेक्षाकृत तेजी से नष्ट होते हैं।

गोबर दूषित गंध को दूर करने में बेहतरीन फिनायल से भी अधिक गुणकारी है। विभिन्न गोसेवा केन्द्र गोबर व गौमूत्र से निर्मित फ्लोर क्लीनर, शैम्पू, साबुन, धूपबत्ती, अगरबत्ती इत्यादि बना रहे हैं। ये उत्पाद वाकई तुलनात्मक रूप से लाभप्रद साबित भी हो रहे हैं।

गोमय के औषधीय प्रयोग:-
१. अत्यधिक पसीना आने की दशा में सूखे गोबर का चूर्ण शरीर पर मसल कर थोड़ी देर बाद स्नान करने से धीरे धीरे अतिस्वेद में लाभ होता है।
२. शीतला के प्रकोप में गाय के गोबर को जला कर बनाई राख को रोगी के नीचे बिछाने से आराम मिलता है।
३. ताजा गोबर का कपड़े से दबा-निचो कर निकाला हुआ रस तीन चार बूँद सुबह शाम आँखों में डालने से रतौंधी में लाभ मिलता है।
४. बच्चों के पेट के कीड़ों में गाय के गोबर की राख को छान कर दस गुना पानी में घोलकर दो तीन घूँट करके दिन में कई बार पिलाने से कीड़े नष्ट होते हैं।
५. कुत्ता-बंदर आदि के काटने से हुए घाव पर तिनका आदि हटाया हुआ गोबर सुहाता गर्म करके लगाने से पीड़ा दूर होती है।
६. पुराने दाद पर सूखे गोबर के कण्डे से रगड़कर -खुजाने से दाद मिटता है।
७. करंट लगने से कई बार स्थानिक या सार्वदैहिक रक्तप्रवाह रुक जाता है, ऐसी स्थिति में गोबर की राख मलने से रक्तप्रवाह सुचारू होने लगता है।
८. सूखी खुजली में दस ग्राम नीला थोथा, पचास ग्राम के लगभग ताजा गोबर में दबा कर सुखाने के बाद जलाकर राख बना लेना चाहिए। इस राख में दस दस ग्राम राल, सिन्दूर, देसी मोम व सज्जी पीसकर, गौघृत आवश्यकतानुसार मिला कर मलहम बना लेना चाहिए। यह मलहम खुजली, फोड़े फुन्सी, नासूर इत्यादि में लाभप्रद है।
९. कुष्ठरोग में गोबर रस, काली मिर्च, निशोथ, मुस्ता, जटामांसी, लालचंदन, इंद्रायणमूल, कूठ, हल्दी, दारूहल्दी, अर्क दूध, हरताल, मैनसिल- सबको पीसकर चटनीनुमा बनाकर एक किलो तिल के तेल में दो किलो ताजा गौमूत्र के साथ डालकर पकाना चाहिए। जब तेल मात्र शेष रहे तब उतार कर छान लेना चाहिए। इसे सुबह शाम लगाने से कुष्ठ, खाज, दाद, फोड़े आदि सभी में लाभ होता है।
१०. गोबर व गौमूत्र से निर्मित साबुन, शैम्पू आदि त्वचारोग नाशक हैं।

पंचगव्य:-
विभिन्न धर्मग्रंथों में पवित्र पंचगव्य बताया गया है, इस पंचगव्य में एक भाग गौघृत, एक भाग गौमूत्र, दो भाग दही, तीन भाग गौदुग्ध व आधा भाग गोमय होता है। पंचगव्य को विशेष प्रभावी बनाने के लिए विशिष्ट गाय तथा विशिष्ट मंत्रों का भी उल्लेख है।

स्पष्ट है कि गोबर कण्डों व बायोगैस के रूप में ईंधनोपयोगी तो है ही, साथ ही इसके कण्डों को जलाने से निकलने वाला धुँआ घी के संयोग से हानिकारक जीवाणु नष्ट करता है। इसी प्रकार यह औषधीय रूप में भी अत्यन्त हितकारी है।

एक अनुमान के तौर पर एक गाय प्रतिवर्ष ३५०० किलो गोबर, २००० लीटर गौमूत्र, ४५०० घनफीट बायोगैस, १०० टन जैविक खाद प्रदान करती है। जैविक खाद से फसल में भी २० से ३०% तक उत्पादन में वृद्धि होती है। गौदुग्ध, दही, गौघृत, गौमूत्र आदि के गुणों से तो हम अक्सर परिचित होते रहें हैं पर गोबर भी बड़े काम की चीज है।

आलेख

डॉ गायत्री दीक्षित

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