महकती बगिया है यहां के प्रत्येक त्योहारों का अपना अलग ही महत्व है। बारहों महीने मनाए जाने वाले स्थानीय लोक पर्व तीज त्योहारों के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर पूरे देश भर में मनाएं जाने वाले प्रमुख त्योहारों जैसे रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, दशहरा, होली आदि को भी यहां उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। इन त्योहारों को मनाने की प्रक्रिया में छत्तीसगढ़ का अपना मौलिक रूप होता हैl
इन त्यौहारों में एकता भाईचारे की भावना ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, जात-पात के भेदभाव से दूर आपसी प्रेम व्यवहार और पारिवारिक संबंधों में मधुरता स्पष्ट झलकती है। लोक संस्कृति लोक जीवन की धरोहर होती है। ऐसा कोई महीना या दिन नहीं है जिसमें कोई पर्व ना हो, हमारा छत्तीसगढ़ तीज त्योहारों पर्वों उत्सवों का गढ़ है। तीज त्यौहार हमारी महान संस्कृति को उजागर करते हैं। हमारे जीवन में उमंग उल्लास भरते है, ऐसा ही एक पर्व है दीपावली, जिसे देवारी तिहार भी कहा जाता है।
दीपावली पर्व भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में भी पाँच दिनों तक यह पर्व धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है। छत्तीसगढ़ की अधिकांश संस्कृति एवं परंपरा कृषि संस्कृति पर आधारित है। छत्तीसगढ़ की मुख्य फसल धान है।
धान के कटोरा के नाम से जग प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ में धान को अन्नपूर्णा के रूप में प्रतिष्ठित कर पग पग में पूजन वंदन किया जाता है। छत्तीसगढ़ में दीपावली त्यौहार विशेषकर गाँव में देखते ही बनता है। दशहरे के बाद लगातार दीपावली की तैयारी प्रतिदिन की जाती हैं। गाँव में आज भी कच्चे व पक्के मकान हैं। घरों की छबाई मिट्टी से व छूही से पुताई की जाती है। सात-आठ दिन पहले महिलाएं, लड़कियाँ, घर-घर जाकर सुवा गीत गाती है।
तरी हरी ना ना ,नाना सुवाना ,तरी हरी ना ना नाना…
देवा ले महादेवा बड़े
तिरया में नोनी पार्वती
बीर हनुमान
बिनती ल हमरो सुनो रे भाई।
ओ जंगल म दीदी
आग लगे
डारा पतेवाँ में
दु ठन पिलवा ओ दीदी
जंगल में आग लगे…
दूसरे घर जाने के पहले सुवागीत के माध्यम से बिदाई इस प्रकार माँगा जाता है ।
ताला भई ताला
पीतल के ताला
जल्दी बिदा कर दे
जाबोन दूसर पारा।
घरों से चावल, पैसा दान के रुप में प्राप्त होने पर सुवा नाचने वाले महिलाएं आशीष देती है। बेटवा न बेटवा तोर घर भर न रे सुवा न फेर अइसन ल देबो आशीष।
धनतेरस- दीपावली का प्रारंभ धनतेरस के दिन से हो जाता है। धनतेरस के दिन वस्तुओं का खरीदना शुभ माना जाता है ।इस दिन बाजार भी बहुत भीड़-भाड़ रहता है ।लोग सोना चांदी खरीदते हैं। इस दिन अपने-अपने घरों में तेरह दीपक जलाया जाता है। छत्तीसगढ़ में आस्था के दीप धनतेरस से प्रारंभ हो जाते हैं। जीवन में सुख समृद्धि की मंगल इसी दिन से हो जाती है।
नरक चौदस- धनतेरस की तरह नरक चौदस का भी अपना अलग ही महत्व है। इस दिन लोग मिठाई कपड़ा फटाका के साथ-साथ गणेश भगवान ,लक्ष्मी माता के फोटो खरीदते हैं । इस दिन भी मिट्टी के दीप घर -आंगन कोठा, बारी, पठेरा में जलाया जाता है।
लक्ष्मी पूजन – धान के कटोरा ले जग प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ में लक्ष्मी पूजन को सुरहोती भी कहा जाता है ।इस दिन को लक्ष्मी पूजा भी कहा जाता है ।इस दिन मुख्य पूजा माता लक्ष्मी की होती है ।इस दिन गली खोर घर आंगन से लेकर दैनिक जीवन में उपयोग आने वाली प्रत्येक वस्तुओं में दीप जलाए जाते हैं। इस दिन बच्चे नए कपड़े पहने उत्साहित नजर आते हैं। घर के सभी सदस्यों द्वारा नए कपड़े पहन कर लक्ष्मी माता की धूमधाम के साथ पूजा किया जाता है। यह त्यौहार दीप से दीप जलाने का त्यौहार है ।यह त्यौहार आपसी वैमनस्य को भूलकर आपस में प्यार बांटने का त्यौहार है। इस दिन पूजा पाठ के बाद कुटुम परिवार पड़ोस के घर में मिठाई बांट- बांट के एक दूसरे को बधाई देते हैं।
गोवर्धन पूजा- इस दिन गोवर्धन पूजा किया जाता है। यह दिन यादवों के लिए खास होता है। इसी दिन श्री कृष्ण के द्वारा, गोवर्धन पर्वत धारण करके लोगों की रक्षा किया था। इसी कारण उनकी स्मृति में गोवर्धन की पूजा की जाती है।
मातर :- मातर पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है ।इसी दिन भाई दूज का त्यौहार भी होता है। मातर मतलब माताओं का पर्व, देखा जाए तो यह त्यौहार गाय चराने वाले यादवों का प्रमुख पर्व है। लेकिन गाँव में सभी लोग मिलजुलकर हंसी खुशी के साथ मनाते हैं ग्राम डाभा के रंगी यादव ने बताया कि मातर के दिन सुबह और रउत और रौताइन अपने-अपने घर द्वार को स्वच्छ रखते हैं। यादव समाज के लोग सूर्योदय के पहले अपने देवता का पूजा -पाठ व हूम देते हैं ।तत्पश्चात बाजे गाजे मोहरी दफड़ा के साथ घर से दोहा (लगाते) पारते हैं –
पूजा करे पुजेरी भइया,अउ धोवा चंउर चढ़ाय।
पूजा परत हे मोर देवता के, लइया छोर मताय।।
कुकरी लेबे ते चिगरी देवता, अउ लेबे लहू के धार
मे तो जात होरे मातर मे, तोला लगे घर के भार।।
इस प्रकार दोहा लगाते नाचते कूदते गोठान या सहाड़ा जाते हैं। साथ में गाँव के लोग भी जाते हैं। वहां खोडहर गडाया जाता है। इसके बाद यादव लोग नाचते कूदते दोहा लगाते गाँव के कंधई मडई को लाने जाते हैं, कंधई मडई को सहडा में बांध दिया जाता है। गायों भैंसों का पूजा पाठ कर सोहाई बांधा जाता है। जब सोहाई बांधा जाता है, वह समय यह दोहा बोलते हैं ।
नंदबाबा बाबा के नौ लाख गइया अउ गली म दूध दुहाय।
दूध दही के पूरा बोहाय रे लेवना के पार बंधाये ।।
मातर के दिन कम्हडा ढुलाने का अपना अलग ही महत्त्व है। गायों व भैंसों के खुरो से कुम्हड़ा फोडते हैं। घासी यादव ने बताया कि जब खीर का प्रसाद बनाया जाता है तो उसमें कुछ कुम्हडा भी मिलाया जाता है। इसके बिना प्रसाद नही बनता हैं। मातर के दिन यादव लोग घोती, जूता, मोजा और मोजे के ऊपर घुघरु पहनते हैं, पगडी बांधते हैं और पगड़ी में कलगी खोचते हैं। हाथ में रंग बिरंगी सजी हुई लाठी पकड़ते हैं। इस दिन नये कपड़ा धारण करते हैं। इस कारण बेहद आकर्षण का केन्द्र बना रहते है। लाठी यादवो के शौर्य का प्रतीक हैं।
वाद्य यंत्र बजता हैं। यादव लोग नाचते _कूदते हैं।अरे र..र..ऱ..शब्दो के आवाज से वाद्य यंत्र बंद हो जाता हैं। इसके बाद अरे र..र..र कहने वाले यादव दोहा लगाते है।
देवा ले महादेवा बड़े, अउ बीरा में हनुमान ।
भक्तन बड़े अजुन रे, रथ हाके भगवान ।।
दोहा पूर्ण होने पर सभी नाचते हैं और दफ़ड़ा बाजा, मोहरी उच्च स्वर में बजता है। जिस भी यादवो को दोहा लगाना होता है उसे पहले अरे र..ऱ..र कहना पड़ता हैं। फ़िर दोहा लगाता है। इस प्रकार दोहा का दौर के नाच चलता रहता हैं।
जय महमाई मोहबा के, अखड़ा के गुरु बैताल ।
चौसठ जोगनी पुरखा के, पूजा म लगे सहाय।।
गाय गरु के सेवा करके, किसान से लेबो धान ।
पहली सुमरिहां कान्हा ल, दसर म मालिक किसान।।
मथुरा गोकुल वृदावन के, धूर अबड़ पबरीत होय ।
उड उड परै शरीर म, बाढ़य मया पिरीत हो। ।
लंका के रावण मरे, मथुरा के कंस ।
साधु संत के निंदा करे, ओखर नई बाचे बंस।।
ए पार नदी ओपार नदी, बीच म खोरी गाय।
ठाकुर बिचारा सुते ल भुलागे ,बेदरा दुंहे गाय।।
आज कल मातर का कार्यक्रम वृहद रुप लेता जा रहा हैं। कई कई गाँवो में भव्य अखाडा भी होता है। रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी होता है। ग्रामीण लोग बड़े उमंग ,उत्साह के साथ कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी देते है। यह कार्यक्रम दिनभर चलता रहता है। उत्सव के समापन के समय खीर प्रसाद का वितरण किया जाता है।
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अब्बड़ सुग्घर आलेख बधाई भईया💐💐💐💐💐💐💐💐