इतिहास साक्षी है कि पुण्यभूमि भारत की गाथा सहस्त्रों वर्षों के कठोर संघर्ष की गौरव गाथा है। इस शांतिप्रिय देश पर निरंतर कुठाराघात होने के कारण यहाँ के जनमानस में घोर निराशा छा गई थी। भारतवासियों का स्वाभिमान सो गया था, यह देश अपना गौरवशाली इतिहास, अपनी महान संस्कृति, अस्तित्व …
Read More »स्वामी विवेकानन्द की धर्म की अवधारणा
12 जनवरी युवा दिवस विशेष आलेख ‘उठो! जागो!…और लक्ष्य प्राप्ति तक रूको मत!‘ भारत की आध्यात्मिक शक्ति, सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का गौरव विश्वभर में स्थापित करते हुए मानवता के कल्याण और राष्ट्र पुनरूत्थान के प्रति जीवन समर्पित कर देने वाले युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द का यह हृदयभेदी आह्वान …
Read More »भारतीय सांस्कृतिक गौरव पर चिन्तन का माह है दिसम्बर
‘उठो! जागो!…और लक्ष्य प्राप्ति तक रूको मत!‘ भारत की आध्यात्मिक शक्ति, सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का गौरव विश्वभर में स्थापित करते हुए मानवता के कल्याण और राष्ट्र पुनरूत्थान के प्रति जीवन समर्पित कर देने वाले युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द का यह हृदयभेदी आह्वान आज भी युवा पीढ़ी को प्रेरणा …
Read More »विश्व हितैषी स्वामी विवेकानन्द
11 सितम्बर, 1893 विश्वबंधुत्व दिवस विशेष आलेख अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।उदारचरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम् ॥ (महोपनिषद्, अध्याय ६, मंत्र ७१)यह नीति वाक्य सदियों से हमारी प्राचीन सनातन संस्कृति और भारतवर्ष के श्रेष्ठ चरित्र का परिचायक है। विश्व के इतिहास में एक स्वर्णिम कालखण्ड ऐसा भी रहा है जब भारत …
Read More »अमृत काल में स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता – पुस्तक चर्चा
अपने शीर्षक “अमृत काल में स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता” के अनुसार यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद के कार्य और विचारों पर आधारित है, जो आधुनिक भारत के लिए अमृत कल में मार्गदर्शन का कार्य करेगी। इस पुस्तक के माध्यम से जहाँ एक ओर अपने पाठकों को “स्वामी विवेकानंद के जागृत भारत …
Read More »भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पथप्रदर्शक
भारतीय इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटना भारत की स्वतंत्रता है। जो ब्रिटिश शासन के विरूद्ध एक अत्यंत कठिन और लंबी लड़ाई का अंत था। स्वतंत्रता किसी भी देश के नागरिकों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप कार्य कर अपनी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं शिक्षा इत्यादि सभी क्षेत्रों में सर्वांगीण …
Read More »राष्ट्रीय एकात्मता का प्रतीक : विवेकानन्द शिला स्मारक
स्वामी विवेकानन्द ने 19 मार्च, 1894 को स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखे पत्र में कहा था – “भारत के अंतिम छोर पर स्थित शिला पर बैठकर मेरे मन में एक योजना का उदय हुआ- मान लें कि कुछ निःस्वार्थ सन्यासी, जो दूसरों के लिए कुछ अच्छा करने की इच्छा रखते हैं, …
Read More »भारतवर्ष का शाश्वत प्रतीक – स्वामी विवेकानन्द
“मेरा विश्वास आधुनिक पीढ़ी में है, युवा पीढ़ी में है, इन्हीं में से मेरे कार्यकर्ता निकलेंगे जो सिंह की तरह हर समस्या का समाधान कर देंगे।” – स्वामी विवेकानन्द स्वामी विवेकानन्द ‘आयु में कम, किन्तु ज्ञान में असीम थे’। मात्र 39 वर्ष के अपने जीवन काल में स्वामीजी ने विश्वभर …
Read More »वासंती माटी पर खिले भारत की स्वाधीनता के पुष्प
(आजादी के अमृत महोत्सव पर विशेष आलेख) प्रसिद्ध इतिहासकार ई. एच. कार ने कहा था-“इतिहास वर्तमान काल और भूत काल के बीच एक निरंतर संवाद है। इतिहास का दोहरा काम मनुष्य को अतीत के समाज को समझने और वर्तमान समाज के अपने ज्ञान को बढ़ाने में सक्षम बनाना है।” इतिहासकार …
Read More »संसार को भारत के ‘स्व’ से परिचित कराने वाले स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद ऐसे संन्यासी हैं, जिन्होंने हिमालय की कंदराओं में जाकर स्वयं के मोक्ष के प्रयास नहीं किये बल्कि भारत के उत्थान के लिए अपना जीवन खपा दिया। विश्व धर्म सम्मलेन के मंच से दुनिया को भारत के ‘स्व’ से परिचित कराने का सामर्थ्य स्वामी विवेकानंद में ही था, क्योंकि …
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