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मानचित्र : दक्षिण कोसल

दक्षिण कोसल : कल और आज -1

पृथ्वी की उत्पत्ति के उपरांत ही देश, काल के अनुसार ही दुनिया भर में स्थानों के नाम समय-समय पर बदलते रहे है। हमारे लेख का विषय छत्तीसगढ़, जिसे दक्षिण कोसल का नाम इतिहासकार देते हैं और आज भी दक्षिण कोसल ही छत्तीसगढ़ क्षेत्र की पहचान के रूप में मान्य है।

रामायण, महाभारत, रघुवंश आदि ग्रंथों में उल्लेखित कोसल में आज के अयोध्या सहित छत्तीसगढ़ का क्षेत्र भी शामिल है। इस तथ्य के विपरीत मात्र 1114 ई. को रतनपुर से प्राप्त शिलालेख में ही दक्षिण कोसल का नाम उल्लेखित है। अन्यथा पूरे इतिहास में उपरोक्त क्षेत्र को कोसल के नाम से जाना-माना गया है।

आधुनिक इतिहासकार तथा लेखक जब महाकोसल व दक्षिण कोसल नाम का प्रयोग करते हैं, ऐसे में भ्रम यह उत्पन्न होता है कि वास्तव में महाकोसल या दक्षिण कोसल अलग-अलग क्षेत्र तो नहीं! अब यहां यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि अंग्रेज़ इतिहासकारों ने अपने राजकाज की सुविधा की दृष्टि से दक्षिण एशिया के इस महाद्वीपीय भूखंड़ के ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ किया।

पुरातन विद्वान एवं मनीषियों वाल्मीकि, पाणिनी, कालिदास आदि ने अपनी कृतियों और रचनाओं में कोसल का उल्लेख किया है वास्तव में वह एक विस्तृत भू-भाग का संकेत करता है। इस भू-भाग में अयोध्या से ले कर वर्तमान मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्कल (वर्तमान ओडिशा), आंध्रप्रदेश सहित सुदूर विशाखापट्टनम शामिल माना जाता है।

वर्तमान परिदृश्य में उत्तर कोसल के नाम को दिशासूचक बोध मानने पर संपूर्ण कोसल संपूर्ण छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्र कोसल अथवा महाकोसल की संज्ञा की प्रतीति होती है। इसमें अधिक प्रामाणिक तथ्य हम पौराणिक आख्यान रामायण को यदि लें तो राजा दशरथ की रानी कौशल्या की जन्मस्थली राजधानी रायपुर क्षेत्र अर्थात कोसल प्रदेश है।

इस राज्य का नाम कौशल्या के नाम पर ही कोसल पड़ा था। उत्तर और दक्षिण कोसल का विभ्रम मात्र इतिहासकारों के उन दावों का प्रतिफल है जिसमें वे पौराणिक महत्व के स्थानों को किसी स्थान विशेष से जोड़ने का प्रयास करते दिखते हैं। तथ्यों को खंगाला जाए तो सामने आता है कि छत्तीसगढ़ अपने जन्मकाल से ही कोसल प्रदेश के रूप में चिन्हित रहा।

दक्षिण कोसल नाम कलचुरियों के शासन काल में पड़ा। इस तथ्य को प्रामाणिक मान कर अंग्रेज़ पुरातत्वविद कनिंघम ने आगे बढ़ाया और इतिहास का लेखन किया, जो कि अंग्रेज़ों के लिए भी सुविधाजनक ही था। यह इस लिहाज से उपयोगी साबित हुआ कि वे पूरे क्षेत्र का मापन कर भू-राजस्व संग्रहण के लिए मानकीकरण एक मानचित्र तैयार करें। क्रमशः

 

आलेख

प्रभात मिश्र, रायपुर 9424190101, 7999567345

 

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