रामनामी समाज एक बड़ा सम्प्रदाय है जो छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुख्यतः रायगढ़ ,सारंगढ़ ,बिलाईगढ़ , कसडोल , जांजगीर, बिलासपुर, जैजैपुर, मालखरौदा, चंद्रपुर, पामगढ़, नवागढ़, अकलतरा के सुदूर अंचल से शहर तक निवासरत हैं। रामनामी समाज की आबादी लगभग 5 लाख होगी जो 300 गांव से अधिक गांवों में निवास करते है
असल में रामनामी कौन है ? सतनामी कौन हैं ? रामनामी और सतनामी एक ही सम्प्रदाय और एक ही जाति के हैं जो वर्तमान में अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं। निराकार राम को जपने वाले रामनामी हैं और बाबा गुरुघासी दास जी के अनुयायी सतनामी है।
दोनों के वस्त्र सफेद होते है पर रामनामी अपने तन के साथ साथ वस्त्र में भी राम का नाम लिखते है दोनों का खान पान समान होता है रहन सहन भी एक होता है। आजादी के पूर्व इस समाज को बहुत कष्ट झेलने पड़े थे अन्य सम्प्रदाय के लोग इन्हें अछूत जाति कहते थे।
रामनामी सम्प्रदाय एक बड़ा समाज है। इस सम्प्रदाय की एक अलग पहचान है जो निराकार राम के साधक हैं जिनके रोम – रोम में वह राम बसा है जो निराकार, निर्गुण है जिसकी साधना करना सबकी बस की बात नहीं है। रामनामी संप्रदाय उस निराकार की भक्ति करते हैं जो निर्गुण है।
एक वक्त ऐसा भी आया ( रामनामी समाज के वरिष्ठ रामनामी जैसा अवगत कराते है और कहते हैं ) कि भटगांव के दीवान रहे लाल लक्ष्मण सिंह ने रामनामी समाज पर आरोप लगाते हुए केस दर्ज करवा दिया कि रामनामी समाज अयोध्या के राम को जपते हैं क्योंकि उस समय रामनामी समाज को अछूत जाति और उनसे भेद भाव रखते थे, प्रताड़ित थे उनका मन्दिरो पर आना जाना पर रोक था।
कई वर्ष तक ये केस चला अंत में रामनामी समाज की जीत हुई। उसी समय रामनामी सम्प्रदाय समाज ने कहा कि हम जिस राम को जपते हैं हमारे रोम-रोम में जिसका नाम है वह राम निराकार निर्गुण है, न कि अयोध्या की राम है। तब जाकर भटगांव के दीवान को मुह की खानी पड़ी।
अयोध्या के राम को लेकर भटगांव दीवान ने जो रामनामी समाज के साथ उस समय भेद भाव रखा था वह न्याय संगत नही था। वर्ण ब्यवस्था के आधार पर जो शुद्र वर्ण में आते थे उन्हें हेय की दृष्टि की नजर से देखा जाता था उनके साथ अन्याय होता रहा, आज भी गाहे बगाहे देखने सुनने को मिल ही जाता है।
वरिष्ठ साहित्यकार जयप्रकाश मानस ने सोसल मीडिया फेस बुक में लिखा हैं कि छत्तीसगढ़ के जांजगीर – चांपा जिले के एक छोटे से गांव चारपारा में एक दलित युवक परशुराम दुवारा 1890 के आस-पास स्थापित रामनामी सम्प्रदाय को जहां भक्ति आंदोलन से जोड़ा, वही दलित आंदोलन से भी इसका गहरा जुड़ाव है। अछूत और जाति प्रथा के खिलाफ इस सम्प्रदाय का उदय हुआ।
उनके इस लेख से साफ जाहिर होता है कि रामनामी सम्प्रदाय समाज उस समय प्रताड़ना से जूझ रहा था। आखिर कौन है परशु राम? परशुराम को को जाने और समझे? अखिल भारतीय रामनामी समाज भजन मेला के संगठन मंत्री श्री अवधराम मधुकर से हुई मेरी बात चीत की संक्षेप अंश –
72 वर्षीय अवधराम मधुकर जी कहते हैं कि 1908-09 में रायगढ़ बोतलदा पहाड़ की ओर से जांजगीर – चांपा जिला के गांव चारपारा में एक संत आया वहां परशुराम भारदुवाज बाबा से उस सन्त का मुलाकात हुआ दोनों में बात चीत हुई उस सन्त ने कहा कि यहां राम राम कौन जपता है?
उस संत ने बाबा को कहा राम के नाम को मस्तक में धारण कर लो और कुछ बातें हुईं कुछ देर बाद सन्त उठकर चले गए, बाबा परशुराम इधर उधर देखे पर संत कंही न दिखे। तब से बाबा परशुराम राम-राम जपने लगे। राम-राम का अपने गांव और आस पास पूरे अंचल में प्रचार-प्रसार करने लगे।
बाबा परशुराम और उनके साथी नाव में बैठ कर नदी पार कर रहे थे तो नाव का नियंत्रण खो गया तब राम राम जप किये और नदी पार हो गए। इस पल से उनका आस्था उस जप में और बढ़ गई और पूरे अंचल में प्रचार प्रसार होने लगा। रतिराम और बाबा परशुराम समधी थे दोनों प्रचार प्रसार में जुट गए।
वे आस पास गांव में प्रचार करते थे 1911 में उनके प्रचार का रूप दिखा और ग्राम पिरदा में भजन मेला का पहला आयोजन हुआ, जहाँ रामनामी इक्कठे हुए और लोगो का हुजूम दिखा, तब से आज तक ये भजन मेला हो रहा है। रामनामी भजन मेला पूस पुन्नी के पहले एकादशी से तेरस तक 03 दिन भरता है जो पहले से निर्धारित होता है। ये मेला एक मुख्य रूप से रायगढ़, बिलासपुर, जांजगीर, रायपुर में होता है।
अखिल भारतीय रामनामी महासभा का 1960 में विधायक रहे श्री बेदराम अजगळे ने रजिस्टेशन कराया जिसका रजिस्टेशन क्रमांक 75/ 1960 है। परशुराम बाबा के समधी रतिराम के वंश आज भी है, वर्तमान में अखिल भारतीय महासभा के अध्यक्ष है जगतराम धिरहे जो रतिराम के नाती हैं।
इनके पूर्व श्री कुंजराम, श्री बोधराम, गौतम वर्मा, महेत्तर टण्डन, फिरतराम महिलाने, प्यारी राम जी अध्यक्ष रहे हैं। 1976 के आस पास अखिल भारतीय महासभा भजन मेला में दो फाड़ हो गए तब से आज तक यह 03 दिवसीय महासभा पूस पुन्नी पर लगने वाला रामनामी मेला महासभा दो जगहों पर होता आ रहा है।
महानदी के तटवर्तीय से सुदूर अंचल में रहने वाले रामनामी अपने पूरे तन में राम-राम खुदवाते हैं, बल्कि नित्य उपयोग में आने वाले कपड़ों में भी राम-राम लिखा रहता है। यही नही अपने मित्र ,साथी रिस्तेदार से मिलते है तो दोनों हाथ को जोड़कर राम-राम का अभिवादन करते हैं। इन्हें रमरमहिया ,रामनहिया ,रामनामी कहा जाता है।
ये रामनामी भजन गाते नृत्य करते समय किसी भी प्रकार का वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं करते बल्कि कांस से बने छोटे-छोटे घुंघरू को अपना वाद्य यंत्र के रूप में उपयोग करते हैं। घुंघरू के उस गुच्छे में 50,100,150,200 घुंघरू होते है जिससे मधुर आवाज निकलती है और उसी के धुन में राम का नाम जाप करते है।
अपने सर में मोर पंख की बनी मुकुट को खाप कर सुशोभित करते है उनका एक अलग पहचान है। इस वर्ष 2019 में अखिल भारतीय रामनामी महासभा भजन मेला का आयोजन का 110 वां वर्ष है। इस वर्ष यह महासभा रायगढ़ जिला के सारंगढ़ विकासखंड के गांव उलखर और बलौदाबाजार जिला के भटगांव के सुलोनी कला,गौराड़ीपा गांव में हो रही है। यह मेला 17 जनवरी से 19 जनवरी तक चलेगा।
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